भदोही में शहीदों के अपमान पर क्यों चुप है भाजपा
भदोही। गत सप्ताह भदोही के कालीन भवन में भारतीय जनता युवा मोर्चा द्वारा अमृत महोत्सव का आयोजन किया गया। दूसरे दिन जब अखबारों में खबर छपी तो भाजपा पदाधिकारियों के लंबे चौडे बयान दिखायी दिये। किसी ने सरकार के विकास कार्यो का गुणगान किया तो किसी ने दावा किया कि भदोही की तीनों विधानसभा सीटों पर भाजपा अपना परचम लहारायेगी। मुख्य व विशिष्ट अतिथि के साथ उपस्थिति लोगों में किसी शहीद के परिजन का नाम दिखायी नहीं दिया, बल्कि भाजपाजनों का ही गुणगान किया गया। जिस अमृत महोत्सव को मनाने का उद्देश्य भूले बिसरे स्वतंत्रता सेनानियों व देश की आजादी के लिये शहीद हुये भारत मां के सपूतों को याद करना था। उस उद्देश्य को भुलाकर भाजपाई खुद का गुणगान करने में जुटे हैं। दरअसल भाजपा अमृत महोत्सव के मूल उद्देश्य से भटककर शहीदों व स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों का अपमान करने से भी गुरेज नहीं किया। कार्यक्रम में मौजूद सभी लोगों से हाथ उठवाकर भाजपा को वोट दिलवाने का संकल्प दिलाया जाना शहीद के परिजनों को रास नहीं आया।
भदोही के मर्यादपट्टी में अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ का कार्यालय है। वहां पर एक हॉल बनाया गया है जिसे कालीन भवन का नाम दिया गया है। इस कालीन भवन में कालीन उद्योग से जुड़ी समस्याओं पर चर्चा व निदान के लिये बैठक आयोजित की जाती है। साथ ही शासन प्रशासन से संबंधित बैठकों के लिये भी इस हॉल का इस्तेमाल किया जाता है। इस भवन को राजनीतिक कार्यक्रमों से हमेशा दूर रखा गया है। पहली बार ऐसा हुआ कि अमृत महोत्सव के नाम पर इस भवन का राजनीतिक इस्तेमाल हुआ। जब दूसरे दिन अखबारों में खबर छपी तो राजनीतिक हलकों में खलबली मच गयी। राजनीतिक दलों का कहना था कि उद्योग को राजनीति से दूर रखा जाय क्योंकि इस उद्योग से विभिन्न राजनीतिक दलों से लोग जुड़े हैं। यदि कालीन भवन को राजनीतिक अखाड़ा बना दिया गया तो आने वाले दिनों में एक नया विवाद खड़ा हो जायेगा।
जब यह मामला चर्चा में आया तो भाजपाई सफाई देने में जुट गये। उनका कहना था कि यह कार्यक्रम शहीद और स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को सम्मान देने के लिये रखा गया था। किन्तु इस बात का जवाब किसी के पास नहीं था कि किसी भाजपा नेता ने किसी शहीद के बारे में बोलने की जहमत नहीं उठायी। आजादी में उक्त शहीद के योगदान के बारे में नहीं बताया गया। कार्यक्रम में सिर्फ भाजपा को जिताने की अपील कर राजनीतिक रंग देना था तो अमृत महोत्सव का नाम क्यों। दरअसल भाजपा अमृत महोत्सव की हांडी पर वोट पका रही है।
क्या है अमृत महोत्सव का मूल उद्देश्य
स्वतंत्रता के 75 वर्ष को मनाने के लिये मार्च 2021 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के साबरमती से अमृत महोत्सव की शुरूआत की। हालांकि आजादी की 75वीं वर्षगांठ 15 अगस्त 2022 को होगी किन्तु इसे 75 सप्ताह पहले ही मनाने की शुरूआत हो गयी। जिसे वर्ष 2023 तक मनाया जायेगा। उस दौरान केंद्रीय एवं संस्कृति मंत्री जी किशन रेड्डी ने सभी बड़े बड़े लोगों, बुद्धिजीवियों, शिक्षाविदों, फिल्म कलाकारों, क्रिकेटरों, सहित आम लोगो से अपील किया था कि अपने फोन में राष्ट्रगान गाकर राष्ट्रगान डॉट इन नामक वेबसाइट पर अपलोड करें। उन्होंने कहा था कि राजनीति से ऊपर उठकर सभी लोग इसका हिस्सा बनें। यह जनता का महोत्सव बनना चाहिए क्योंकि यह सरकार का उत्सव नहीं है।
