भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित पंक्ति ‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल’ सच में एक बहुत बडा संदेश समाज को दे रही है। यह पंक्ति एक वैज्ञानिक तथ्य व तर्क पर पूर्णतः आधारित है। क्योकि कोई भी समृद्ध देश अपनी भाषा को छोडकर किसी गैर भाषा की प्रयोग से विकसित नही हुआ है। सच में सही विकास तो अपनी भाषा के माध्यम से ही होती है। क्योकि अपनी मातृभाषा में पढे गये चीजों की जानकारी शीघ्र व सटीक होती है। विश्व में कई देश अपनी भाषा में शिक्षा देने के कारण विज्ञान व तकनीकी में बहुत तेजी सकईआगे बढ रहे है। इसकी मुख्य वजह यह होती है कि अपनी भाषा में चीजों को समझने में बेहद आसानी होती है। न कि किसी विदेशी भाषा को बच्चों के ऊपर लादकर उसे बोझिल बनाया जाए।
भारत में आज अंग्रेजी का वर्चस्व विकास में रोड़ा बन रहा है। भले ही लोग अंग्रेजी की अंधभक्ति में इस बात को स्वीकार करने में संकोच करें लेकिन यह बात पूर्णतः सच है। आज अंग्रेजी के कारण न जाने कितने बच्चे मानसिक विकलांगता के शिकार हो जा रहे है। और अभिभावक है कि बच्चों को अंग्रेजी मीडियम के नाम पर और मानसिक गुलाम बना रहे है। भारत की राजभाषा हिन्दी को हेय दृष्टि से देखने व समझने वालों को जानकारी होनी चाहिए कि हिन्दी भारत ही नही विश्व के कई देश जैसे फिजी, मारीशस, गुयाना, पाकिस्तान, यमन, सिंगापुर, जर्मनी, नेपाल, सूरीनाम, न्यूजीलैण्ड, संयुक्त अरब अमिरात व अमेरिका में भी बोली जाती है। जिस अंग्रेजी के पीछे दीवाने हुए है भारत के लोग उस अंग्रेजी की स्थिति विश्व स्तर पर हिन्दी से पीछे है। मतलब पूरे विश्व में अंग्रेजी से ज्यादा हिन्दी बोली जाती है। हिन्दी को यदि कोई टक्कर देने वाली विश्व की भाषा है तो वह है चीनी भाषा। हिन्दी विश्व की सबसे दस शक्तिशाली भाषाओं में स्थान रखती है।
हिन्दी को 14 सितम्बर 1949 को संविधान की भाषा समिति ने राजभाषा का दर्जा दिया। जो संविधान के अनुच्छेद 343 राजभाषा अधिनियम 1963 जारी हुआ। जिसमें अधिनियम के अनुसार आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को रखा गया। लेकिन आज 70 वर्ष बाद भी हिन्दी अपने पर रो रही है। देश के सभी राज्यों में अंग्रेजी मीडियम स्कूलों व संस्थानों की बाढ आ गई है। अब तो कुछ प्रदेशों में भी सरकारी अंग्रेजी मीडियम स्कूल भी संचालित हो रहे है। आखिर अंग्रेजी मीडियम ही क्यों? हिन्दी मीडियम क्यों नही? अभिभावक को भले ही अंग्रेजी का प्राथमिक ज्ञान न हो लेकिन अपने बच्चों को अंग्रेजी मीडियम में ही पढाने का प्रयास करते है। लोगो के मन में अपने बच्चों के भविष्य को लेकर कम बल्कि दिखावा व वर्तमान को ध्यान में रखकर ज्यादा दाखिला अंग्रेजी मीडियम स्कूलों व संस्थानों में कराया जा रहा है।
