Home मन की बात होली का बदलता हुआ स्वरुप – रजनी साहू

होली का बदलता हुआ स्वरुप – रजनी साहू

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पर्वों की परम्पराएँ सदियों से हमारे देश में चली आ रही हैं ।ये हमारी संस्कृति की पहचान है, जो शालीनता से सद्भावना और आपस मे स्नेह से रहने का संदेह देती है ।
भव्यता,आडम्बरों और भी कई कारणों से हम उसका मूल उद्देश्य भूल जाते हैं ।
एक सज्जन मिले थे, उनका कहना था- “त्यौहार” का मतलब तुम्हारी हार है इसे क्यों मनाते हो ?
उनकी बात सुनकर मुझे बहुत हँसी आयी,मन ही मन मैंने सोचा इनके विचारों के संक्रमण का उपचार क्या है ?
खैर सभी को अपने देश में अभिव्यक्ति की आजादी है ,
तो मैंने भी कहा- “त्यौहार” शब्द में हार का अर्थ मेरे लिए पुष्प हार है और
मेरे भीतर की बुराइयों की हार है ।
हे सार्वभौमिक सत्ता! मेरी ऐसी प्रार्थना है कि
मेरे भीतर की आसुरी शक्तियों का किसी भी पर्व मे चाहे होलिका दहन या रावण वध उसका विनाश कर ।
एक खास दिन हम सभी सामूहिक रूप से एक दूसरे के लिए मंगल कामना करते है ।
कहते है कि ,सामूहिक प्रार्थना मे बहुत बल होता है ।
जो भारतीय दूसरे देश में हैं ,वो तरसते हैं त्योहार के लिए और उनसे पूछिए ,वे बतायेगें इनका महत्व ।
विडंबना है,जो हमारे पास है हमें उनकी कद्र नहीं है

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