अमृत महोत्सव का एक उद्देश्य और था कि हर जिले में अमृत महोत्सव का कार्यक्रम आयोजित हो और उस जिले में गुमनाम हो चुके स्वतंत्रता सेनानियों, शहीदों और आजादी के समय रहे वैज्ञानिकों के परिजनों को याद किया जाये। आजादी के समय शहीदों और स्वतंत्रतो सेनानियों के योगदान के बारे में बताया जाय। निश्चित तौर पर यह एक अच्छी पहल थी। आज की युवा पीढ़ी देश को आजादी दिलाने वाले भारत मां के सपूतों को भूल चुकी है। युवा पीढ़ी को अपने इतिहास से परिचित कराने की आवश्यकता है। किन्तु भाजपा ने अमृत महोत्सव को एक ऐसी हांडी बना डाला जिसमें वोट रूपी खीर पकाई जा रही है। अमृत महोत्सव कार्यक्रम तो आयोजित हो रहे हैं किन्तु उसमें मूल उद्देश्य को भुलाकर सिर्फ राजनीति का काढ़ा बन रहा है।
भदोही में ऐसे हुआ शहीदों का अपमान
कभी वाराणसी जिले का हिस्सा रहा भदोही अपने आंचल में कई ऐतिहासक व पौराणिक इतिहास को समेटे हुये हैं। देश को आजादी दिलाने से लेकर वर्तमान में आतंकियों और नक्सलियों से लोहा लेने के लिये भी इस मिट्टी ने कई सपूतों को जन्म दिया है, लेकिन यहां के राजनीतिज्ञों ने शहीदों को सिर्फ अपमान करने का काम किया है। उनकी याद में बनी निशानियों को मिटाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। अभी हाल के वर्षों में छत्तीषगढ़ में शहीद हुये सुलभ उपाध्याय की याद में बनाये गये स्मृति स्थल को भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिया गया। ज्ञानपुर में 19 लाख रूपये की अधिक लागत से शहीद चौराहा बना। वहीं पर शहीद सुलभ उपाध्याय का स्मारक बना, लेकिन दो साल में समतल सड़क रह गयी। आजादी के समय अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीद झूरी सिह के नाम से ज्ञानपुर से दुर्गागंज की सड़क जानी जाती थी। जिसका नाम शहीदझूरी सिंह मार्ग था, लेकिन अब उसका नामों निशान नहीं है। जिले में शहीदों के नाम पर आजतक एक भी प्रोजेक्ट शुरू नहीं किया गया है। फिर युवा पीढ़ी कैसे शहीदों को याद रखेगी।
शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों को न बनाये राजनीति का हिस्सा
देश की आजादी में अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीद झूरी सिंह के प्रपौत्र रामेश्वर सिंह का कहना है कि शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों को राजनीति का हिस्सा बनाने की जगह उन्हें सम्मान देने की पहल की जाये। श्री सिंह ने बताया कि कार्यक्रम में बुलाकर सिर्फ माला पहनाने से सम्मान नहीं होगा। बल्कि पूर्व की तरह दुर्गागंज मार्ग का नाम शहीद झूरी सिंह मार्ग रखा जाये और ध्वस्त हो चुके शहीद सुलभ उपाध्याय के स्मारक को पुन: बनाया जाय। श्री सिंह ने बताया कि अमृत महोत्सव में बुलाकर सभी लोगों से हाथ उठावाकर भाजपा को वोट देने का वचन लेना गलत है। क्योंकि स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों के परिवार में विभिन्न राजनीतिक सोच के लोग शामिल हैं। साथ ही कार्यक्रम के आयोजन में मूल उद्देश्य से भटकना भी अनुचित है।