साभार : गूगल
आज एक खबर पढ़ी, एटीएस ने कुछ ऐसे लोगों को पकड़ा है जो महाराष्ट्र में विस्फोट करने की तैयारी में थे। इस मामले में आरोपी वैभव राउत सनातन संस्था नामक संगठन से जुड़ा बताया जा रहा है। वैसे सनातन संस्था लोगों को संस्कार की शिक्षा देने के लिये जानी जाती रही है किन्तु आतंकी घटना में इस संस्था का नाम आना बहुत कुछ सोचने के लिये मजबूर करता है। वसुधैव कुटुम्बकम की शिक्षा विश्व को देने वाला हिन्दू धर्म आखिर क्यों हथियार उठाने के लिये विवश हो रहा है। अभी तक आतंकी घटनाओं में मुस्लिम नाम ही प्रकाश में आते रहे हैं, लेकिन एक धार्मिक संस्था का नाम सामने आना एक बात साबित करता है कि कहीं न कहीं सरकार की नाकामी का ही परिणाम है। देश के पूर्वी भाग में उग्रवाद हो या मध्य भाग में नक्सलवाद की विकट समस्यायें भी सरकार की गलत नीतियों का ही परिणाम है।
जब केन्द्र में भाजपा की सरकार आयी तो लोगों को एक उम्मीद जगी थी कि यह सरकार देश की जनता और युवाओं की नब्ज को समझेगी और उसी के हिसाब से निर्णय लेगी, लेकिन अब ऐसा भ्रम टूटने लगा है। केन्द्र में जबसे भाजपा की सरकार बनी है। माहौल में एक तनाव सा व्याप्त दिखायी देता है। देश को हिन्दू मुस्लिम ही नहीं बल्कि आम इंसानों को कई रूप में बांटने का काम सुनियोजित ढंग से किया जा रहा है। मुस्लिम को तलाक जैसे मुद्दे पर औरत और पुरूष के बीच बांटने की पूरी कोशिस की गयी। अब हिन्दुओं को जातियों में बांटने की कोशिस लगातार जारी है।
हो सकता है कि मेरी बात किसी को अच्छी न लगे लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि लोगों की सोच यहीं थी कि भाजपा हिन्दुओं की पार्टी है और हिन्दुओं के बीच व्याप्त समस्याओं को दूर करके आपस में जोड़ने का काम करेगी, लेकिन हुआ क्या ऐसा! नहीं, बल्कि एससी.एसटी. के मामले में सुप्रीम कोर्ट को फैसले को पलटकर सवर्णों के अंदर एक आक्रोश भर दिया है। इस धारा को लेकर कितने सवर्णों का उत्पीड़न हुआ है। यह किसी से छुपा नहीं है। अब जो हालात बन रहे हैं, उससे सवर्णों को डर डर के जीना होगा। यदि कोई दलित जाति का व्यक्ति किसी सवर्ण को गाली भी, उसे प्रताड़ित करे तब भी उसे चुप रहना होगा। सवर्ण यदि दलित से पिट जाये तो उसे अपना स्वाभिमान छोड़कर रोते हुये घर जाना होगा। अन्यथा उसके खिलाफ मुकदमा होगा और जमानत भी नहीं होगी।
क्या आपको लगता नहीं कि आज की राजनीति में सबसे अधिक प्रताड़ित दलित नहीं बल्कि सवर्ण हैं। सवर्ण कहीं आटो चलाकर, रेहड़ी लगाकर, वाचमैनी करे, छोटी मोटी नौकरी करके अपने परिवार का पेट पालता हो किन्तु वह सरकार की नजर में गरीब नहीं है। वह शोषित नहीं बल्कि शोषण करने वाला और अत्याचारी है। भले ही वह भूखा रहकर अपना जीवन जी रहा हो किन्तु सरकार की नजर में वह मलाई खा रहा है। सच तो यह है कि वोट की राजनीति ने सवर्णों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा है। सवर्ण को देश के संसाधनों पर कोई हक नहीं है। अपने खिलाफ हो रहे अत्याचार पर बोलने का कोई हक नहीं है। भले ही देश को आजाद कराने में सवर्णों ने अपने जीवन को बलिबेदी पर चढ़ा दिया हो किन्तु आज उसकी जुबान पर ताला लगाने का काम सरकार कर रही है।
तीन तलाक के मुद्दे पर मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने की बात करने वाली भाजपा सरकार हिन्दू महिलाओं की दुर्दशा पर कभी गंभीर नहीं हुई। मुस्लिम महिलाओं से कम हिन्दू महिलायें पीड़ित नहीं हैं। कितनी महिलाओं का जीवन कोर्ट के चक्कर काटने में ही बीत जा रहा है किन्तु सरकार को इससे मतलब नहीं बल्कि अपने वोट से मतलब है कि उसका भला कैसे होगा।
सवर्ण हिन्दू सिर्फ सरकार बना सकता है, लेकिन उसकी आवाज कोई नहीं सुन सकता। सवर्णों के मामले में गूंगी हो चुकी सरकार इसलिय गूंगी बनी कि सवर्ण नेता उनके हक में बोलकर कहीं अपना वोट बैंक न खों दें। देश के पूर्वांत्तर राज्यों में उग्रवाद और मध्य में नक्सलवाद से बड़ी समस्या कश्मीर का आतंकवाद नहीं है। बल्कि उसे इसलिये हाईलाइट किया जाता है कि कश्मीर का मामला पाकिस्तान से जुड़ा है। यदि आंतरिक मामलों में मीडिया पर लगाम न लगायी जाये तो विश्वस्तर पर सरकार की नाकामी दिखायी देगी।
भाजपा से उम्मीद थी कि अब आरक्षण का प्रारूप बदलेगा। आरक्षण अब जातिगत आधार पर नहीं बल्कि आर्थिक आधार पर किया जायेगा, ताकि समाज में समानता आये और वंचितों को उनका हक मिल सके। देश में एक ऐसा माहौल तैयार किया जाये कि जाति के आधार पर विवाद खत्म हो और अमीर गरीब के आधार पर समाज दिखायी दे, लेकिन आर्थिक आधार पर आरक्षण की उम्मीद पाले लोगों को एससी.एसटी. के नये संशोधन बिल से झटका लगा है। यदि सवर्णों को बेवजह प्रताड़ित किया गया। उन्हें बेवजह जेल भेजा गया और उनके जीवन के कीमती पलों को जेल की सलाखों के पीछे अनायास गुजारना पड़ा। उनके परिवारों को भुखमरी के हालात का सामना करना पड़ तो इसका परिणाम भयानक भी हो सकता। अपने खिलाफ शुरू हुई ज्यादती के खिलाफ सवर्ण हथियार भी उठा सकता है। कश्मीर, अलगाववाद, उग्रवाद और नक्सलवाद से जूझ रहा देश कहीं जातिवाद की आग में झुलसकर गृहयुद्ध की आग में न जलने के लगे। इसके लिये एक बार मोदी सरकार को मंथन करना होगा।