दिन की शुरुआत भी तुझसे होती है, और ख़त्म भी तुझसे,
तेरी खुशबु से मेरी साँसों को राहत सी मिलती है,
तुझे देख़ लूँ अगर तो आँखों को ठंडक और दिल को सुकून मिलता है,
बरसात के मौसम में, ये दिल बस तेरा ही ज़िक्र करता है,
मेरी ज़रूरत पर तू मिल जाये अगर, तो ऐसा लगे, की जैसे बंजर ज़मीन पर पानी और न मिले तो मछली बगैर पानी,
जब कभी मेरे लब तुझे छुते हैं, तो गले से बस एक ही आवाज़ आती है,
” वाह! ” क्या चाय है |
लेखक: सुजान.ए. मिश्रा