चैत्र शुक्ल पक्ष के नवरात्रों का आरंभ वर्ष 6 अप्रैल 2019 के दिन से होगा. इसी दिन से हिंदु नवसंवत्सर का आरंभ भी होता है. चैत्र मास के नवरात्र को ‘वार्षिक नवरात्र’ कहा जाता है. इन दिनों नवरात्र में शास्त्रों के अनुसार कन्या या कुमारी पूजन किया जाता है. कुमारी पूजन में दस वर्ष तक की कन्याओं का विधान है. नवरात्रि के पावन अवसर पर अष्टमी तथा नवमी के दिन कुमारी कन्याओं का पूजन किया जाता है.
इसमें देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूप – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि की बहुत हीं भव्य तरीके से पूजा की जाती है।
रेवती नक्षत्र के साथ शुरू होगी नवरात्रि
देवी के अलग अलग रूपों की आराधना का पर्व इस साल 6 अप्रैल से शुरू होने वाला है। ज्योतिष के अनुसार इस बार नवरात्र रेवती नक्षत्र के साथ शुरू होगा। उदय काल में रेवती नक्षत्र का योग होने से साधना और सिद्धि का फल कई गुना अधिक प्राप्त होता है।रेवती नक्षत्र पंचक का पांचवां नक्षत्र है। इस नक्षत्र का शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से एक घंटे तक स्पर्श होना और साथ ही उदय काल से करीब 45 मिनट तक बने रहना,
धन तथा धर्म की वृद्धि के लिए खास है ये नवरात्रि साल में दो नवरात्रि आती है लेकिन चैत्र में आने वाले माता के ये नौ दिन यंत्र, तंत्र व मंत्र सिद्धि के लिए खास माने जाते हैं। इस दौरान धन प्राप्ति के लिए किए जाने वाले उपाय भी सफल होते हैं।
इस बार कहा जा रहा है कि पांच सर्वार्थ सिद्धि, दो रवि योग और रवि पुष्य योग का संयोग बन रहा है। शास्त्रों की दृष्टि से श्रेष्ठ योग है। ऐसे योगों में देवी मां की साधना का विशेष फल प्राप्त होता है।नवरात्र के इन प्रमुख नौ दिनों में लोग नियमित रूप से पूजा पाठ और व्रत का पालन करते हैं. दुर्गा पूजा के नौ दिन तक देवी दुर्गा का पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ इत्यादि धार्मिक किर्या पौराणिक कथाओं में शक्ति की अराधना का महत्व व्यक्त किया गया है. इसी आधार पर आज भी माँ दुर्गा जी की पूजा संपूर्ण भारत वर्ष में बहुत हर्षोउल्लास के साथ की जाती है. वर्ष में दो बार की जाने वाली दुर्गा पूजा एक चैत्र माह में और दूसरा आश्विन माह में की जाती है.
घट स्थापना मुहूर्त समय
चैत्र नवरात्र पूजन का आरंभ घट स्थापना से शुरू हो जाता है. शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत हो कर संकल्प किया जाता है. व्रत का संकल्प लेने के पश्चात मिटटी की वेदी बनाकर जौ बौया जाता है. इसी वेदी पर घट स्थापित किया जाता है. घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है. तथा “दुर्गा सप्तशती” का पाठ किया जाता है. पाठ पूजन के समय दीप अखंड जलता रहना चाहिए. इस वर्ष घट स्थापना 06 बजकर 09 मिनट से लेकर 10 बजकर 19 मिनट तक रहेगा. इसके पश्चात अभिजित मुहुर्त में भी स्थापना की जा सकती है.
दुर्गा पूजा के साथ इन दिनों में तंत्र और मंत्र के कार्य भी किये जाते है. बिना मंत्र के कोई भी साधाना अपूर्ण मानी जाती है. शास्त्रों के अनुसार हर व्यक्ति को सुख -शान्ति पाने के लिये किसी न किसी ग्रह की उपासना करनी ही चाहिए. माता के इन नौ दिनों में ग्रहों की शान्ति करना विशेष लाभ देता है. इन दिनों में मंत्र जाप करने से मनोकामना शीघ्र पूरी होती है. नवरात्रे के पहले दिन माता दुर्गा के कलश की स्थापना कर पूजा प्रारम्भ की जाती है.
तंत्र-मंत्र में रुचि रखने वाले व्यक्तियों के लिये यह समय ओर भी अधिक उपयुक्त रहता है. गृहस्थ व्यक्ति भी इन दिनों में माता की पूजा आराधना कर अपनी आन्तरिक शक्तियों को जाग्रत करते है. इन दिनों में साधकों के साधन का फल व्यर्थ नहीं जाता है. मां अपने भक्तों को उनकी साधना के अनुसार फल देती है. इन दिनों में दान पुण्य का भी बहुत महत्व कहा गया है.