मुंबई:छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस से छूटनेवाली गाङी क्रमांक 12809 जो हावङा तक जाती है उसी गाङी से 30 जून को रात दिव्यांग 15 वर्षीय मास्टर पियूष ने जब अपने देखभाल करनेवाले के साथ सफर को निकला तब उसके मोबाईल नं पर आए हुए सीटो के खबर ने उसे तथा उसके परिजन को सकते में डाल दिया।
बतातें चलें कि दिव्यांग मरीज के साथ ही उसका अटेन्डेड का उसके अगल बगल ही रहना जरूरी होता है जिसे समय पर उसे दवा पानी आदि उपलब्ध होता रहे जिस बात को रेल्वे भी स्वीकार करती है इसके बावजूद भी दिव्यांग यात्री का कन्फर्म टिकट S1-5 तथा उसके देखभाल करनेवाले का S11-70 दस कोचो से भी दूर देना कहा तक जायज है?
बता दें कि पिछले तकरीबन छह वर्षो से उक्त यात्री का स्पाईनल काँड का सर्जरी का इलाज कोलकाता में चलता रहता है जिसके कारण ही उक्त बच्चे को हरेक साल में कम से कम तीन चार फेरे लगाने पङते है परंतु इस बार की सीटो के वितरण में इतनी बङी दूरी ने सिर्फ उक्त यात्री को मानसिक चिन्तांए़ दी जबकि उसके परिजन को भी तकलीफदायक और अधिक खर्चीला बना दिया जिस स्थिती को देखकर या सुनकर आम यात्रीगणो ने भी रेल्वे की इस तरह की सीटें दिव्यांग मरीज को देने पर अपनी नाराजगी जताई।
बतातें चलें कि कोलकाता के चिकित्सक के परामर्श के अनुसार उक्त रेलगाङी से सफर करने हेतु 22 जून को टिकट निकाला गया था उस समय सीट संख्या RAC 84/85 टिकट पर मुद्रित था जबकि 27 जून तक इसकी स्थिति RAC65/66 तक पहुँची थी जिससे कन्फर्म न हो पाने के संदेह के कारण इस टिकट की काँपी मध्यरेल के हेडक्वार्टर में भी जमा करायी गयी थी ताकि इस टिकट के आरक्षित हो जाने की पुष्टि हो जाए परंतु यह टिकट कन्फर्म हुआ तो जरूर परंतु इस तरह की सींटो की अलग अलग कोचों में बाँट देना दिव्यांग यात्री तथा उसके देखभाल करनेवाले परिजन को अनुपयोगी एवं तकलीफदायक ही साबित हुआ।