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अस्मिता की खोज में कालीन नगरी

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हमार पूर्वांचल
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प्रयागराज से अंकित मिश्र की रिपोर्ट

काशी और इलाहाबाद जो अब प्रयागराज हो गया हैं, के मध्य में एक जिला भदोही नाम तो सुना ही होगा किसी ज़माने में कालीन उद्योग के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध था। मैंने भी सूना था पिताजी बताया करते थे बचपन में बेटा तुम जिस जिले में हो पुरे विश्व के कालीन उद्योग में विख्यात हैं। बस नाम ही सुना कभी देखा नही की भदोही की कालीन होती कैसी हैं? अखिया ओझल हो गईल बा कालीन देखई खातिर।

कितना गर्व महसूस होता हैं यह सुनकर लेकिन समय के साथ-साथ भदोही का कालीन उद्योग सिर्फ इतिहास के पन्नो में सिमट कर रह गया। मन बार-बार प्रश्न करता हैं आखिर क्या कारण रहा होगा? जो आज भदोही अपनी पहचान के लिए तरस रहा हैं। क्या हम आने वाली पीढ़ी को कहानियो में ये किस्सा सुनाया करेगे की प्राचीन काल में भदोही कालीन का राजा कहा जाता था।

आज विश्व में लोग अपने अच्छे-अच्छे कार्यो के लिए एक पुरस्कार से नवाजे जा रहे हैं। एक अइसन ही पुरस्कार दिया जात ह जेकर नाम हैं #नोबेल पुरस्कार। 2014 में कैलाश सत्यार्थी जी को भी बाल श्रम निषेध में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया। सुनकर ख़ुशी हुई। अब आप सोच रहे होंगे यहां इनकी क्या जरूर हैं? दरसल उत्तर प्रदेश अपने अत्यधिक जनसँख्या के कारण नागरिकों को रोजगार न दे पाना और उचित विकास में पिछड़ गया हैं,जिसके कारण यहां बच्चे से लेकर सभी लोग काम करते हैं और भारत में बच्चे अर्थांत बाल श्रम को गैर कानूनी माना जाता हैं ये अलग बात हैं कि सिर्फ माना ही जाता हैं।

सत्यार्थी जी बाल श्रम को लेकर बहुत काम किया ये दूसरी बात हैं कि सिर्फ काम किया सुनने में आया हकीकत में किया कुछ नही। बाल श्रम को लेकर ओ जर्मन में एक बार धरना दिए की भारत के उत्तरी पूर्वी राज्यो के कुछ जिलो में बाल श्रम ज्यादा कराया जाता हैं क्योंकि 1991 तक भारतीय प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने भारत को ओपन बाजार (वैश्वीकरण) और विश्व बाजार संगठन(WTO) में शामिल कर दिया था जो उसी प्रकार था जैसे शेर(अमेरिका), चिता(यूरोपीय देश), बाघ(मल्टीनेशनल कंपनिया ) के बीच में गाय(भारत) को छोड़ दो और बोलो संघर्ष करो।

कैलाश सत्यार्थी जी के धरने को देखते हुए पूरे विश्व ने भारत से कालीन आयात करना बंद कर दिया। क्योंकि उन्हें भारत के कालीन उद्योग से कड़ी टक्कर मिल रही थी। जिसका असर भदोही के कालीन उद्योग पर पड़ा क्योंकि अति पिछड़े होने के कारण इस जिले के रोजगार का एक मात्र साधन कालीन उद्योग ही था। जो बच्चो से लेकर बूढो तक के रोजगार का साधन था। धीरे-धीरे भदोही का कालीन उद्योग अपनी अस्मिता को ढूढने लगा। उत्तर प्रदेश सरकार तो अपने जातिवादी राजनीती और अयोध्या राम मंदिर को लेकर मदमस्त थी,साथ ही भारत सरकार भी चाँद के पार चलो के सपने में खोई थी। लोगो का ध्यान भटकाने के लिए बाद में सत्यार्थी जी को नोबेल पुरस्कार देकर इस पुरे मुद्दे को दबा दिया गया।

आखिर कब तक हम यू ही सरकारों के कामकाज को लेकर मूक दर्शक बने रहेंगे कब तक…….अब भदोही का कालीन उद्योग उसी प्रकार चल रहा हैं जैसे वेंटिलेटर पर लेटा हुआ एक मरीज जिसको खुद पता नही कब उसकी सांसे बन्द हो जाये।

 

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