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जानिए क्या हैं देव प्रबोधनी एकादशी

हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के दिन पड़ने वाली एकादशी को देव उठनी या देव प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है. मान्यता है कि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह तक के लिए शयन मुद्रा में चले जाते हैं और चार महीने बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देव उठनी एकादशी के दिन निद्रा से जागते हैं.  इन चार महीनों के दौरान शादी-ब्याह, गृह प्रवेश जैसे  किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं, लेकिन देव उठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के जागने के साथ ही मांगलिक और शुभ कार्यों की भी शुरुआत हो जाती है.

इस बार देव उठनी एकादशी 19 नवंबर, सोमवार को है, लेकिन इस बार कुछ अलग स्थिति बन रही है. दरअसल, देव उठनी एकादशी के 58 दिन तक मांगलिक कार्यों के लिए कोई शुभ मुहूर्त नहीं है, इसलिए  नए साल यानी 2019 में 17 जनवरी के बाद से ही शादी-ब्याह, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य किए जा सकेंगे.

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, विवाह, गृह प्रवेश जैसे कार्यों के लिए दोष रहित मुहूर्त का होना बेहद आवश्यक है. ऐसे में इस एकादशी के बाद भी लोगों को शुभ कार्यों के लिए 17 जनवरी 2019 तक का इंतजार करना पड़ेगा. चलिए हम आपको बताते हैं अगले साल यानी 2019 में पड़ने वाले श्रेष्ठ मुहूर्तों के बारे में, जिनमें मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं.

देव उठनी एकादशी व्रत पूजा विधि
इस एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर सर्वप्रथम नित्यक्रिया से निपट कर स्नानादि कर स्वच्छ हो लेना चाहिये. स्नान किसी पवित्र धार्मिक तीर्थ स्थल, नदी, सरोवर अथवा कुंए पर किया जाये तो बहुत बेहतर अन्यथा घर पर भी स्वच्छ जल से किया जा सकता हैं. स्नानादि के पश्चात निर्जला व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिये. सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिये. इस दिन संध्या काल में शालिग्राम रूप में भगवान श्री हरि का पूजन किया जाता है. तुलसी विवाह भी इस दिन संपन्न करवाया जाता है. हालांकि वर्तमान में तुलसी का विवाह अधिकतर द्वादशी के दिन करवाते हैं. रात्रि में प्रभु का जागरण भी किया जाता है. व्रत का पारण द्वादशी के दिन प्रात: काल ब्राह्मण को भोजन करवायें व दान-दक्षिणा देकर विदा करने के बाद किया जाता है. शास्त्रों में व्रत का पारण तुलसी के पत्ते से भी करने का विधान है .
2018 में देवोत्थान एकादशी
2018 में देवोत्थान एकादशी का व्रत 19 नवंबर को है. साधु सन्यासी, विधवाओं एवं मोक्ष की इच्छा रखने वालों के लिये वैकल्पिक एकादशी 20 नवंबर को रखा जायेगा. इस वैकल्पिक एकादशी को वैष्णव एकादशी भी कहा जाता है.
तुलसी और शालिग्राम का होगा विवाह-
देवउठनी एकादशी के दिन धूमधाम से तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है. तुलसी जी को विष्णु प्रिया भी कहा जाता है, इसलिए जब श्रीहरि निद्रा से जागते हैं तो वे सबसे पहले तुलसी की प्रार्थना ही सुनते हैं. इस दिन तुलसी जी का शालिग्राम से विवाह कराने की परंपरा है.
इस दिन घर के आंगन में गन्ने का मंडप बनाकर उसमें शालिग्राम को स्थापित किया जाता है और विधि-विधान से उनका विवाह तुलसी जी के साथ संपन्न कराया जाता है. पूजन के बाद उनकी परिक्रमा की जाती है.  यह भी पढ़ें: भगवान विष्णु को अतिप्रिय है कार्तिक मास, आर्थिक लाभ और सुखी जीवन के लिए रखें इन बातों का विशेष ध्यान

पूजन का शुभ मुहूर्त- 19 नवंबर 2018, सोमवार.
शाम- 05.25 से शाम 07.05 बजे तक.
रात- 10.26 से रात 10.26 बजे तक.
व्रत के पारण का मुहूर्त- 20 नवंबर 2018, मंगलवार.
सुबह- 06.47 से 08.55 बजे तक.
गुरु अस्त होने के कारण नहीं होंगे मांगलिक कार्य-
मांगलिक कार्यों के लिए बृहस्पति यानी गुरु ग्रह का उदय होना अहम माना जाता है, लेकिन इस बार देव उठनी एकादशी से करीब एक हफ्ते पहले 13 नवंबर से ही गुरु ग्रह अस्त हो गए हैं और यह युति 15 दिसंबर तक बनी रहेगी. इसके साथ ही 15 दिसंबर से मलमास की शुरुआत हो जाएगी, जो 14 जनवरी तक रहेगी. इस अवधि के दौरान मांगलिक कार्यों को करना अशुभ माना जाता है, लेकिन 17 जनवरी के बाद से श्रेष्ठ मुहूर्त शुरू होंगे और इसके साथ ही मांगलिक कार्यों की शुरुआत भी हो जाएगी

गौरतलब है कि इस साल के आखिर में गुरु ग्रह के अस्त होने और मलमास आरंभ होने के कारण देव उठनी एकादशी के बाद भी मांगलिक कार्य नहीं किए जाएंगे. हालांकि इस दिन तुलसी- शालिग्राम का विवाह संपन्न कराया जा सकता है. ऐसी स्थिति में अब आपको किसी भी मांगलिक कार्य के शुरुआत के लिए अगले साल यानी जनवरी 2019 तक का इंतजार करना पड़ेगा.

ज्योतिष सेवा केंद्र मुंबई संस्थापक पंडित अतुल शास्त्री सम्पर्क क्रमांक 09594318403/9820819501

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