Home अंबेडकर नगर जातिगत आरक्षण देश के लिये घातक, बदली जाये दलित की परिभाषा

जातिगत आरक्षण देश के लिये घातक, बदली जाये दलित की परिभाषा

1613
0
ambedkar nagar
दबंग दलितों का सवर्णों पर कहर

बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के नाम पर देश की सभी पार्टियां वोट मांगकर सत्ता पर काबिज होती रही हैं, लेकिन बाबा साहब की बातों को अनुसरण करने का काम किसी भी दल ने नहीं किया। वर्तमान समय में देश की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी, कभी देश की सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस या सपा बसपा जैसे तमाम क्षेत्रीय पार्टियों ने केवल बाबा साहब का नाम लेकर आम जनता को भड़काया और वोट लेकर अपनी ही झोली को भरने में लगी रही। जिस बाबा साहब के नाम पर राजनीतिक दल आरक्षण की बात करते हैं वहीं बाबा साहब ने आरक्षण की वकालत सिर्फ 10 साल के लिये की थी ताकि अति पिछड़ी और गरीब जातियों को भी मुख्य धारा में लाया जा सके।

1947 में देश भले ही आजाद हो गया हो किन्तु गोरे अंग्रेजों के हाथ से निकल कर सत्ता काले अंग्रेजों के हाथ में आ गयी और मनमाने तरीके से सत्ता का संचालन करने लगे। यदि संविधान के नाम पर शपथ लेने वाले संविधान के अनुरूप काम कर रहे होते तो आज आरक्षण की जरूरत नहीं होती। सच तो यह है कि आरक्षण का सही प्रयोग न करने के कारण ही सपा बसपा जैसी क्षेत्रीय पार्टियों की सृजन हुआ और सभी ने सवर्णो को अत्याचारी बनाकर पेश किया। जिससे समाज बंटता रहा।

किसे मिल रहा आरक्षण का लाभ

आरक्षण के नाम पर शुरू हुई राजनीति अभी तक जारी है। उम्मीद थी कि भाजपा सरकार आने के बाद आरक्षण का आधार जातिगत नहीं बल्कि आर्थिक आधार पर कर दिया जायेगा। जिसकी आज जरूरत है किन्तु भाजपा भी उसी रास्ते पर चलकर अपना वोटबैंक बनाने के चक्कर में पड़ी है ​जो सभी पार्टियों ने किया था। जातिगत आरक्षण का दुष्परिणाम देखा जा रहा है कि जिन्हें एक बार आरक्षण के तहत नौकरी मिल गयी वे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर, सुविधा शुल्क देकर और आरक्षण का लाभ लेकर नौकरी भी दिलवा दे रहे हैं, लेकिन उसी जाति का व्यक्ति अपने बच्चों का पेट नहीं भर पा रहा है फिर कितना भी आरक्षण मिल जाये नौकरी कैसे मिलेगी।

bhadohi
क्या इसलिये इन्हें आरक्षण नहीं मिलेगा, क्योंकि यह ब्राह्मण हैं

क्या सवर्ण गरीब नहीं होते हैं…

अंबेडकर नगर जिले के टांडा में एक बोरी गेहूं चोरी करने का आरोप लगाकर एक दलित ने दो सवर्णों को खुलेआम पीटा और रस्सी में बांधकर पूरे गांव में घुमाया। वे दो घंटे रस्सी में बांधकर गांव में घुमाते रहे और उनके परिजन हाथ पांव जोड़कर गिडगिड़ाते रहे। हद तो यह थी कि उन्हें अर्धनग्न करके घुमाया और उसी हालत में पुलिस के हवाले कर दिया। यदि पीएम मोदी का नया एससी.एसटी. बिल लागू हो गया होता तो उन्हें जेल भी भेज दिया जाता और उनकी सुनवाई भी नहीं होती, क्योंकि वे सवर्ण थे।
वहीं भदोही जिले के सियरहां भानूपुर के गांव में एक ब्राह्मण परिवार के पास एक विस्वा जमीन नहीं है और जर्जर कच्चे मकान में दिन गुजारता है। सवर्ण होने के कारण उसे कोई सरकारी सुविधा लेने का हक भी नहीं है। ऐसे हालात में दलित कौन है। इस बारे में सभी को सोचना होगा।

बदली जाये दलित की परिभाषा

आज के परिवेश में अब दलित शब्द की परिभाषा बदलने की जरूरत है। दलित का मतलब होता है जिसे समाज में दबाया गया हो, उसके हक को कुचला गया हो। देखा जाय तो समाज में सिर्फ दो वर्ग होते हैं। अमीर और गरीब। दलित वहीं है, जिसे रहने की जगह न हो, जो भूमिहीन हो, जिसके पास आय का कोई साधन न हो। जो सक्षम है, जिसके पास सारी सुविधायें हों, वह दलित नहीं हो सकता है। चाहे वह किसी भी जाति का हो। आवश्यकता है दलित की परिभाषा बदलने की। आवश्यकता लोगों की सोच को बदलने की। यदि समाज में समानता लानी है तो आरक्षण जाति के आधार पर नहीं बल्कि आर्थिक आधार पर करना होगा। नहीं तो समाज और देश में विषमता फैलती रहेगी जिससे समाज में द्वेष बढ़ेगा और जातिगत आधार पर वैमनस्यता फैलेगी जो देश के लिये घातक होगा।

Leave a Reply