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भारतमाता की आजादी

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हमार पूर्वांचल
साभार गूगल

गुड़िया झा

मै भारत माता केहलाती हु, मै पृथवी भी केहलाती हु, और धरनी भी केहलाती हु, आप सब जानते हो मुझ पृथवी के ग्रवग्रीह में घिरी हुई सीता जब लौकीक परिवार जनक की पुत्री बनकर आई तो अपने मन्शा, वाचा, कर्मना से अपने जीवन सहीत पारिवारिक संसारिक और मुझ पृथवी को स्वर्गनिये बना दिया सांसारिक 33 करोड़ मानव रुपी देवी देवता के जीवन से रावण-राक्षसों द्वारा दुख अशांती डर, आतंक, भय, चिंता से मुक्ति दिलाने का प्रेणना सूत्र बनकर सभी सुखो की आजादी दिलाती है।

मानव रूप में अल्पकालीन जीवन लेकर आने वाले साकार स्वरूप का मरियादा पुरुषोत्तम राम साकारी संसार में रहकर लौकीक परिवार माता-पिता, पत्नी, बच्चे, भ्राता, गुरु और वरासंघटन प्रजारुपी समाज में रहकर भी सम्पूर्ण पाप कर्मो का जन्मदाता काम, क्रोध, लोभ, मोह अहंकार जैसा महाप्रतापी से अपने को मुक्त रखकर अपने मन्शा-वाच्चा कर्मो को ऐसा आजादी प्राप्त कराया जो ना कभी मीटा है ना मीटेगा और ना ही कभी मीटने वाला है। सूरज, चाँद के साथ सदा चलता रहेगा, परन्तु आज के आप सभी संसारिक नारी-पुरुष मुझे भारत माता कहते हुए भी जो धर्म सदा होने वाले आप सेवक दवारा , मन्शावाचा कर्मो से जुड़कर रहनेवाला है जिसे आपसब काम, क्रोध, मोह और अहंकार के वाशीभुत होकर पाप कर्मो का गुलाम बना दिया है। जिससे पूर्ण आजादी चाहिए धर्म का सदाकालीन कल्यानकारी सुख, शांती, समृधी तो मात्र हम-आप के मन्शावाचा सहीत कर्म से ही प्राप्त व अनुभव हो सकेगा ना कि माला, कंठी, चन्दन, पीताम्ब्री, गेरुआ वस्त्र, दाढ़ीवाला, धुप,दीप, नैवेद्य, आरती मंदीर मठ तीर्थ आदी में भटकने मात्र से होगा आपको अल्पकालीन अन्धश्रधा की बेविचारी भक्ति की गुलामी से मुक्त होकर सदाकालीन नीर विकारी पवित्र अपने हर वक्त के मन्शावाचा कर्मना पर आजादी पाना होगा।

कल्याण के वास्ते ऐसी भक्ति बहुत पूर्व से लेकर आज तक के लोग कर रहे है परन्तु  दुनिया विनाश की और दिखाई पड़ती है। सभी का जीवन दुःख आशान्ती डर, भय, आतंक, रोग-शोक, सदमा से त्रस्त है, नर्क का सम्पुर्ण अनुभूती होता है, दुनीया में तोप, बन्दुक, बारूद ,मीसाइल विश्व विनाशक परमाणु बम  का
संगरचना हो रहा है इन सबसे मुक्ति तब ही मीलेगी जब खुद से खुद का भक्ति कर अपने कदम दर कदम साथ चलने वाले सर्वशक्ति मान कल्याण कारी धर्म को अपने मन्शावाचा कर्मो से आजादी दोगे और
यह तब तक नही कर सकते जब तक अपने अनंन्त इच्छा रूपी असंतोष के भ्रमर में भटकने वाले गलत उद्घोषणा का आदती, बीना लगाम का अपने मन रुपी घोड़े को वर्तमान कालीन अल्प इच्छाये संतोष का सही निर्णय लेनेवाली उद्द्घोषीत बुद्धी से लगाम लगाकर नीयंत्रण में नही लायेंगे जीससे, धर्म को आजादी मिलेगी भारत माता कहती है, आप नर-नारी के रूप में सांसारिक सभी बच्चे मेरे गोद में रहकर भी असुरिया  पृवत्ति अपनाकर मुझे कलकिंत कर दिये हो, मेरी ममता जवाब दे रही है, कि रात-दीन आसु बहा रही हु । जीस मीट्टी से बने हो उस मिट्टी से माँ को कलंकित करते हो, मुझे तुम्हारे मन्शावाचा कर्मो के वीनाशी तलवार से आजादी चाहिए।

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