प्रयागराज से अंकित मिश्रा
मिर्गिसिरा (गाव में जून के पहले सप्ताह में पड़ने वाली प्रचण्ड गर्मी को बोलते हैं) के तपन से शरीर गर्म दूध की तरह उबल रहा था । अचानक whatsapp ग्रुप में मैसेज आया की कल सुबह 10 बजे क्लास में पेले फिल्म दिखाई जायेगी । सुनते ही मन में हड़कंप मच गया क्या फिल्म देखने जाऊ । फिल्म होगी कैसी ? ऐसा क्या होगा इस फिल्म में जो मैं देखने जाऊ । मैं तो एक upsc का अभ्यर्थी हु क्या यह मेरे लिए जरुरी है। बहुत सारे प्रश्न इस तरह मन में हिलोरे लेने लगा जैसे गाव के खड़ंजे पर रिक्शा पर बैठा यात्री बोले भइया थोड़ा आराम से।
फिल्म देखते ही किशोर दा का एक गाना ‘तेरे चेहरे से नजर नही हटती ‘ – 1958 का फुटबॉल विश्व कप का फ़ाइनल देखने वाले सभी ब्राजीलियन लोगो का निगाह बिलकुल वैसे ही टेलीविजन पर गड़ी थी। वैसे ही होते हैं प्रयागराज में upsc के अभ्यर्थी जो मन में उठ रहे सागर की लहरों को दबाये ये मोटी -मोटी किताबो में रम सा जाते हैं।
1958 का फुटबॉल विश्व में ब्राजील टीम के उपर ये दबाव बनाया जा रहा था कि ओ ब्राजीलियन गिंगा स्टाइल को भूल कर कुछ नया सीखे अर्थांत यूरोपियन स्टाइल से खेले ठीक वैसे ही जैसे गाव से प्रयागराज में आईएस की तैयारी करने आये किसी अभ्यर्थी को फैले हुए कोचिंगों का सम्राज्यवाद ये बार बार कहता हैं कि तुम ncert मत पढो , पेपर तो बिलकुल मत पढ़ना सिर्फ मेरे कोचिंग नोट्स पढो और मेरे वेबसाइड के नोट्स देखना तुम्हे अगला आईएएस टॉपर बनने से कोई रोक नही सकता ये बिलकुल उसी प्रकार था कि अगर एक झूठ को बार बार बोला जाये तो ओ झूठ सही लगने लगता हैं।
एडसन आरंटिस डो नैसिमेंटो ‘पेले’ कहते हैं कि बहुत लोग ये सोचते हैं कि जो ज्यादा गोल करते हैं वो महान होते हैं क्योंकि गोल बहुत जरुरी हैं लेकिन महान खिलाडी वो हैं जो मैदान में हर साथी खिलाड़ी की सहायता करे ,उनका हौसला बढ़ा सके । लेकिन आज एक आईएएस अभ्यर्थी एक रूम में बैठ कर तपस्या करना , किताबो का ठेर लगाना चोरी चोरी नोट्स बनाना और अपना नोट्स मित्रो को नही देना मतलब लड़ाई upsc से नही मित्रो से हैं और टॉपर का लिस्ट आते ही मुगरी लाल के सपने देखता हैं।
एक आईएएस के लिए ब्रह्म आईएएस की वो तीन बाते अभ्यास , उत्साह और लगन ही आपको आपकी मंजिल तक ले जाने मदद कर सकता हैं । क्योंकि अक्सर upsc के तैयारी के दरमियान मन अक्सर भटकने लगता हैं चलो छोडो आईएएस उससे पहले कोई छोटी जॉब ले लिया जाये मतलब उत्साह की कमी। उत्साह सबकुछ हैं ये गिटार की तरह कसा और वाइब्रेट करता हुआ होना चाहिए ।
कुछ बाते मुझे हमेशा भटकाव से बचाता हैं और रोज उत्साह के साथ मंजिल की तरह चलने को उत्सुक करती हैं। सर का क्लास ख़त्म होते ही कहना “अच्छा ठीक हैं लगे रहो” ।
लॉस्ट में एक कविता से अपनी बात समाप्त करुगा-
मुड़ के देखो ,जरा फिर अपने दर को
क्या पता मिल जाए राहत चश्मेतर को।
Upsc के रास्ते ,आसा हैं लेकिन
कोचिंगों के बाजारवाद ने ,कर दिया मुश्किल सफर को।
अंकित मिश्र
ब्रह्म आईएएस