Home मन की बात होली के त्यौहार का बदला स्वरुप- अलका पाण्डेय

होली के त्यौहार का बदला स्वरुप- अलका पाण्डेय

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पहले होली मेल मिलाप और प्रेम का प्रतीक व वैमनस्य को भुलाने का त्यौहार माना जाता था।
पर आज इसका स्वरुप बदल रहा है घर बड़े बुढों का न होना रीति रिवाजों का नयी पीढ़ी जानती नहीं बस सिरियल देख कर दिखावा भर रह गये है त्यौहार , पहले से समय भी बदल गया है , अब त्यौहारों पर पकवान नही बनते रोज ही घरो में नाना प्रकार के पकवान आते रहते है जब मन हुआ शांपिग कर ली कोई बंदिश नहीं न पैसों का अभाव रोज मौज मज़े सैर सपाटे तो त्यौहारों का महत्व भी कम हो गया है

पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव भी युवा पिढी पर हावी है लोग त्यौहारों पर पार्टी शराब आदि का चलन बढ जाने से कई बार रंग में भंग पड़ जाता है।
पहले वाला उत्साह उगना गीत फूलों के रंग बड़ों का सम्मान पैर पडाई , तिलक कर गले मिलना सब कम हो गया है अब हाय हलों का जमाना है पक्के व चटक रंगो से होली को बंदरंग बना दिया है
कई लोग भाभी देवर के रिश्ते की आड़ में भद्दा मज़ाक़ बना देते है जो पहले भाभी को आदर से देखते थे।

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