देवाधिदेव महादेव
बृजेश दुबे
अंग भभूत जहां के प्रसाद
छने नित नूतन भंग के गोले
कंकर – कंकर पावन है
शिव शंकर मुक्ति के मारग खोले
शक्ति के संग में भक्ति बसे
अरु गंग तरंग जहां पर डोले
भूत मसान अघोरी उपासक
बोल रहे हर बम बम भोले
सांड से रांड से हाट भरे
रु घाट पे ठाट लगावत पंडा
पुन्य प्रताप अपार जहां अरु
काल जहा पर सोवत ठंडा
हाथ कपाली कपाल लिये है
संग में सोहत ब्रह्म के डंडा
धन्य है काशी के वासी सदा
फूटे जहां नित पाप के भंडा
काल रहे भयभीत सदा जहँ
भक्त सदा रहे मौज में भारी
मेटत भीर ना पीर रहे
नित लागत भैरव की रखवारी
भक्त की टेर सुने नित ही
दरबार लगावत है त्रिपुरारी
धन्य वलयकृति गंग की धार
धन्य है काशी जो मुक्ति अधारी
बृजेश दुबे ✍🏻