मुम्बई: भाण्डुप मे उत्तर भारतीय महासंघ द्वारा आयोजित पाँच दिवसीय भव्य श्री राम कथा के आयोजन मे कथावाचक व्यास श्री शिवाकांत मिश्रा ‘सरस’ ने दूसरे दिन की कथा को सुनाते हुए कहा कि
सम नहिं बड़भागी I नहीं कोउ राम चरन अनुरागी ।।
उत्तर कांड मे है जहा श्री राम जी चारो भाइयो एवं हनुमान जी सहित बगीचे मे हैं | हनुमान जी पंखा झल रहे हैं यह देख पार्वती जी से भोला बाबा कह रहे हैं कि देखिए यहॉ श्री राम अपने अन्य तीनो अंशो के साथ है और मै श्री राम को पंख झल रहा हू मेरे जैसा बड़भागी कौन होगा जो श्री सरकार के चरन अनुरागी है । श्री सरकार के अन्य तीनो भाई भी उन्ही के अंश है इसलिए वो चरन अनुरागी तो होगे नही न ,बचा मै हनुमान रुप मे तो यह मेरा बडे भाग्य की ही तो बात है।
पर केवल इसी कारण हनुमान जी बड़भागी और रामचरण अनुरागी नही है बल्कि श्री हनुमानजी की सेवा भावना और परायणता ऐसी अद्भूत थी कि श्री सरकार, लखन लाल ,भरत जी, मईया सीता सहित समस्त अवध वासी भी उनके ऋणी बन गए थे।
इतना महान होकर भी बीर बजरंगी श्री राम जी के समक्ष सदैव निराभिमानता की प्रतिमूर्ति ही रहे। उनकी यह निरहंकारिता अनेक स्थलो पर देखने मे आती है। जब श्री पवन सुत लंका से मईया की खबर लेकर आते हैं और श्री राम जी सब जानकर उनकी सराहना करने लगते हैं तब दैन्य की मूर्ति अञ्जनी नंदन बडी विनम्रता से कहते हैं,ऐसे ही निरभिमानी श्री हनुमान जी के प्रति सभी अवध वासी भी चिर ऋणी है वन गमन के समय मईया कौशल्या कहती है कि
अवधि अंबु प्रिय परिजन मीना।तुम करुनाकर धरम धुरीना।।
अस बिचारि सोइ करहु उपाई।सबहि जिअत जेहि भेंटहु आई।।
श्री राम जी के वन गमन के बाद सब लोग उनके दर्शन हेतू नियम उपवास करने लगे
राम दरस लगि लोग सब करत नेम उपबास। तजि तजि भूषण भोग सुख जिअत अवधि कीं आस।।
अब प्रतिज्ञावधि बीतने को आयी है एक दिन शेष रह गया है श्री भरत जी कुशासन पर बैठ कर प्रतीक्षा करने लगे। भरत जी सोच रहे हैं कि आज श्री राम नही आये तो अयोध्या वासी मर जाएगे ।जल रुपी सरकार ही नही रहेगे तो प्रजा रुपी मछली कैसे जियेगी। यह सोच कर भरत जी ही अपने शरीर का सबसे पहले स्वंय त्याग करना चाहा ,उसी समय श्री हनुमान जी
भरत जी की स्थिति देखकर हनुमान जी गदगद हो गये और पुनः श्री राम आगमन का समाचार सुनाकर श्री हनुमान जी ने न केवल भरत जी अपितु सम्पूर्ण अवध वासियो के जीवन की रक्षा की। जिस प्रकार से हनुमान जी के श्री भरत जी, माता कौशल्यादि जी तथा अवध वासीगण ऋणी हैं उसी प्रकार श्री राम जी,लखन जी, और सीता जी भी ऋणी हैं। संजीवनी बुटी लाकर जहा लखन जी का जीवन बचाए वही लखन जी के वियोग मे विलाप करते हूए श्री राम जी को भी प्रसन्न कर अपना ऋणी बनाए।
इसी प्रकार कृतज्ञ हैं भगवती मईया भी हनुमान जी की लंका विजय के बाद श्री राम जी ने मईया के पास इनको भेजे जहा दर्शन और नमन के उपरान्त मईया से कहते हैं
सब बिधि कुसल कोसलाधीसा।मातु समर जीत्यो दससीसा।।
यह सुनते ही मईया के ह्रदय मे अत्यन्त हर्ष हुआ। उनका शरीर पुलकित हो गया और वो खुशी के आसु युक्त आखो मे भरे हुए बार बार बोलने लगी
का देउँ तोहि त्रैलोक महँ कपि किमपि नहिं बानी समा।
बजरंग बलि कहते है। दूसरा दूत रहता तो क्या नही मांग लेता पर,मंगलमूर्ति हनुमान जी सकल अमंगलों को मूल से विनष्ट कर देते हैं। उनका चरित अपार है, अनंत है ।
हनुमान जी मानस में पंचप्राणों के रक्षक हैं । कंब रामायण के अनुसार ये “मुख्यप्राण” हैं।
हमारे शरीर में पंचप्राण-प्राण,अपान,समान, व्यान और उदान हैं । मानस के पंचप्राण -सीता जी,भरत जी, लक्ष्मण जी, सुग्रीव जी और बंदर हैं,हम जानते हैं कि सीता जी को अशोक वाटिका में जाकर,श्री राम वनगमन की अवधि पूरी होने पर भरत जी के लिए अयोध्या जाकर, लक्ष्मण जी के मूर्छित होने पर रातों रात संजीवनी लाकर, सुग्रीव को जब लक्ष्मण क्रोधित होकर मारने आए तब समझाकर और प्यासे बानरों को गुफा में ले जाकर-इन सभी के प्राणों की रक्षा हनुमान जी ने की।
ऐसी महान सेवा से ही श्री हनुमान जी ने सभी को ऋणी बना लिए | हनुमान जी जैसा भाग्यवान कौन होगा। इस भव्य राम कथा के आयोजन की संयोजिका अधिवक्ता योगिता अनुपम दुबे ने बताया की कथा का श्रवण करने नगरसेवक सुरेश कोपरकर,विधायक रमेश कोरगावकर,एच एन सिंह, के आर सिंह,बाबूलनाथ दूबे,महेन्द्र तिवारी, गुलाब दुबे आदि मैजुद रहे। दुशरे दिन की कथा समाप्ति पर संस्था अध्यक्ष मंगला शुक्ला ने सभी श्रोताओं का आभार व्यक्त करते हुए उनसे और लोगों को आमंत्रित करके कथास्थल तक लाने की अपील किये।