हम चाहते है की देश विकसित हो, भारत विश्वगुरु बने, पर कुछ अराजक तत्व हैं, जो अपनी कूटनीतिज्ञ चाल के चलते युवाओं खासकर मुस्लिम युवाओं को बरगलाकर, फुसलाकर अपना उल्लू सीधा करनें की फिराक मे हैं। हम और हमारे मुस्लिम समुदाय के वो लोग जो भी सी.ए.ए के विरोध में है। या नागरिकता संसोधन बिल का विरोध कर रहें है। क्या उनका यह निजी फैसला है..?? कुछ जवाब नहीं मिलेगा कारण यह पृष्ठभूमि केवल नागरिकता अधिकार का नहीं बल्कि सत्ता की कुर्सी के अधिकार का हैं। अगर आप देखे तो वर्तमान सरकार, पिछली मनमोहन सिंह सरकार के ही, वो प्रस्ताव लेकर आ रही हैं जो कांग्रेस की ढुलमुल रवैयों के कारण उस कानून को अमलीजामा नही पहना सके।
आज दिल्ली की स्थिति ने हमे फिर वही का वहीं लाकर खड़ा कर दिया जहां हमे फिरंगी छोड़ गये थे।अपनी खास रणनीति के तहत, आज हमारे शहर नहीं जल रहे है, बल्कि हमारे सपने और बच्चों का भविष्य जल रहा हैं धू,धू करके। आग की लपटें कभी भेद नहीं करती हिंदू और मुसलमान का, फिर साहब लपटें आग की हो या भूख की पिसता बेचारा मध्यमवर्गीय ही हैं।या पिसता वही गरीब हैं जो बिना मजदूरी किऐ (सड़क पर निकले बिना )अपना और अपने परिवार को नहीं खिला-पिला सकता हैं। कयी दफा आगजनी और पत्थरबाजी के नमूनों को देख चुके हम और हमारे रणनीतिकार आखिर ऐसी नीति का विकल्प ढूँढने मे असफल क्यू हैं इसके कारण का यही पता लगेगा संतुष्टीकरण की राजनीति
देशहित मे लिए गये फैसलों मे तृष्टिकरण नहीं, राष्ट्रीयकरण सर्वोपरि हैं। ऐसे समय में जब राजधानी जल रही है, सभी विपक्षियों की जिम्मेदारी हैं आप राष्ट्रोत्थान मे लोकतंत्र की मर्यादा का बखूबी खयाल रखे। और अपने निजी स्वार्थों को त्यागकर देश की विकास गति मे अपना योगदान दे। हम यह भी जानते है की ऐसी घटनाओं मे उपद्रवी सरकार को दोषी मानती है पर, नुकसान तो आप अपनी स्वयं की पीढ़ी और समाज का करते हैं।