लोगो को लगता है कि आज आधुनिक युग में अंग्रेजी का जुडाव नौकरी, तकनीकी, विज्ञान व व्यवसाय से जुड गया है। जो लोगों के सम्मान को भी स्पर्श करता है लेकिन क्या हम भूल रहे है कि अंग्रेजी हमारे उन्नति नही बल्कि पतन का कारण बन रही है। जो केवल हम दिखावा में अपने बच्चों के साथ साथ देश को भी नुकसान पहुंचा रहे है। क्योकि वैश्विक स्तर पर अंग्रेजी की अनिवार्यता कही नही है। इसका उदाहरण भारत के तत्कालीन द्वय प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी और नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिन्दी भाषा में भारत की बात रखी और हिन्दी के सम्मान को बढाया। तो अंग्रेजी के अंधभक्तों को समझ लेना चाहिए कि यदि हिन्दी संयुक्त राष्ट्र महासभा के सम्मेलन में बोलकर देश का सम्मान बढाया जा सकता है तो भारत में ऐसा करना तो बडा ही सरल है।
विश्व के शक्तिशाली व तकनीकी सम्पन्न देश अपने देश की भाषा में ही सब काम करते है लेकिन भारत में हिन्दी को पता नही क्यों अंग्रेजी से कम समझते है। अभी हाल ही में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा का परिणाम आया जिसमें हिन्दी मीडियम के बच्चों की संख्या अंग्रेजी मीडियम के बच्चों से कम थी। आखिर इस बडे अंतर का जिम्मेदार कौन है? क्या हिन्दी भाषी क्षेत्र के लडकों में प्रतिभा नही है कि वे भी हिन्दी माध्यम की परीक्षा देकर देश की सर्वोच्च परीक्षा उत्तीर्ण करें। यहां बात यह हो रही है कि इन परीक्षाओं में न जाने कितने बच्चे इस लिए नही सम्मिलित होते क्योकि देश में एक ऐसा माहौल बना दिया गया है कि अंग्रेजी मीडियम का बच्चा हिन्दी मीडियम के बच्चे से तेज होता है। यह बात बिल्कुल निराधार है लेकिन हिन्दी माध्यम से देश की बडी परीक्षा में काफी कम संख्या में उत्तीर्ण होना चिंता का विषय है। यदि इस शिक्षा प्रणाली में बदलाव न किया गया तो देश हमेशा ही विज्ञान तकनीकी शिक्षा व चिकित्सा में काफी उन्नति नही कर पायेगा।
इसकी मुख्य वजह यह होगी कि अंग्रेजी मीडियम के नाम पर कुछ प्रतिभाओं का स्वतः दमन हो जायेगा। उसमें से जो बचेगी वे भगवान भरोसे वाले होगे क्योकि भाषा विदेशी होने से सही अर्थ व भाव का अनुभव थोडा असामान्य होगा। कुछ ही लोग होंगे जो अंग्रेजी मीडियम के माध्यम से कुछ बढिया कर पायेंगे। सरकार को चाहिए कि देश में शिक्षा का माध्यम हिन्दी और उनकी प्रान्तीय भाषा हो जिससे सभी राज्यों के बच्चों को अपनी विभिन्न तरह की तैयारी व पढाई में दिक्कत न हो।
समाज में देखा जा सकता है कि कई कार्यालयों में कोई भी फार्म भरना हो तो वह अंग्रेजी में है। जो आम आदमी के लिए सही नही है क्योकि वह तो न उसको भर पायेगा न ही अर्थ समझ पायेगा। भारत में कम्प्यूटर का जमाना है लेकिन की बोर्ड की बटन अंग्रेजी मे ही है। इस बटन को हिन्दी में किया जा सकता है और बच्चों को विज्ञान, तकनीकी, प्रबन्धन, चिकित्सा और अन्य क्षेत्रों में भी हिन्दी को बढावा देने से आगे आने वाली पीढी को भाषाई समस्या से दो चार होना नही पडेगा। देश की भाषा केवल पुरातन साहित्य व संस्कृति का परिचायक ही नही अपितु आधुनिक समय का वाहक भी है। जो हमें विश्व में स्थापित करने का परम सुनहरा मौका देता है।
