वयोवृद्ध पिता के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई। वह जेल भी चला गया किन्तु समर्थ बेटा न केवल पिता के खिलाफ होती कार्रवाई को मौन आंखों से देखता रहा बल्कि कानून को भी निष्पक्षता से कार्रवाई करने की खुली छूट दे दी। बेटे के इस साहस को भले ही उसके स्वजन और शुभचिंतक कोसते रहें हों किन्तु चालू दौर की स्वार्थभरी मौका परस्त सियासत और इसके कारिन्दों की काली करतूतें सुन सुन कर कसमसा रहे लोग बेटे के ओहदे वाली कुर्सी के कर्तव्य परिपालन को देखकर सकते में हैं। वाकई यह घटना उनलोगों के लिये किसी प्रेरक प्रसंग से कम नहीं है। जो सार्वजनिक एवं प्रशासनिक दुनिया के अंग हैं।
पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के वयोवृद्ध पिता नन्द कुमार बघेल के खिलाफ रायपुर में सर्व ब्राह्मण समाज द्वारा एफआईआर दर्ज करायी गयी। उनपर आरोप था कि उन्होंने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में ब्राह्मणों के प्रति पीड़ायक टिप्पणी कर दी थी। ब्राह्मणों को भारतीय न मानते हुये गैर राष्ट्रों से आया माना था। इस टिप्पणी से ब्राह्मण समाज नाराज हो गया और ब्राह्मण संगठन ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी। नन्दकुमार बघेल के खिलाफ मामला दर्ज होते ही पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर न्यायालय के समक्ष पेश किया। न्यायालय ने उन्हें 14 दिन की रिमाण्ड पर उन्हें जेल भेज दिया।
बात तो सामान्य सी है। किन्तु इसमें असामान्यता यह है कि नन्द कुमार बघेल के पुत्र भूपेश बघेल स्वयं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री हैं। उनकी सरकार है। उनके राज्य में हर सरकारी अमला उनका है। इसके अलावा कांग्रेस जैसा विशाल राष्ट्रीय स्तर का संगठन उनके साथ खड़ा है।
बावजूद इसके भूपेष बघेल पिता द्वारा ब्राह्मण समाज के प्रति की गयी कटु टिप्पणी के बचाव में नहीं खड़े हुये। उन्होंने सार्वजनिक रूप से उक्त कथित टिप्पणी को अनुचित बताया और पिता के खिलाफ कानून को अपना काम करने की खुली आजादी दे दी। इसका एक दूसरा पक्ष भी है। मुख्यमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद की नैतिकता एवं कर्तव्य उनकी आत्मा को व्यक्तिगत रूप से कितनी पीड़ा दी होगी। इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। किन्तु सार्वजनिक दायित्व के आगे उन्होंने व्यक्तिगत हित को प्रभावी नहीं होने दिया। जो उन्हें वर्तमान सियासत के बीच एक ऐसे कर्तव्यनिष्ठ राजनीतिक शलाखा व्यक्तित्व के रूप में स्थापित किया जिसे इतिहास कभी उदाहरण देकर औरों को नसीहत देगा