भदोही – बिहार में सीट बटवारे की राजनीतिक कबड्डी के बाद उत्तर प्रदेश के गठबंधन पर सबकी नजरें टिकी है। ऐसे में काशी (वाराणसी) का तो पता नहीं और ‘प्रयागराज’ को ‘योगी-मोदी’ ने सजा ही दिया है लेकिन काशी-प्रयाग मध्य (भदोही संसदीय) क्षेत्र की सीट पर सबसे ज्यादा खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में ‘गठबंधन’ की ‘आड़’ में ‘सियासी चक्रव्यूह’ रचे जाने की खबरें भी ‘दिल्ली दरबार’ में चल रही है।
गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में काशी-प्रयाग मध्य (भदोही संसदीय) क्षेत्र में जब वीरेंद्र सिंह (मस्त) की पुन: प्रत्याशी बतौर इंट्री हुई तो उन्हें किसान मोर्चा की वजह से कट्टर किसानों समर्थक माना जाता था।
चुनावी मैदान में उतरे लहगर पगड़ी के साथ द्वार-द्वार पैदलमार्च करके उठ-बैठकर जलपान किये तो इनकी शालिनता देखकर इन्हें कुछ ब्राम्हण धार्मिक मान बैठे और कुछ कांग्रेस से उबे थे तो, कुछ मतदाता मोदी लहर में कुदकर नैया पार करवा दिये। फिर ‘सांसदजी’ ने इसके बाद इस पंचवर्षीय कार्यकाल में उन्होंने कई बार संसद में जोरदार उपस्थित दर्ज करवाई और भदोहीवासियों का सिर फक्र से ऊंचा कर दिया और ‘पगड़ी की लाज’ तो भदोही सांसद वीरेन्द्र सिंह (मस्त) ने ऐसा बचाया कि राज्य ही नहीं राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय समर्थकों की झड़ी लग गयी। किसान मोर्चा के लिए शिक्षित किसानों को विभिन्न राज्यों में पदाधिकारी बतौर भी इन्होनें सक्रिय कर रखा है। फिर भी इतनी महत्तवपूर्ण सीट पर भाजपा केंद्रीय विचारकों द्वारा निर्णय ले पाना सिर दर्द बन चुका है। ऐसी जानकारी विश्वस्त राजनीतिक सुत्रों एवम् दिल्ली दरबारियों से मिल रही है कि ‘गठबंधन’ के बहाने ऐ महत्वपूर्ण सीट सियासी चक्रव्यूह में फंस रही है। वैसे फंसती तो नहीं लेकिन ‘खेवनहार’ के बजाय ‘मझधार’ फंसवाने वालों की सक्रियता दमदार है।
दावेदारों की सियासी कसरत…
विभिन्न कारणों से भदोही जिला सदैव राष्ट्रीय पटल पर सुर्खियों में रहने लगा है। लोकतान्त्रिक एवम् मानवतमयी आवाज भी यहां ज्यादा उठती रहती हैं। ऐसे में महाराष्ट्र के एक के दमदार ‘दिल्ली दरबार’ सांसदजी का अनौपचारिक तथ्य मानें तो..ऐसे में २ से ३ नये नवेले ‘जमीनी शुन्य’ धनपशु नेता ‘दिल्ली दरबार’ करीबन १ साल से सीट हांसिल करने हेतु राजनीतिक कबड्डी खेल रहे हैं। जहां उच्च राजनीतिक दरबार पकड़कर टिकट के जुआड़ में हैं, वहीं वर्तमान ‘सांसदजी’ के जमीनी खामियों का पुलिंदा भी खोल रहे हैं। इसके साथ ही पार्टी के ही स्थानीय विधायकों में से एक विधायक भी इच्छाशक्ति बनाये हैं कि सीट मिल जाये तो सीट भाजपा के नाम पर निकल जायेगी और विधायकी क्षेत्र में तो पकड़ भी है और दूसरी पार्टी से आये हैं तो विधायक से सांसद टिकट बतौर स्थानीय होने के नाते प्रमोशन की मांग अंदर ही अंदर दर्शा रहे हैं और कुछ उनके विशेष करीबी जिला स्तरीय भाजपाई भी उनके पक्ष में सोशल मीडिया पर मोर्चा खोले हैं लेकिन अब उन्हें भी हफरी छूट रही है कि टिकट हाथ नहीं आने वाला ऐसा आभास हो चुका है।
ऐ भी हैं मुख्य दावेदार..
भाजपा के साथ खुलेआम खड़े होने वाले ज्ञानपुर विधायक विजय मिश्रा सबसे प्रबल दावेदारों में से एक हैं। जगजाहिर है कि ‘काशी-प्रयाग मध्य’ धार्मिक ध्वजवाहकों की नगरी है और ऐसे में भाजपा के साथ तटस्थता से खड़े रहने वाले विजय मिश्रा ने जनता के दिल को यह कहकर जीत लिया है कि क्षेत्र के विकास के साथ देश की अखंडता एवम् स्मिता के लिये भाजपा के साथ खड़े रहेगें। क्षेत्र के जमीनी विकास में सर्वश्रेष्ठ कार्य से विजय मिश्रा पूर्वांचल टाॅप हैं और पुर्वांचल की कई विधान सभाओं में उनकी लोकप्रियता मतदाताओं में गहरी पैठ है और ऐसे में भाजपा के प्रति समर्पण भावना देखकर एवम् राजनैतिक कद देखते हुए कई केंद्रीय मंत्री चाहते हैं कि विजय मिश्रा को भदोही संसदीय क्षेत्र की जिम्मेदारी मिले, जिससे पुर्वांचल की कई सीटों पर भी लाभ होगा।
गठबंधन का केन्द्रीय चक्रव्यूह…
जहां भाजपा की विभिन्न में राज्यों हार से हालत पतली हुई है, वहीं अन्य पार्टियों को गठबंधन का ‘हिस्सा’ संसदीय सीट भी देना है। ऐसे में भाजपा की केंद्रीय टीम इस बार फूंक-फूंककर कदम रख रही है। विश्वत राजनैतिक सुत्रों का दावा है कि भदोही भाजपाईयों की संसदीय सीट हेतु आपसी कलह एवम् अन्य कारणों से सीट गठबंधन में देने के केन्द्रीय विचारक पक्षधर हैं। ऐसे सबसे ज्यादा वर्चस्व में इस सीट पर ‘बसपा’ एवम् ‘अपना दल(एस)’ का है। खैर.. केंद्रीय सियासत की सक्रियता से भदोही संसदीय सीट गठबंधन के चक्रव्यूह में फंसती नज़र आ रही है लेकिन राजनीतिक उल्लू किस करवट बैठेगा ऐ फाईनल पार्टियों के गठबंधन एवम् सीटों के बंटवारे के बाद ही पता चलेगा। यह भी तय माना जा रहा है कि ‘अपना दल (एस)’ की मुखिया ने इस सीट पर परचम लहरानें का दावा भी ठोंक दिया है।