यहां एक विचारणीय तथ्य है कि कुछ लोग अपने बच्चे को आठवीं के बाद नौवी में अंग्रेजी मीडियम में दाखिला करा देते है। लेकिन बच्चों की मनोदशा पर ध्यान नही देते कि जो बच्चा आठवीं तक की सही से अंग्रेजी की किताब नही पढ सकता वह नौवीं में विज्ञान के अंग्रेजी की किताब को कितना समझेगा? तब उस बच्चे के सामने दो विकल्प आयेगा कि या तो वह परीक्षा में ‘जुगाड’ खोजे या अवसाद से ग्रस्त होकर जो आठ तक पढा था उसे भी भूल जाए। आज विश्व के कई देश अपने देश की भाषा के माध्यम से विश्व के दूसरे देश को पीछे ढकेलते हुए विकास व तकनीकी की नई कहानी लिख रहे है। और भारत के लोग केवल अंग्रेजी मीडियम और हिन्दी मीडियम खेल रहे है। कभी विश्व के अविष्कार व अविष्कारकर्ता को पढिये तब पता चलेगा कि इस अंग्रेजी के चक्कर में हम कहां फंस गये है? इजरायल, चीन जैसे देशो में कम्प्युटर उनकी देश की भाषा में है। हालांकि एक भाषा के तौर पर अंग्रेजी को जानना गलत नही है लेकिन देश के भविष्य बच्चों को अंग्रेजी मीडियम की मानसिक विकलांगता से निकालना बहुत जरूरी है।
सरकार को चाहिए कि सभी कार्यालयों और शिक्षण संस्थानों व अन्य जगहों पर केवल हिन्दी को ही प्राथमिकता दिलाए। और जनता का भी कर्तव्य बनता है कि हिन्दी का प्रयोग करें जिससे देश व विदेश में भी हिन्दी की स्थिति मजबूत हो। आजकल देखा जाता है कि विज्ञान वर्ग के छात्र ज्यादा ही अंग्रेजी माध्यम से होते है तो सरकार चाहे तो देश में कुछ जगहो पर हिन्दी माध्यम से इंजीनियरिंग कालेज, चिकित्सा शिक्षा और अन्य तकनीकी शिक्षा के लिए संस्थान खोलकर युवाओं को हिन्दी के प्रति उत्साहित करे। यह निश्चित है कि मात्र पांच साल में भारत में प्रतिभाशाली छात्रों मे से ही कुशल इंजीनियर, चिकित्सक, वैज्ञानिक व अन्य क्षेत्र में युवा मिलेंगे जो विश्व के अन्य देश के युवाओं से आगे रहेंगे। यदि हम नजर डाले केवल उत्तर प्रदेश पर तो यहां की जनसंख्या विश्व की जनसंख्या में खास स्थान रखती है। विश्व के कई देश है जिनकी जनसंख्या उत्तर प्रदेश से कम है। और उत्तर प्रदेश हिन्दी भाषी प्रदेश है। यदि यहां के युवाओं को हिन्दी माध्यम से सभी शिक्षा दी जाए तो यहां के युवा भी विभिन्न क्षेत्रों में अपना नाम कमा सकते है। उत्तर प्रदेश से छोटे छोटे देश अपने देश की भाषा में काम करके विश्व स्तर पर अपने को स्थापित किये है।
यदि सच में भारत को विकसित राष्ट्र बनना है तो पहले अंग्रेजी माध्यम का जहर देश से निकालना होगा नही तो यह केवल देश को मानसिक विकलांगता के तरफ ले जायेगा क्योकि आज के समय में विश्व नित नई ऊंचाइयों को छू रहा है तो भारत को भी चाहिए कि देश की शिक्षा व्यवस्था को हिन्दी में करके देश को विकसित बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं। क्योकि किसी की नकल करके हम कामयाब नही बन सकते जब तक हम उसमें अपनी अक्ल नही लगायेंगे। सभी लोग भारत की इस सच्चाई को जानने का प्रयास करें कि अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा और हिन्दी माध्यम की शिक्षा में भारत जैसे देश के लिए कौन जरूरी है। क्योकि देश की भाषा मां होती है और विदेश की भाषा सौतेली मां। अपनी सगी मां जितना हमारी भावनाओं को समझेगी उतनी सौतेली नही समझेगी।
अत: भारत के सही विकास के लिए हिन्दी के प्रति लोगों का जुडाव व शिक्षा में हिन्दी माध्यम से पढाई बेहद जरूरी है। किसी अन्य भाषा को जानना गलत नही है लेकिन शिक्षा के माध्यम की भाषा अपनी भाषा होनी चाहिए। जो आज के भारत के लिए बहुत ही जरूरी है।l