भदोही में शनिवार को हुए वैन दुर्घटना में दिनभर लोग तरह तरह की चर्चा करते रहे। लेकिन हो न हो इस घटना में जिले में व्याप्त भ्रष्टाचार की पोल खोल कर रख दी है। आम आदमी के मन में तरह तरह की बातें आ रही है। ज्ञानपुर भगवास व शिवरामपुर के परिजनों का हाल बेहाल है। जिले भर में लोग हादसे में शिकार बच्चों के सलामती की दुआ कर रहे है। लेकिन भ्रष्टाचार की मकडजाल में उलझा शिक्षा विभाग मासूमों की जिन्दगी के साथ खिलवाड कर रहा है। जिले में आए दिन स्कूल से जुडी घटनाएं सुनने व देखने को मिल जाती है लेकिन प्रशासन घटना के कुछ दिन तक तो धरपकड और सक्रियता का दिखावा करेगा फिर मिलीभगत से मासूमों के जिन्दगी से खिलवाड़ जारी हो जाता है।
जिले के बिना मान्यता प्राप्त विद्यालयों को बंद क्यो नही करता शिक्षा विभाग?
भदोही का शिक्षा विभाग यदि सच में भ्रष्टाचार में सहयोगी नही है तो जिले भर में खुले कुकुरमुत्ते की तरह विद्यालयों व कोचिंग संस्थानों को बंद कराकर अपने को पाक साफ बनाए। लेकिन विभाग ऐसा कर देगा तो मनमानी वसूली और मोटी रकम पाने का माध्यम विभाग का बंद हो जायेगा। इसलिए नही लगता कि शिक्षा विभाग इतना पुनीत कदम उठायेगा। प्राइवेट स्कूलों में मनमानी शुल्क और तरह तरह की नौटंकी अभिभावकों को बर्बाद कर दे रही है लेकिन फिर भी अभिभावक अपने बच्चों की जिन्दगी इन लापरवाह विद्यालयों को सौपने पर गुरेज नही करते है।
जिले के विद्यालयों में चल रहे वैन या बस का मानक की जांच क्यो नही करता विभाग?
लोग अपने बच्चों को बढिया से तैयार करके स्कूल के लिए भेजते है लेकिन विद्यालय वाले बच्चों को वैन/टेम्पो में भूषा की तरह भरते है और मनमानी भाडा वसूल करते है। दूसरी बात स्कूलों में लगे ज्यादातर वाहन मानकों को पूरा नही करते है जो कही कही सरकार के नियम कानून की धज्जिया उडाने में सहयोगी साबित होते है। रही बात विभाग की तॅ विभाग सब कुछ जानता है लेकिन किसी शिकायत का इंतजार का करता है। अब यहां प्रश्न बनता है कि सम्बन्धित मामलों की जांच व देखरेख के लिए विभाग व अधिकारी है लेकिन उनसे क्या पडी है? जब कुछ होगा तो पुरा महकमा है जो उनको बचाने के लिए जुगाड खोजकर बचाने का प्रयास करेगा।
आखिर विद्यालय वाले नसेडी चालकों से क्यों चलवाते है स्कूल वाहन?
मासूम बच्चों को विद्यालय ले जाने वाले चालकों में अधिकतर चालक किसी न किसी नशा के शिकार है जो घटनाओं में सहयोगी साबित होते है। शनिवार को हुई घटना के बारे में बताया गया कि चालक सिगरेट पीता था। हालांकि यह कोई बडी बात नही है क्योकि ऐसे मामले में ज्यादातर चालक सम्मिलित है। लेकिन विद्यालय को क्या पडी है? बच्चों को एक नशेडी चालक के साथ आना जाना उन्हे भी नशा के तरफ ढकेलने का परोक्ष रूप से कारगार होता है। इन लापरवाह और नशेडी चालको के वजह से ही बेचारे मासूमों की जिन्दगी दांव पर लगी रहती है।
कोचिंग के आड़ में स्कूल चलाना विभाग की मिलीभगत नही तो और क्या?
