आज ज्योतिष सेवा केन्द्र पँ अतुल शास्त्री आपको बता रहे हैं दोषयोग मै क्या अन्तर है और आपने जन्मकुंडली में योग और दोष दोनों के बारे में जरूर सुना होगा। ज्योतिष योग और ज्योतिष दोष ये दोनों अलग-अलग प्रकार के ग्रहों की स्थितिया है जो आपस में उनके कुंडली में मिलने से उनके संयोग बनाती है, जिसे हम ज्योतिष भाषा में ग्रहों की युति कह कर सम्बोधित करते है। जो कई प्रकार के शुभ और अशुभ योगो का निर्माण करती है। उन शुभ योगो में कुछ राजयोग होते है। हर व्यक्ति अपनी कुंडली में राजयोग को खोजना चाहता है जो कि ग्रहो के संयोग से बनने वाली एक सुखद अवस्था है। ईश्वर की कृपा से जिनकी कुंडली में यह सुन्दर राजयोग होते है वह अपनी ज़िंदगी अच्छी प्रकार से व्यतीत कर पाने में समर्थ होते है। लेकिन इसके विपरीत कुछ जातक ऐसे भी होते है जिनकी कुंडली में ग्रह कुछ दुषयोगो का निर्माण करते है। जिनका जातक को यथा सम्भव उपाय करवा लेना चाहिये। आज हम यहाँ ग्रहों के माध्यमो से बनने वाले कुछ दुषयोगो के बारे में बात करेंगे।
ज्योतिषी इन ग्रहो युतियों को भिभिन् प्रकारों से सम्बोधित करते है। कई ज्योतिष इन्हे दोष कह कर सम्बोधित करते है तो कई योग कह कर बुलाते है। मेरे विचार से जब तक किन्ही ग्रहों कि युतियां अच्छा फल देने में समर्थ न हो तब तक उसे योग नही कहा जा सकता है। वह दुषयोग ही कहलाएगी। ग्रहो के ताण्डव नाच से बचे, जीवन सुखमय बनाये जय महाकाल की
चाण्डाल योग या दोष – बृहस्पति और राहु जब साथ होते हैं या फिर एक दूसरे को किन्ही भी भावो में बैठ कर देखते हो, तो गुरू चाण्डाल योग निर्माण होता है। चाण्डाल का अर्थ निम्नतर जाति है। कहा गया कि चाण्डाल की छाया भी ब्राह्मण को या गुरू को अशुद्ध कर देती है। गुरु चंडाल योग को संगति के उदाहरण से आसानी से समझ सकते हैं। जिस प्रकार कुसंगति के प्रभाव से श्रेष्ठता या सद्गुण भी दुष्प्रभावित हो जाते हैं। ठीक उसी प्रकार शुभ फल कारक गुरु ग्रह भी राहु जैसे नीच ग्रह के प्रभाव से अपने सद्गुण खो देते है। जिस प्रकार हींग की तीव्र गंध केसर की सुगंध को भी ढक लेती है और स्वयं ही हावी हो जाती है। उसी प्रकार राहु अपनी प्रबल नकारात्मकता के तीव्र प्रभाव में गुरु की सौम्य, सकारात्मकता को भी निष्क्रीय कर देता है। राहु चांडाल जाति, स्वभाव में नकारात्मक तामसिक गुणों का ग्रह है, इसलिए इस योग को गुरु चांडाल योग कहा जाता है।
जिस जातक की कुंडली में गुरु चांडाल योग यानि कि गुरु-राहु की युति हो वह व्यक्ति क्रूर, धूर्त, मक्कार, दरिद्र और कुचेष्टाओं वाला होता है। ऐसा व्यक्ति षडयंत्र करने वाला, ईष्र्या-द्वेष, छल-कपट आदि दुर्भावना रखने वाला एवं कामुक प्रवत्ति का होता है, उसकी अपने परिवार जनो से भी नही बन पाती तथा वह खुद को अकेला महसूस करने लग जाता है और उसका मन हमेशा व्याकुल रहता है। उसी प्रकार से केतू के साथ गुरू होने से भी चाण्डल दोष जैसा दोष होता है हमे केतू को भी ध्यान मै रखना बहुत जरूरी है अतः इन ग्रहो का असर भविष्य मै बहुत बुरा प्रभाव डालता है हमे दिमाग खराब करना मानसिक रूप से बबुत दिक्कत करता है।
उपाय – गुरु चांडाल योग के जातक के जीवन पर जो भी दुष्प्रभाव पड़ रहा हो उसे नियंत्रित करने के लिए जातक को भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए। एक योग्य ज्योतिषी कुण्डली देख कर यह बता सकता है कि हमे राहू को शांत करना उचित रहेगा या गुरू के उपाय जातक से करवाने पड़ेंगे। अगर चाण्डाल दोष गुरु या गुरु के मित्र की राशि या गुरु की उच्च राशि में बने तो उस स्थिति में हमे राहु देवता के उपाय करके उनको ही शांत करना पड़ेगा ताकि गुरु हमे अच्छे प्रभाव दे सके। राहु देवता की शांति के लिए मंत्र-जाप पुरे होने के बाद हवन करवाना चाहिए तत्पश्चात दान इत्यादि करने का विधान बताया गया है। रूद्राअभिषेक सरसो के तेल से काराये माँ वीणा दायनी का पूजा करे अगर ये दोष गुरु की शत्रु राशि में बन रहा हो तो हमे गुरु और राहु देवता दोनों के उपाय करने चाहिए गुरु-राहु से संबंधित मंत्र-जाप, पूजा, हवन तथा दोनों से सम्बंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए।