Home मुंबई भांडुप विधानसभा.. बंद हुआ शोर चलने लगा चुनावी गणित का जोर

भांडुप विधानसभा.. बंद हुआ शोर चलने लगा चुनावी गणित का जोर

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आखिर आज शांत हो गया चुनावी शोरगुल, शुरू हो गया चुनावी गणितज्ञों की गणना, उम्मीदवार लग गए अपने समर्थित मंडल, मतदाताओं और कार्यकर्ताओं को रिझाने।
आइए बात करते हैं महाराष्ट्र राज्य में मुंबई उपनगर के भांडुप पश्चिम विधानसभा क्षेत्र की तो यहाँ २०१९ के विधानसभा चुनाव में मात्र सात उम्मीदवार होने से लड़ाई दिलचस्प हो गई है और मतदाताओं को भी अपने मनपसंद उम्मीदवार चुनने के लिए माथापच्ची नहीं करना पड़ेगा लेकिन असमंजस जरूर बन गया है।
२०१४ के विधानसभा में विजयी निवर्तमान शिवसेना के विधायक अशोक पाटील का टिकट शिवसेना ने काटकर एनडीए गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में नगरसेवक, ईशान्य मुंबई विभागप्रमुख रमेश कोरगांवकर को खड़ा किया है, वहीं पिछले चुनाव में कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले सुरेश कोपरकर को यूपीए ने भारतीय कांग्रेस की टिकट पर अपना उम्मीदवार बनाया है।
बात यहीं नहीं रुकती शिवसेना के कामगार नेता सतिश माने भी शिवसेना को जय महाराष्ट्र कर वंचित बहुजन आघाडी के टिकट पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं यहाँ बताना जरूरी है कि पिछले लोकसभा में वंचित बहुजन आघाडी और एमआयएम साथ मिलकर लड़े थे और अपनी धमक दिखाया था लेकिन इस बार गठबंधन नहीं है और वंचित ने स्वतंत्र लड़ने का मन बनाया है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना भी चुनावी रण में अपना बिगुल फूंक दिया है जो संदीप जलगांवकर के रूप में अपनी दस्तक दे दी है, इन्हीं चारों उम्मीदवारों में ही प्रमुखता से चुनावी लड़ाई है। बताते चलें कि अन्य उम्मीदवारों में बहुजन मुक्ति पार्टी से रूपाली भदके, बहुजन समाज पार्टी से रवि थते और निर्दलीय अंकुश कुराडे अपनी ताल ठोके है।
आइए देखें २०१४ के चुनावी परिणाम पर तो २०१४ में भारतीय जनता पार्टी, शिवसेना, भारतीय कांग्रेस और राष्ट्रवादी काँग्रेस ने आपसी गठबंधन न करते हुए स्वतंत्र चुनाव लड़ा था।
जिसमें भारतीय जनता पार्टी के मनोज कोटक को ४७७२ मतों से शिवसेना के अशोक पाटील ने हरा कर विधायक बने।
चलते हैं २०१४ मे तो कुल मतदान १६५२१२ हुआ था जिसमें प्रमुखता से मत पाने वाले उम्मीदवारों पर तो शिवसेना के अशोक पाटील को ४८१५१ मत,भाजपा के मनोज कोटक को ४३३७९ मत, मनसे के शिशिर शिंदे को ३६१८३ मत, कांग्रेस के शाम सावंत १६५२१ मत और राष्ट्रवादी काँग्रेस के लालबहादुर सिंह को ४१५३ मत मिले थे।
२०१४ की तुलना में २०१९ की स्थिति देखें तो २८४ बूथों वाले विधानसभा में सारा समीकरण बदल गया है और प्रमुख दल भाजपा व शिवसेना और भारतीय कांग्रेस व राष्ट्रवादी काँग्रेस आपसी गठबंधन के साथ उम्मीदवार उतारे है। भांडुप विधानसभा में कुल मतदाता २८२४१८ है और क्रमशः महिला मतदाता १२६७७९ और पुरुष मतदाता १५५६०९ है जो इस चुनाव में अपनी निर्णायक भूमिका अदा करने वाले हैं। देखते हैं मतदाताओं पर तो मराठी बहुसंख्यक १५४४४३ , उत्तर भारतीय ४५६१७, मुस्लिम १६३५५, दक्षिण भारतीय १२०८५, गुजराती ७४८२, पंजाबी ६८२५, क्रिस्चियन ४०५२, जैन २४०५, बंगाली २३७४ और पारसी १९ है, जिसमें मुख्य मराठी और उत्तर भारतीय मतदाताओं पर सभी की निगाहें रहेगी।
अब पिछले भाजपा उम्मीदवार मनोज कोटक सांसद बन गए है और शिवसेना के रमेश कोरगांवकर को जिताने में एड़ीचोटी का जोर लगा रहे हैं। भांडुप निवासी और ईशान्य मुंबई राष्ट्रवादी काँग्रेस के अध्यक्ष व पूर्व सांसद संजय पाटील के शिवसेना में शामिल होने के कारण राष्ट्रवादी काँग्रेस और कांग्रेस गठबंधन होते हुए भी कद्दावर नेता सुरेश कोपरकर को जमीन तलाशना पड़ रहा है और भी जोर लगानी पड़ रही है। वंचित बहुजन आघाडी के सतिश माने भी दलित, वंचित और मराठा के मतों पर अपनी निगाह जमाए हुए हैं और मनसे मराठी मतदाताओं के बल पर किस्मत आजमा रही है।
चुनावी समीक्षा की जाए तो अधिकांश मराठी वोट शिवसेना और मनसे में बंट जाएगा, मुस्लिम समाज कांग्रेस और वंचित के साथ जा सकता है, रही बात उत्तर भारतीय समाज की तो उत्तर भारतीय उम्मीदवार न होने की वजह से दुविधा में है साथ भाजपा के उम्मीदवार भी नहीं होने के कारण और कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर जनाधार खोने के कारण किसे मतदान करें यह पेशोपेस में है और कम विकल्प होने की वजह से मजबूरन शिवसेना को ही मतदान करना चाहेंगे, रही बात वंचित बहुजन आघाडी की तो सतिश माने कामगार नेता होने से कामगारों के सहारे और दलित मतदाताओं के बलबूते पर किस्मत आजमा रहे हैं जो कई दलों में बिखरे हुए हैं और उन्हें एकत्रित कर एक मंच पर लाना होगा बाकी अन्य केवल औपचारिकता पूरी कर रहे हैं।
चुनावी रणसंग्राम में कहा नही जा सकता है कि ऊँट किस करवट बैठेगा कहीं दो की लड़ाई में तिसरा बाजी ना मार ले जाए यह कहना अतिशयोक्ती नहीं होगी, इस चुनाव को अतिउत्साही होकर लड़ना पराभव की सीढ़ी चूमना हो जाएगा को सावधान उम्मीदवारों आपसी वरिष्ठ नेताओं की द्वेष और राजनीतिक रंजिश भी उनको हार दिला सकती है और कार्यकर्ताओं को सम्मान देते हुए उन्हें पकड़कर ही जंग जीती दा सकती हैं।

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