शनिवार को हुई घटना के बाद जब शिक्षा विभाग के अधिकारियों से उक्त स्कूल के बारे में पूछा गया तब विभाग के आला अधिकारियों ने बताया कि सात महिने से गोपीपुर में कोचिंग के नाम पर स्कूल संचालित है। जबकि ग्रामीणों से बात करने पर यह पता चला कि यह विद्यालय कई वर्षो से चल रहा है। हालांकि लोगों ने माना कि पहले आक्सफोर्ड स्कूल के नाम से था अब दूसरे नाम से चल रहा है। विभाग के नाक के नीचे कोचिंग के नाम पर विद्यालय चलने की जानकारी क्यों नही हुई? इसमें केवल दो बाते ही निकलकर आती है कि या तो विभाग की मिलीभगत है या विद्यालय संचालक या मकान मालिक किसी बडे नेता का आदमी का खास है। इसकी बानगी शनिवार को ज्ञानपुर कोतवाली में देखने को मिली जब पुरा प्रशासनिक अमला प्राथमिकी दर्ज कराने कोतवाली पहुंचा था तो वहां कुछ दलाल टाइप के लोग भी मामले को हल्का करने के जुगत में दिखे लेकिन प्राथमिकी तो दर्ज हो गई। ऐसे ही जिले में मनमानी कोंचिंग व अवैध विद्यालय चल रहे है इनके खिलाफ कार्यवाही न करना भविष्य में किसी बडे घटना को दावत देने के समान है। जिले में केवल मान्यता प्राप्त विद्यालय व कोचिंग संचालित करने की अनुमति दी जाए जो सच में मानक पुरा करते हो।
जिलाधिकारी ने वैन में लगे सिलेण्डर को जांच का विषय बताया?
शनिवार की सुबह हुई घटना के बाद बच्चों को देखने पहुंचे जिलाधिकारी राजेन्द्र प्रसाद ने मीडिया कर्मियों को बताया कि ‘सिलेण्डर से आग लगने की बात आ रही है लेकिन यह जांच का विषय है कि सिलेण्डर से वैन चलाया जा रहा था या सिलेण्डर ऐसे ही रखा गया था?’ जिलाधिकारी महोदय का यह बयान लोगो के जहन में एक प्रश्न छोडता है कि जहां पुरे लोग इस घटना को सिलेण्डर के रिसाव को ही मुख्य वजह बता रहे है वही जिलाधिकारी ने इस पर आधी आशंका जताकर मामले को हल्का करते नजर आए। बिदित हो कि सिलेण्डर में लगा पाइप जो वैन में गैस आपुर्ति के लिए लगा साफ साफ दिख रहा है लेकिन फिर भी जिलाधिकारी महोदय ने कहा कि गैस सिलेण्डर रखा गया था या वैन में लगा था यह जांच का विषय है। हालांकि कुछ भी हो शिक्षा विभाग की लापरवाही से हो रही घटनाएं अभिभावकों के आंखो को नही खोल पा रही है।
जिले में 21साल बाद भी बर्न सेंटर क्यों नही बन पाया?
