आज देश भ्रष्टाचारियों, दलालों, जातिप्रथा मतावलंबियों, बाहुबलियों और चापलूसों से ग्रस्त है। सरकारी अधिकारियों, तंत्रों, मतदाताओं की अज्ञानता, भय, स्वार्थ और चंद टुकडों पर बिकने वाली सोंच के कारण हमारा और हमारे क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं को हम चुनकर भेजते है, वे देश और क्षेत्र के प्रति उदासीन बन जाते हैं। पाँच वर्ष तक जनता नेताओं और सरकार को गालियाँ देते रहती हैं जबकि गलतियां हमारी भी होती है जो हम नेताओं के लोगों की बातों में आकर अपने स्वहित फायदों के लालच में पाँच सालों तक ठगे रह जाते हैं वहीं सांसद, विधायक, मंत्री और क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं के कुछ खास लोगों का ही विकास हो पाता है।
देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हो इसीलिए चुनाव आयोग द्वारा टी. एन. शेषन के नेतृत्व में पहली बार १९९५ में आदर्श चुनाव आयोग का गठन किया गया जो बहुत ही प्रभावशाली रहा परंतु कालांतर में कुछ अधिकारियों ने रसूखदार प्रत्याशियों से मिलकर संविधान में कहे जाने वाले चुनाव यज्ञ में अपने स्वाभिमान की तिलांजली देकर आदर्श चुनाव की महत्ता खत्म कर दिए और अब धन बल पर नाकाबिल प्रत्याशी भी चुनाव जीत जाता है।
इस लेख के माध्यम से समाज को जागरूक करते हुए चुनाव आयोग को सलाह देने की संकल्पना है जिससे पारदर्शी आदर्श चुनाव कराने में मददगार साबित होगी।
प्रत्याशियों का चुनाव लड़ने के लिए चयन
सरकारी विभागों में नौकरी पाने के लिए आवेदक प्रत्याशी को कई चयन प्रक्रियाओं से गुजरता है जिसमें कई प्रकार के परिक्षण (टेस्ट) लिए जाते हैं, क्या हमारे देश, राज्य और नगर निगम पालिकाओं में समाज का प्रतिनिधित्व करने वालों को भी कडक परिक्षण (टेस्ट) नहीं देने चाहिए? देश की १२५ करोड़ की आबादी में से कोई बिड़ला ही नायाब हीरा को चुनकर हम हमारे क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजते है जो हमारे समाज को दशा और दिशा देता है। चुनाव आयोग और हमें चाहिए कि हम एक ऐसें प्रतिनिधी का चयन करें जो सरकारी अधिकारियों से भी अव्वल हो क्योंकि उन्हें देश, समाज और सरकार चलाने होते है यदि वे सरकारी अधिकारियों से कच्चे रहे तो वे अधिकारी उन्हें अपने मतानुसार चलाऐंगे। उनकी बौद्धिक क्षमता की परीक्षा, उनके नीतिगत किए कामों का अवलोकन आदि से देख परख कर हो तब ही देश व समाज को सशक्त परिपूर्ण नेतृत्व करने वाले राजा मिल पाएंगे वर्ना आज के परिवेश अनुसार जिसकी लाठी उसी की भैंस वाली कहावत ही चल रही है और चलती रहेगी।
समाज के प्रति योगदान
चुनाव आयोग को चाहिए कि सभी दलों के संभावित प्रत्याशियों की सूची चुनाव होने से करीब छह महीने पहले और निर्दलीय उमेदवार प्रत्याशी के सारे बायोडाटा,संपत्ती, उनके आमदनी और माध्यम, सामाजिक और व्यावसायिक संस्थाओं से जुड़े होने का ब्यौरा, प्रत्याशी के दूर तक के रिश्तेदारों की सूची और संपत्ती, समाज के प्रति किए गए कार्यों का लेखाजोखा आदि प्राप्त कर गहन जांच करनी चाहिए और सार्वजनिक करना चाहिए।
