बृहन्मुंबई मनपा द्वारा संचालित सभी अनुदानित और गैर अनुदानित स्कूलों के सभी माध्यम के शिक्षकों के कठोर परिश्रम की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी ही कम है। मुंबई शहर की शिक्षा व्यवस्था को जिस तरह से मनपा के प्राथमिक विभाग से लेकर माध्यमिक विभाग के शिक्षकों ने आधार देने का काम वर्षों से किया है उसकी तो सार्वजनिक रूप से प्रशंसा होनी ही चाहिए। आज के व्यापारिक युग में जिस तरह से शिक्षा का बाजारीकरण हुआ है, अधिकांश शैक्षणिक संस्थान तो जैसे लगता है पैसे कमाने के ही लक्ष्य को पूरा करने में व्यस्त है। मुंबई जैसी आर्थिक नगरी में तो कुछ शैक्षणिक संस्थाएं पैसे कमाने के नशे में इस कदर पागल हो गई हैं, जैसे लगता है कि वे शिक्षा को व्यापार ही नहीं बल्कि बेईमानी का धंधा बनाने पर तुली हैं। ऐसे में मुंबई महानगरपालिका के स्कूल ही हैं, जो मेहनतकश असंख्य लोगों का सहारा बनते हैं। जरा कल्पना कीजिए, यदि मुंबई महानगरपालिका के अस्पताल न होते तो पता नहीं कितने लोग, जिसमें असंख्य लोग जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, वे ही नहीं बल्कि बड़े -बड़े व्यापारी भी अपने इलाज के चक्कर में भारी कर्ज के शिकार हो चुके होते।
आज इन्हीं मनपा अस्पतालों की वजह से असंख्य ऐसे लोग है जो की रोगी थे लेकिन अब रोगी नहीं बल्कि स्वस्थ हो चुके हैं। वे बीमारी की वजह से कर्जदार भी नहीं है, क्योंकि मनपा अस्पतालों में डॉक्टर पैसे कमाने नहीं मरीजों की जिंदगी बचाने के लिए काम करते हैं। ठीक उसी तरह मुंबई महानगरपालिका के शिक्षक भी हैं, जो छात्रों को जीवन में सफलता का पाठ पढ़ाते हैं। वर्षों से मुंबई मनपा स्कूल ही है जो आर्थिक रूप से कमजोर माता-पिता के बच्चों को शिक्षा तो दे ही रहे है साथ ही असंख्य धनाढ्य लोगों के बच्चे हैं, जो विभिन्न स्कूलों में एक ही क्लास में बार-बार फेल हो जाते थे फिर उनके माता-पिता उनका नाम मुंबई मनपा के स्कूलों में लिखा देते थे, फिर फेल हो चुका छात्र मनपा शिक्षकों की मेहनत की वजह से मनपा स्कूल से दसवीं की परीक्षा भी पास हो जाता था। आज भी पास होने का वही चलन जारी है। आखिर यह शिक्षकों की मेहनत ही तो है। वास्तव में मनपा स्कूलों में पढ़ने वाले असंख्य छात्रों के माता-पिता फल-सब्जी या फिर किराने की दुकान चला रहे हैं। यह दुकानें उनके निवास स्थान में ही होती हैं। किराये के घर में रहने वाले ये लोग अपनी आर्थिक समस्या को ध्यान में रखकर दुकान और मकान को एक साथ जोड़कर रखने हेतु विवश होते हैं।
आज मुंबई शहर में किराए के घर में रहने का साहस बहुत ही कम लोग कर सकते हैं। इन घरों की संख्या निरन्तर बढ़ रही जनसंख्या के हिसाब से बहुत ही कम है। फलस्वरूप इनका किराया बहुत अधिक होता है। मुंबई की सबसे बड़ी समस्या यहां की जनसंख्या ही है, हर कोई जैसे इस समस्या से अनजान बना बैठा है। यहां मनपा के अस्पताल और स्कूल ही हैं, जिनकी वजह से हर बीमार का इलाज हो जा रहा है और हर बच्चे को शिक्षा मिल जा रही है। अन्यथा आज पता नहीं कितने माता-पिता को अपने बच्चों को बीमारी और शिक्षा न देने का गम सता रहा होता। मुंबई की शिक्षा व्यवस्था में मुंबई महानगर पालिका के शिक्षकों ने अपना जो योगदान दिया है उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है।
जिस तरह से महंगाई और बेरोजगारी बढ़ी है, ऐसे हालात में भी मनपा के ही शिक्षक हैं, जो कभी-कभी ही नहीं अक्सर एक-दो भूखे प्यासे बच्चों को जो खाना अपने घर से अपने खाने के लिए लाते हैं, बच्चों को खिलाकर सुकून पाते हैं। वैसे पहली से आठवीं तक बच्चों को मुफ्त भोजन मिलता है। लेकिन नौवीं और दसवीं के छात्रों को नहीं मिलता है। ऐसे में माध्यमिक स्कूल में कार्यरत ये शिक्षक ही छात्रों के माता-पिता के रूप में अपनी भूमिका निभाते हैं। मुंबई महानगर पालिका के प्रत्येक शिक्षक में जिस प्रकार से विद्यार्थियों के प्रति अपने बच्चों की तरह लगाव की भावना है, वैसी भावना लाखों रुपए फीस देकर नामचीन स्कूलों के शिक्षकों में शायद ही मिले। यह एक कटु सत्य है कि जहां धन अधिक है, वहां दया कम है, और जहां दया अधिक है, वहां धन कम है। इस सत्य का प्रमाण समय-समय पर हर कोई अनुभव कर ही रहा है। रही बात मनपा स्कूल में पढ़ रहे बच्चों की तो वे सचमुच में ही बहुत ही अच्छे होते हैं बस उन्हें और अच्छा बनाने का काम मनपा का हर शिक्षक करने में व्यस्त है।
