एक साल से धूम मची है, पूर्वी कलमकारों की।
नींद उड़ी है भारत के सब, भ्रष्ट हुए अधिकारों की।
अब तो चर्चा शुरु हुई है, पुर्वांचल के वीरों की।
जिसने कभी परवाह नहीं की, दुश्मन के तलवारों की।
बड़े ही साहस पूर्वक सब मिल, एक हुए हैं सच के खातिर।
कलम लेखनी, ट्विटर, फेसबुक एक किये हैं सच के खातिर।
दिन प्रतिदिन सब लगें हुए है, कोई ना भटके सच के खातिर।
तन मन सब अर्पण है अपना, रह न जाय कोई सच के खातिर।
पहली कलम चली है ऐसी, थरथर कांप रहें सब।
चरण चाट रज माथ रखे ना, चोरी कैसे होए अब।
नाम ‘हरि’ हउ जाति ‘सिंह’ हउ, काहू से ई डरे अब?
ऐसई सोचि सोचि कुल नेता, अधिकारी जियत बाटेन अब।
नित नई ऊँचाई ‘अरुण’ लोक तक, कलम ‘प्रवीण’ यूं बनीं रहे।
बुद्धि ‘विवेक’ सब मिलकर सोचो, भ्रष्टाचार से यूं ठनीं रहे।
भ्रष्टाचार से यूं ठनीं रहे कि, उसको जाना भाग पड़े।
ऐसा “हमार पूर्वांचल” हो कि, सब के मन में जान पड़े।