अनेक शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों के कयी दल होते हैं। प्रत्येक दल विद्यार्थियों को अपनी ओर खींचने की कोशिश करते हैं। एक दूसरे शिक्षकों का उन बच्चे-बच्चियों के सामने निन्दा करते हैं। ऐसे में शिक्षकों के प्रति बच्चे-बच्चियों के द्वारा अश्रद्धा हो जाए तो उनका क्या दोष ?
इसी तरह कई शिक्षक विभिन्न राजनीतिक दलों से प्रभावित रहते हैं। वे अपने व्यक्तिगत प्रभाव से भोले-भाले विद्यार्थियों को राजनीतिक उद्देश्य को पूरा करने में यंत्र की तरह इस्तेमाल करते हैं। आज की राजनीति से सब वाकिफ हैं। बस एक दूसरे पर कीचड़ उछालना इनका काम है। अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए दूसरों की कमजोरी को ऊँची आवाज में हवा देना इनका काम है। ऐसी अवस्था में विद्यार्थियों के अनुशासन की बात करना ही बेकार है।
विश्वविद्यालयों में तो कहना ही क्या है! वहां तो राजनीतिक दलबाजी के सिवाय और कुछ होता ही नहीं। सरलता,साधुता, अनुशासन तो दूर-दूर तक नजर नहीं आता। युवा छात्र-छात्राएँ एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने में महारत हासिल कर लेते हैं। विद्यार्थियों के यह विशेष राजनीतिपटुता ही अनुशासन हीनता का मूल कारण है। इस में शिक्षा-व्यवस्था या अभिभावकों का आचरण भी कम जिम्मेवार नहीं है।आज घर-घर में, व्यक्ति-व्यक्ति में राजनीति घुस गई है। इसमें राजनीति का दोष नहीं है राजनीति की परिभाषा बदल जाने के कारण जो दुष्प्रभाव हो रहा है। उसका सबसे बड़ा दोष है।
गणतंत्र में तो और भी बुरा हाल है। अपरिपक्व युवापीढ़ी का सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है। जिस उम्र में इन्हें अपना भविष्य गढ़ना सिखना चाहिए उस उम्र में इन्हें राजनीतिक गुंडा, अपराधी बना दिया जा रहा है।
घर-बाहर, स्कूल -कॉलेज सब जगह दूषित राजनीतिक माहौल के कारण आज के छात्र-छात्राएँ अनुशासनहीन होते जा रहे हैं। अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए देश-समाज को अहित करने में भी नहीं चूक रहे हैं।
देश और समाज ही नहीं बल्कि दुनिया के भलाई के लिए शिक्षा को राजनीतिकरण से दूर रखना ही होगा।
वस्तुतः राज्य के भला के लिए नीति राजनीति है। यह अनुशासन से ही संभव हो सकता, जिसकी शिक्षा विद्यालय में शिक्षकों के द्वारा तथा घरों में अभिभावकों द्वारा दी जा सकती है।