दूसरी ओर यदि देखा जाए तो जिस प्रकार से मुंबई में समुद्र है वैसे ही बृहन्मुंबई महानगरपालिका के स्कूल भी ज्ञान का भंडार हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि समुद्र जिस प्रकार से नि:स्वार्थी है ठीक उसी तरह मनपा भी है जो हर बच्चे को सभी शैक्षणिक सामग्री मुफ्त तो देती ही है, साथ ही ड्रेस भी मुफ्त देती है। आखिर मनपा तो बेस्ट है ही जो सभी की चिंता करती है। रही बात बच्चों के स्कूल में समय की तो जिनके माता-पिता सब्जी या किराना दुकान चलाते हैं तो ऐसे में यदि सुबह के समय उनके बच्चें स्कूल जाते हैं, दोपहर में स्कूल से घर आते है तो उनके घर से जुड़ी हुई दुकान की वजह से वे पढ़ाई करते -करते ग्राहक को समान भी दे देते हैं। वहीं दूसरी ओर अगर छात्र दोपहर में स्कूल जाता है तो वह सुबह में पढ़ाई करते-करते ग्राहकों को समान भी दे देते हैं। ऐसे में जाने-अनजाने छात्र भविष्य में स्वयं आत्मनिर्भर बनने का पाठ भी सीखते हैं।
मुंबई मनपा के स्कूल आफिस टाइम के हिसाब से अर्थात सुबह आठ, नौ, दस, ग्यारह बजे से नहीं चलते, यदि ऐसा होता तो अब तक छात्र संख्या अस्सी प्रतिशत से भी अधिक कम हो जाती। क्योंकि मनपा स्कूल के छात्र अपने माता-पिता के साथ सहायता करने हेतु तत्पर रहते हैं। वे पढ़ाई के साथ ही घर के लोगों की मदद भी करते हैं। इसीलिए तो मुंबई मनपा के विद्यालयों में बात ही ऐसी है कि यहाँ पढ़ने वाले छात्र मुंबई के साथ ही कलवा, मुंब्रा ही नहीं बल्कि वसई , विरार , टिटवाला और बदलापुर से भी आते हैं। शायद यही वजह है छात्रों के दबे तथा खोए हुए आत्मविश्वास को यहां इस कदर बढ़ाया जाता है कि सब्जी या फल-फूल बेचने वालों के असंख्य बच्चे आज नामचीन कालेजों में प्रिसिंपल, व्याख्याता के पद पर ही नहीं बल्कि वे वकालत से लेकर चिकित्सा, इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्र में अपनी प्रतिभा के बल पर टिके हुए हैं। बहुत सारे तो मनपा में नगरसेवक तथा विधानसभा में विधायक और संसद में सांसद रह चुके हैं। बहुत से अभी भी हैं। आखिर रघुनाथ माशेलकर जैसे महान वैज्ञानिक भी तो इसी मनपा के छात्र रहे हैं। वास्तव में यही सच है।
मनपा मुंबई की शिक्षा की प्राणवायु है। ऐसे में चर्चा मनपा के दसवीं के परीक्षाफल की जाए तो मनपा के 49 अनुदानित और 161 गैर अनुदानित स्कूलों का परीक्षा फल सदैव अच्छा रहता है। बहुत से स्कूलों के शत-प्रतिशत छात्र उत्तीर्ण रहते हैं। बहुत सारे विद्यार्थी 90 प्रतिशत से भी अधिक अंक पाते हैं। इसीलिए तो मन कहता कि “हे बीएमसी तुझमें पता नहीं क्या जादू है?कि तू सभी की जिंदगी में शिक्षा का दीप जला रही है।” वहीं हमारे आयुक्त, उपायुक्त, शिक्षणाधिकारी, उपशिक्षणाधिकारी, मुख्याध्यापक, शिक्षक, पी.टी.शिक्षक सभी के मेहनत की वजह से मनपा स्कूलों के छात्रों की दिन-प्रतिदिन प्रगति हो रही है। दसवीं कक्षा के सभी मनपा स्कूलों के जिन छात्रों तथा शिक्षकों के परीक्षा परिणाम अच्छे होते हैं, उनका सत्कार स्वयं मनपा शिक्षा विभाग द्वारा किया जाता है। जिसमें स्वयं महापौर , शिक्षणाधिकारी, उपशिक्षणाधिकारी, अधीक्षक ,सभी माध्यम के विभाग निरीक्षक जो कि पूरे वर्ष भर सभी स्कूलों में जा जाकर यही कहते हैं कि आप का दसवीं का परीक्षा फल अच्छा आना चाहिए । साथ ही स्वयं शिक्षणाधिकारी, उपशिक्षणाधिकारी और अधीक्षक भी अपने व्यस्त से व्यस्तम समय में से समय निकालकर प्रत्येक स्कूल में जाकर छात्रों को मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन देकर छात्रों तथा शिक्षकों का मनोबल बढ़ाते हैं।
इन्हीं अधिकारियों की गरिमामय उपस्थिति में किया गया सत्कार हो या फिर महापौर द्वारा किया गया सत्कार हो। सभी समारोह मनपा को जिम्मेदार सिद्ध करती है। इसीलिए तो मनपा शिक्षा जगत का कोहिनूर है और शिक्षक छात्रों के भविष्य को कोहिनूर की तरह चमकाने वाले। इसीलिए मनपा के स्कूल ही हैं, जो बचेंगे तो मुंबई की शिक्षा व्यवस्था बचेगी, अन्यथा कुछ भी शिक्षा के हित में नहीं होगा।