सूरत : कहते है कि राजनीति में कौन किस तरफ पलट जाये कुछ कहा नही जा सकता, वही हाल सूरत के उत्तर भारतीय नेताओं में भी देखने को मिल रहा है, कुछ समय पहले जब रेल नही तो चैन नही के आंदोलन से उत्तर भारतीय नेता जिस तरह से वर्तमान सांसद सी आर पाटिल के विरोध में आकर उत्तर भारतीयों का एक अलग ही गुट बनाये और गुजरात विधान सभा के चुनाव में अपने एक बागी नेता अजय चौधरी को निर्दलीय उम्मीदवार बनाकर चौर्यसी विधान सभा के मैदान में उतारे परंतु उनको भी बीजेपी के झंखना बेन पटेल के सामने करारी हार का सामना करना पड़ा और चौधरी जी की बीजेपी पार्टी की सदस्यता रद्द की गई ।
उन्ही को समर्थन देने वाले सचिन क्षेत्र के नगर पालिका के कॉर्परेटर की सदस्यता को रद्द किया गया तो लगा कि इन नेताओं का राजनीतिक कैरियर अब एक नई तरीके से शुरू होगी परंतु इसके विपरीत लोक सभा चुनाव आते ही जैसे सांसद सी आर पाटिल को नवसारी लोक सभा का प्रत्यासी बनाया गया अलग-अलग तरीके से ये सभी बागी नेता बीजेपी को पुनः जॉइन करने के जुगाड़ में लग गए, जिसमे यजुवेंद्र दुबे का सांसद सी आर पाटिल के साथ मुन्ना तिवारी समर्थन देने की चर्चा चल ही रही थी कि 6 अप्रैल को गुजरात राज्य के मुख्य मंत्री विजय रूपानी के मंच से उद्योग पति निर्दलीय विधान सभा उम्मीदवार अजय चौधरी की फिर से बीजेपी में वापसी की हुई।
ये सभी नेता रेल संघर्ष के लिए उत्तर भारतीयों के अग्रणीय थे और सूरत स्टेशन पर हुए रेलमंत्री मनोज सिन्हा के कार्यक्रम का जमकर विरोध किए जिसमे बीजेपी के अन्य कार्यकर्ताओ के बीच हुई झड़प में उत्तर भारतीयों की जमकर किरकिरी हुई थी। इन बागी नेताओं के अलग होने का मुद्दा था कि सूरत जिले के कम से कम एक विधान सभा से उत्तर भारतीय उम्मीदवार हो, और उत्तर भारत के लिए ट्रेन की मांग पूरी हो परन्तु न तो ट्रैन की मांग ही पूरी हुई और विधान सभा का टिकट तो दूर की बात थी जिसके लिए सूरत के चौर्यसी विधान सभा से अजय चौधरी को आनन-फानन मे चौर्यसी विधान सभा से निर्दलीय उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतार दिया गया क्योंकि इस विधान सभा से उत्तर भारतीय मतदाता के मतों का बहुत ही खास प्रभाव होता है, परंतु ये नेता उत्तर भारतीयों को एक जुट करने में असफल रहे और चुनाव में झंखना पटेल के सामने हार गए तब ऐसा लगा कि ये सभी राजनीति में उत्तर भारतीयों को एकबार फिर लोक सभा मे नई पारी शुरू करेंगे पर हुआ इसका उल्टा अब सभी बागी नेता एक एक करके बीजेपी को जॉइन कर लिए जिसमे अजय चौधरी की बीजेपी में वापसी सबसे ज्यादा चर्चा का विषय है ।
अब प्रश्न ये उठता है कि क्या ये सभी नेता जो कल तक उत्तर भारतीयों के लिए ट्रेन के मुद्दे को लेकर अलग हुए उसे भूल गए और अपनी हार मानकर सांसद के सामने नतमस्तक हो गए? क्या बीजेपी को पुनः जॉइन करके ट्रैन की मांग को सांसद के सामने रखेंगे या फिर उत्तर भारतीयों के दो लाख वोट को सांसद जी को बिना ट्रैन की मांग पूरी किये हुए समर्पित कर दिए ?
स्वार्थ है ऐसे लोग अपनो के लिए कुछ नही करेंगे !
इतिहास गवाह है !