जिले में नेताओं के तरफ से सभी चीजों के लिए बजट आ जा रहा है लेकिन अतिसंवेदनशील मामलों के लिए आपातकालीन घटनाओं से निपटने के लिए कुछ महत्वपूर्ण संसाधन जिले में न होने से लोगों को प्रयागराज और वाराणसी के लिए रेफर कर दिया जाता है जिसके दौरान कईयों की मौत रास्ते में हो जाती है। शनिवार को हुई वैन दुर्घटना में झुलसे बच्चों को जिला चिकित्सालय ले जाया गया जहां बर्न सेंटर न होने के वजह से वाराणसी के ट्रामा सेंटर रेफर कर दिया गया। जिले के जनप्रतिनिधियों को सरकार से मांग करनी चाहिए कि जिले में आपातकालीन सेवाओ से निपटने के लिए चिकित्सीय संसाधनों की नितान्त आवश्यकता है। शनिवार को हुई घटना के बाद जिलाधिकारी ने भी जिले में बर्न सेंटर न होने से वाराणसी रेफर करने की बात मानी।
भदोही की सास-बहू की चर्चा हर जुबान पर
शनिवार को जब वैन लखनों निवासी जयशंकर शुक्ला के घर पर उनके नातियो अनमोल और अखिलेश को लेने आया था दोनो बच्चे वैन में बैठे। तब तक लोगों ने चालक से कहा कि वैन के पीछे कुछ तैलीय चीज गिर रहा है। यह सुनकर जब चालक वैन के पीछे का गेट खोला तो तुरंत आग लग गई। और चालक तुरंत ही भाग निकला और बेचारे मासूम वैन में झुलसने लगे। इस मार्मिक दृश्य को देखकर वृद्ध जयशंकर शुक्ला और उनकी पत्नी सीता देवी और बहू सुमन शुक्ला ने जान की परवाह किये बिना वैन का गेट खोला और बच्चों को तीनो लोगो ने बाहर निकालना शुरू कर दिया। लेकिन आग के लपटों से बच्चों समेत सभी लोग झुलस गये। आनन-फानन यह खबर पुरे क्षेत्र में फैल गई। सूचना के बाद पुलिस, फायर ब्रिगेड मौके पर पहुंची। और बच्चों को जिला चिकित्सालय भर्ती कराया गया।
घटना में अपने जान की परवाह किये बिना सीता देवी और सुमन शुक्ला ने मानवता की बडी मिशाल पेश की। जो कभी भी भुलाया नही जा सकेगा।
प्राइवेट विद्यालय क्यों उडाते है कानून की धज्जियां?
सरकार ने शासनादेश जारी किया है कि शीतकालीन स्कूल टाइम प्रातः10बजे से तीन बजे तक होगा। लेकिन फिर भी प्राइवेट विद्यालय के लोग सुबह सात बजे ही बच्चों को लेकर चल देते है। लेकिन विभाग मौन है। शीत के वजह से छुट्टी के दिन भी ये बेखौफ स्कूल संचालक खोलते है अपनी दुकान। वही सरकारी स्कूल के अध्यापक स्कूल कम जाना चाहते है लेकिन प्राइवेट स्कूल के अध्यापक छुट्टी के दिन भी बुलाये जाते है।
सरकार के नियम कानून को तोडने में विभाग ही प्राइवेट स्कूलों का मन बढाया है नही तो किसी प्राइवेट स्कूल का मजाल नही है कि शासन व प्रशासन के द्वारा बताये गये दिवा निर्देशो का पालन न करे। इसके पीछे है विभाग की लापरवाही व भ्रष्टाचार की संलिप्तता। चाहे वह कैयरमऊ की घटना हो या लखनों की।
इस तरह के मामलों से निपटने के लिए प्रशासन, विभाग और अभिभावकों को भी सक्रियता व जागरूकता से स्कूलों के हर क्रिया कलाप पर ध्यान देना चाहिए।
इस घटना के बाद ज्ञानपुर के विधायक विजय मिश्र ने जिला चिकित्सालय पहुंचकर बच्चों का हाल चाल लिया। भदोही के विधायक रविन्द्र त्रिपाठी ने भी वाराणसी ट्रामा सेंटर पहुंचकर बच्चों का हालचाल जाना व परिजनों से मुलाकात की। सपा जिला महासचिव ओमप्रकाश यादव ने इस मामले को पुर्णतः प्रशासन को जिम्मेदार बताया और सभी बच्चों की दवा का खर्च प्रशासन से उठाने की मांग की।
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