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क्या तुम लौटा सकते हो

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सुनो……..
क्या तुम लौटा सकते हो
मेरा चाँद
तुम्हारे लिए
जो कभी चिढ़ाता था मुझे
बादलों की ओट से छिपकर

वह नीला आसमान
लौटा सकते हो
जिसके नीचे हमदोनों
साथ बैठकर
अपने सपनों में पंख लगाते थे

लौटा सकते हो
वे चिंताएं
वह ख्याल
जो रखा मैंने हर पल
तुम्हारे दुःख भरे दिनों में

तो फिर क्यों लौटा रहे हो
वह किताब
वह खत
वह ख्याल
क्या तुम लौटा सकते हो

वह नींद
वह ख्वाब
जो आया था चुपके से
एक दिन तुम्हारे सिरहाने
लौटा सकते हो
वह रास्ता
जिस पर तुम साथ चले थे मेरे
मैं जानती हूँ
तुम नहीं लौटा सकते हो
नही लौटा सकते
तुम मेरा स्पर्श
मेरी छाँह
न मेरे बदन की खुशबू
जो तुम्हारे भीतर समा गई थी एक दिन बहुत गहरे

जब डूबती हुई शाम नहीं लौटाई जा सकती
नहीं लौटाई जा सकती
वह सुबह
तो क्यों लौटा रहे हो वे चीज़ें
जो ख़रीदी जाती हैं पैसे से हर बार

तुम मेरे आँसू नहीं लौटा सकते
आत्मा की मेरी कराह
मेरी बेचैनी
तो कभी नहीं

नहीं लौटा सकते
जो तुम्हें अपनी क़िताबों के साथ दी थी मैंने
क्योंकि ये चीज़ें
कभी बेची नहीं जाती
तुम यह सब लौटाकर
एक सच को
झूठलाने की कोशिश मत करो

एक मनुष्य ने अगर
गुज़ारा है किसी मनुष्य के साथ
कोई ख़ूबसूरत क्षण
तो वह किसी भी सूरत में
नहीं लौटाया जा सकता

तुम कितना भी नाराज़ हो जाओ
पर तुम मेरा प्यार
नहीं लौटा सकते हो
वह तुम्हारी स्मृति में
पड़ा रहेगा महफ़ूज़
जैसे मनुष्य की स्मृति में
पड़ी रहती हैं
नदियाँ और तितलियाँ
फूल और चाँद…..

अनामिका सिंह

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