Home मन की बात फुले दंपति को मरणोपरांत भारत रत्न दिया जाना चाहिए

फुले दंपति को मरणोपरांत भारत रत्न दिया जाना चाहिए

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हमार पूर्वांचल
चंद्रवीर बंशीधर यादव (शिक्षाविद्)

मुंबई : भाडुप (पश्चिम) तुलसेत पाढ़ा में गणतंत्र दिवस के दिन झंडा रोहण के पश्चात शिक्षाविद चंद्रवीर वंशीधर यादव ने दुखः जताते हुए कहा कि आज फिर भारत रत्न में फुले दंपति का नाम नहीं आने पर शिक्षा जगत को बहुत निराशा हुई। आखिर कब मिलेगा भारत रत्न ? मेरे ही नहीं अपितु संपूर्ण जनमानस में यह सवाल उठ रहा है। भारत की पहली महिला शिक्षिका क्रांति ज्योति सावित्रीबाई फुले का जन्म 3जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सातारा जिले के नयागांव तालुका खंडाला में एक कृषक परिवार में हुआ।

सावित्री बाई का विवाह ज्योतिराव फुले से बाल्यावस्था में ही हो गया। सावित्री बाई के ससुर गोविंदराव रूढ़िवादिता के पोषक थे। वे स्त्री शिक्षा के घोर विरोधी थे। वास्तव में भारतीय समाज व्यवस्था में महिलाओं को दोयम स्थान प्राप्त था।विभिन्न अनिष्ट प्रथाओं और रीति-रिवाजों के कारण उन पर अन्याय होता था। इस रुढिवादी व्यवस्था पर लगाम लगाने के लिए सावित्री बाई ने अवर्णनीय कार्य किया। लेकिन उसके पहले उन्हें अपने ही परिवार से ही वे शिक्षित न हो सके यह रुढ़िवादी विचारधारा के कोढ को सहना पड़ा था। वास्तव में जब सावित्रीबाई अपने पति ज्योतिराव के लिए खेत में खाना लेकर जाती थी उस समय वे उन्हें पढ़ाते थे। इसी वजह से रूढ़िवादियों की टोली खफा होती थी। उसका परिणाम यह हुआ कि सावित्रीबाई फुले के ससुर ने अपनी बहु तथा बेटे ज्योतिराव फुले को घर से ही निकाल दिया।

घर से निष्काषित होने के बावजूद भी फुले दंपति ने कोई विरोध प्रदर्शित नहीं किया। बल्कि वे शांतिपूर्वक घर से समाज कार्य करने के लिए निकल पड़े। उस समय स्त्री शिक्षा पर पाबंदी थी। इसलिए सर्वप्रथम सावित्रीबाई ने नार्मल स्कूल की परीक्षा पास की ।अपनी शिक्षा के साथ ही वे बालिकाओं को शिक्षित करने में तत्पर थीं। महात्मा फुले ने 1848 ई.में पुणे के भिडे बाड़ा में बालिकाओं के लिए प्रथम पाठशाला की स्थापना की। इस पाठशाला की प्रथम महिला शिक्षिका एवं प्रथम मुख्याध्यापिका सावित्रीबाई बनीं।

सावित्रीबाई फुले का जीवन त्याग एवं तपस्या से भरा था। जब वह बालिकाओं को शिक्षा देने के लिए जाती थी अनेकों बार उनके ऊपर पत्थर, कीचड़, गोबर यहाँ तक की विष्ठा भी फेंककर मारा गया। फलस्वरूप उनकी साड़ी भी खराब हो जाती थी। लेकिन वे हारने वाली महिला नहीं थी। वे सदैव अपने साथ एक अतिरिक्त साड़ी रखतीं थी। खराब हुई साड़ी बदलकर वे शैक्षणिक कार्य में लग जाती थीं। धन्य थी सावित्री बाई। आज तो केवल उस घटना को याद करके ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

सावित्रीबाई ही थी जिन्होंने विधवा विवाह, छुआछूत मिटाने के साथ स्त्रीजाति की मुक्ति तथा विशेषकर दलित स्त्रियों को शिक्षित करने का प्रण लिया था। अठारह स्कूलों की स्थापना के साथ ही फुले दंपति ने अपने घर में ही गर्भवती बलात्कार पीड़िता के लिए बालहत्या प्रतिबंधक गृह स्थापित किया। भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका एवं मराठी कवयित्री सावित्रीबाई फुले को उनके स्त्रीहित ( मानवहित) के कार्यों को देखकर उन्हें तथा उनके पति महात्मा ज्योतिराव फुले जी को भारत रत्न दिया जाना चाहिए।

हमारे देश की समाज रचना विषमता पर आधारित थी। समाज में दलितों के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार किया जाता था। इस अन्यायपूर्ण व्यवहार के विरुद्ध महात्मा जोतीराव फुले ने जनजागरण किया। ज्योतिराव फुले के साथ ही सावित्रीबाई के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।

आश्चर्य इस बात का होता है कि ऐसे महान राष्ट्रनिर्माताओं को अब तक भारत रत्न क्यों नहीं दिया गया है? वास्तव में महात्मा जोतीराव फुले ने 1873ई.में जिस सत्यशोधक समाज की स्थापना की। उसकी वजह से समाज में समता की पृष्ठभूमि बनी। फलस्वरूप बहुजन समाज की शिक्षा तथा स्त्री शिक्षा को बल मिला। आज देश स्त्री शिक्षा के लिए सावित्रीबाई का कृतज्ञ है। शायद फुले दंपति का त्याग ही है कि हमारी बहन-बेटियां आज शिक्षा क्षेत्र में पुरुषों से कहीं पीछे नहीं है। अतः भारत सरकार को जल्द से जल्द इन्हें भारत रत्न देने की घोषणा करनी चाहिए।

चंद्रवीर बंशीधर यादव (शिक्षाविद्)
संपर्क:20बी यादवेश कोआंपरेटिव्ह हाऊसिंग सोसायटी ,देवकीशंकर नगर,लेकरोड़,भांडुप(पश्चिम),मुंबई-400078 मो.9322122480

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