देश के आजादी की लड़ाई से लेकर आजाद भारत में सात साल से अधिक समय तक शिखर पर रही कांग्रेस एक बार फिर अपने पुराने दिन वापस लाने के राह पर चल पड़ी है। वर्तमान के बहाने दूर का लक्ष्य लेकर जमीन पर उतरी कांग्रेस का सारा दारोमदार प्रियंका गांधी वाड्रा पर है। जो बीते महीने ही कांग्रेस की महासचिव और पूर्वांचल प्रभारी बनायी गयी हैं। माना जा रहा है कि प्रियंका राजनीतिक रूप से अब काफी परिपक्व हो गयी हैं। उनमें भविष्य के नफा नुकसान की मूल्यांकन करने की क्षमता है। वे किसी के हाथ की कठपुतली नहीं बन सकती। उन्हें कोई आसानी से बरगला भी नहीं सकता। वे मौका देखकर अपनी मौलिकता में परिवर्तन किये बगैर विपक्षी पर शालीन किन्तु जोरदार वार कर सकती हैं।
पिछले दिनों अपने बयानों भाषणों और जनसंवाद के दौरान उन्होंने इसे साबित भी किया है। प्रियंका की बड़ी खूबी यथार्थ को पहचानने और जन आकांक्षा को आसानी से ताड़ लेने की है। कांग्रेस के रणनीतिकारों को भी यह समझ में आ गया है कि जो कार्य राहुल नहीं कर सकते वह कार्य प्रियंका के नेतृत्व में पूरा किया जा सकता है। लंबे समय से राजनीति में सक्रिय और अब कांग्रेस के सर्वेसर्वा के रूप में राहुल वह करिश्मा नहीं कर पाये जिसकी उम्मीद कांग्रेसी लगाये थे।
राहुल के व्यक्तित्व की बड़ी कमी उनमें गंभीरता शालीनता और सौम्यता का अभाव है। बार-बार बांह चढ़ाकर बोलना उन्हें आक्रामता का लिबास भले दे किन्तु जनता इससे प्रभावित नहीं होती। जबकि प्रियंका उक्त तीनों गुणों के साथ धैर्यवान भी है। पति राबर्ट वाड्रा की सीबीआई में हो रही लगातार पेशी और पूछताछ, इसे लेकर विपक्ष का तीखा हमला भी प्रियंका को विचलित नहीं कर पाया है।
उन्होंने जिस तरह गुजरात के अपने पहले भाषण में कार्यकर्ताओं को जन और जमीन से जुड़े मुद्दों के साथ जनता के बीच जाने का सुझाव दिया, उससे यही लगा कि मुश्किल दौर में भी वे इस बात को भूल नहीं पायी कि जनता से जुड़े मुद्दे ही कांग्रेस को पुनः जनता से जोड़ सकेंगे। अपनी गंगा यात्रा के दौरान प्रियंका जिस तरह युवाओं से रोजगार किसानों से समस्या और महिलाओं से सुरक्षा का सवाल उठायी। वह जनता को काफी प्रभावित करने वाला रहा।
हालांकि इस दौरान उन्हें कई जगह मोदी मोदी के नारे भी सुनने को मिले। किन्तु इससे वे विचलित नहीं दिखी। ऐसा प्रदर्शित किया जैसे उक्त शब्द उनके कानों तक पहुंचे ही न हों। कांग्रेस के लिये प्रियंका कितना फायदेमंद होंगी इसे तो समय ही बतायेगा। किन्तु जिस तरह प्रियंका की सक्रियता से सपा बसपा खेमें में बेचैनी है उससे साफ लगता है कि यदि कांग्रेस अपने इसी राह पर चलती रही तो वर्तमान लोकसभा चुनाव उसे अपेक्षित परिणाम भले ही न दे सके। किन्तु आगामी विधानसभा और वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस देश समेत यूपी में एक मजबूत चट्टान की तरह खड़ी नजर आयेगी।
कांग्रेस के लिये ब्राह्मण मुस्लिम दलित और महिलायें शुरू से ही बड़ी ताकत रही हैं। जो समय के साथ कांग्रेस से छिटक कर अन्य से जुड़ गयी है। कांग्रेस की योजना इसी चारों को एक बार फिर संजोने की हैं। मंदिर मजार की परिक्रमा समेत रोजगार महिला सुरक्षा जैसे मुद्दे यहीं संकेत देते हैं कि कांग्रेस एक बार फिर अपनी पुरानी ताकत को एकजुट करने में लग गयी है। अब उसे गठबंधन अथवा महागठबंधन की नहीं बल्कि सबको नजरअंदाज कर भविष्य में शिखर पर पुनः पहुंचने की चिंता है।
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