Home खास खबर भदोही : कोरोना से नहीं भूख से मर जाते सैकड़ों लोग

भदोही : कोरोना से नहीं भूख से मर जाते सैकड़ों लोग

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भदोही । गरीबों के प्रति प्रशासन का जो रवैया भदोही में देखा जा रहा है। उसे देखकर यही लगता है कि यदि समाजसेवियों ने गरीबों का पेट भरने का बीडा नहीं उठाया होता तो भदोही में कोरोना से भले ही किसी की मौत नहीं होती किन्तु भूख से तड़पकर सैकड़ों लोगों की जान अवश्य चली गई होती । क्योंकि इस आफत की घड़ी में जिले के अधिकारी मानवता को शर्मशार करते हुए भ्रष्टाचार में इतने संलिप्त हो गए हैं कि वे गरीबों का पेट भरने के बजाय अपनी जेबें भरने में लगे हुए हैं ।

गौरतलब हो लॉकडाऊन होने के बाद सबसे बड़ी परेशानी उन गरीबों के समक्ष खड़ी हो गई है जो रोज मेहनत मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पालते हैं। हालांकि सरकार ने उन गरीबों का पेट भरने के लिए जिले के अधिकारियो को निर्देशित करके फंड भी मुहैया कराया है किन्तु जिन अधिकारियो को यह जिम्मेदारी मिली है वे गरीबों का पेट तो नहीं भर रहे बल्कि अपनी तिजोरी का वजन अवश्य बढ़ा रहे हैं।

हमार पूर्वांचल की टीम ने जब इसकी पड़ताल की तो जो सच्चाई सामने आयी वह लोगों को झकझोर देने के लिए काफी है। अधिकतर गावो से सूचना मिली की गरीबों में राशन बांटने के लिए ग्राम प्रधानो ने कोटेदारों से दो-दो कुंतल राशन लिया। उसी राशन में से थोड़ा सा भाग सीडीओ भदोही के साथ घूमकर बांटा गया । पीपरीस स्थित मुसहर बस्ती और कुष्ठ बस्ती में कही एक किलो तो कहीं  दो या  तीन किलो तक आटा और आधा किलो व एक किलो आलू का वितरण हुआ। जो की एक दिन के लिए भी पर्याप्त नहीं है।

वही सूत्रो की माने तो भदोही तहसील के एक अधिकारी द्वारा कुछ कालीन निर्यातकों से राशन लिए जाने की बात सामने आयी है। किन्तु उक्त अधिकारी द्वारा उस राशन को कहा वितरित किया गया इसका कोई प्रमाण नहीं है ।

सोचने वाली बात है कि गरीबों के प्रति दया भाव रखने वाले विनय चौरसिया, कमलेश सिंह राजपूत, अखिलेश पाल, रत्नाकर पाठक, डा वीके दूबे  जैसे तमाम समाजसेवी यदि सामने आकर इस दुःखद घड़ी में गरीबों का पेट भरने का संकल्प नहीं लेते तो कितने गरीबों की मौत कोरोना से नहीं भूख से हो जाती ।

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  1. सरकार को इस प्रकार के मामले को अत्यंत शीघ्र सज्ञान लेना चाहिए

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