प्रत्याशियों का चयन
सारी जानकारी इकठ्ठा और गहन जांच हो जाने के बाद चुनाव आयोग को प्रत्याशी का कई प्रकार के फिजिकल टेस्ट (परीक्षण) करना चाहिए, हमारी सरकार जब हजारो पैसे खर्च कर आतंकवादी, गुनाहगारों के नार्को टेस्ट करती है तो यह लोग समाज के इमानदार कोहिनूर हीरे है उनका तो टेस्ट जरूर होने चाहिए। जिसके प्रश्न पैसे और दलाली लिए की नहीं, किसी तथा कितनों को छल और धोखा दिया, किसी की हत्या, बलात्कार, मारामारी, नाजायज संबंध, भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के नाम, कालाधन, रसूखदार आकाओं, मंत्री और नेताओं से सबंध और साथ में की गई अय्याशी आदि प्रश्नों द्वारा लाईव विडियो रिकार्डिंग के साथ पूछना चाहिए ताकि एक सभी परीक्षाओं में उत्तीर्ण इमानदार व्यक्ति ही समाज का प्रतिनिधित्व कर सकें। चुनाव आयोग प्रत्याशियों से जमानत की रक्कम लेती ही है जो चुनाव में परोक्ष व अपरोक्ष रूप से खर्च किये पैसों की नाममात्र रक्कम होता है, सभी को पता है कि चुनाव में पैसों की नदियाँ बहती है तो नार्को टेस्ट के खर्चों की रक्कम प्रत्याशियों से ही निकाला जाए।
चुनाव जीत में समाज का उत्तरदायित्व
चुनाव जीतकर प्रत्याशी किसी दल का ना बनकर समाज का हो जाता है। वह संबंधित विभागों में अपने क्षेत्र की समस्याओं और सुविधाओं में अपने क्षेत्र विकास, सुविधाओं और समस्याओं का निराकरण करने के लिए प्रतिनिधित्व करता है, इसी प्रकार से वह दलगत, जातिगत, पक्षपात से दूर हो कर देश का हो जाता है।चुनाव आयोग को चाहिए कि ऐसे कर्मठ प्रत्याशी, जो देश की सेवा करने के लिए लालायित रहते हैं उन्हें जीताएं, इतिहास गवाह है देश के वीरों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर भारतमाता की सेवा की है, अपनी एक एक संपत्ती को देश के लिए दान कर दिए ऐसे ही विचारों वाले कर्मठ प्रत्याशी का सम्मान करें और प्रत्याशी भी एक आदर्श स्थापित करें जिनका अनुकरण आने वाली पीढियां भी करें। वैसे तो सरकार नेताओं को सरकारी घर, सबसिडी, भत्ता, पेंशन आदि जीतते ही लागू कर देती हैं, आजीवन भरणपोषण की सुविधा करती है।
निष्पक्ष पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया
चुनाव आयोग को चाहिए कि स्कुल पाठशालाओं में पढाने वाले अध्यापक, स्टाफ, सरकारी विभागों के कर्मचारियों को चुनाव कार्यों में न लगा कर उन्हें उनके ही काम करने दें, चुनाव सुचारू रूप से होने के लिए सेना या पुलिस के महकमों की तरह एक रैपिड एक्शन टीम होनी चाहिए जिससे दल और उमेदवार प्रत्याशी को पता ना चल सके कि किस अधिकारी की पोस्टिंग कहाँ लगेगी जिससे भ्रष्टाचार नही हो पाएगा और निष्पक्ष पारदर्शी चुनाव हो पाएगा।
कई और भी पहलू है जिन पर काम किया जा सकता है, फिलहाल चुनाव आयोग के पारदर्शिता पर विचार कौंधा और हमार पूर्वांचल के माध्यम से समाज, चुनाव आयोग और सरकार के अनभिज्ञ पहलुओं पर प्रकाश डालने का प्रयास किया, सभी पाठकों से अनुरोध है कि एक जागरूक नागरिक बनकर आदर्श चुनाव कराने के लिए यह विचार चुनाव आयोग तक पहुँचाने में हमार पूर्वांचल की मदत करें।