मध्यमवर्गीय परिवार की प्रतिभाओं के लिये एक जीती जागती मिसाल बन चुके डाॅ. आर.के. पटेल का जमीन से सेवा के शिखर तक का सफर संघर्षपूर्ण एवं रोचकता से भरा है। जो अपने दृढ़ मनोबल के चलते अभाव में निखर कर भीतर छिपी महात्वाकांक्षा को शिखर के मुकाम पर ला खड़ा कर दिया। उनका जीवन उन प्रतिभाशाली विद्यार्थियों के लिये प्रेरणादायक है जो यह समझते हैं कि शिक्षा ग्रहण करने के लिये पैसा ही सबसे महत्वपूर्ण है। डाॅ. पटेल ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और मजबूत मनोबल से यह दिखा दिया कि यदि जीवन में कुछ करने की इच्छा प्रबल है तो लक्ष्य के प्रति समर्पण ही सबसे महत्वपूर्ण है।
संघर्षपूर्ण रहा शिक्षा का सफर
भदोही के एक छोटे से गांव वीसापुर में लघु किसान परिवार के मुखिया सरनाम पटेल के दो बेटों में छोटे पुत्र रवीन्द्र कुमार पटेल की प्राथमिक शिक्षा गांव में हुई। तत्पश्चात् मिडिल तक की तालीम गांव से तीन किलोमीटर दूर बभनौटी में हुई। इसके बाद इंटर तक की शिक्षा उन्होंने भदोही के श्री इन्द्र बहादुर सिंह नेशनल इंटर कालेज में प्राप्त किया। पैदल और कभी पुरानी सायकिल के सहारे विद्यालय आने वाले रविन्द्र के सपने बचपन से ही उंची उड़ान भरने लगे थे। यहीं कारण था कि पारिवारिक स्थित प्रतिकूल होने के बावजूद उन्होंने उच्च शिक्षा के लिये बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय को चुना। इस बीच इनके बड़े भाई विजय बहादुर पटेल अपना एक छोटा सा क्लीनिक चौरी बाजार में डाल लिये थे। उनकी भी तमन्ना भाई रविन्द्र को डाक्टर बनाने की थी। माता-पिता की कृषि पर निर्भर अल्प आमदनी और बड़े भाई के क्लीनिक से होने वाली लघु आय ने उनकी उच्च शिक्षा की जरूरत को पूरा किया।
अंततः बीएचयू से उन्हें चिकित्सक की डिग्री मिल गयी। थोड़े प्रयास के बाद उन्हें दिल्ली के राजकीय डाॅ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में सरकारी चिकित्सक का रूतबा मिला। दिल्ली में चिकित्साधिकारी की कुर्सी पर बैठे रवीन्द्र कुमार डाॅ. आर.के. पटेल के रूप में पहचाने जाने लगे। देश की राजधानी दिल्ली में रहते हुये उनके दिल में भदोही क्षेत्र के वे गरीब रोगी हमेशा बसे रहे, जिन्हें गांव क्षेत्र में उचित चिकित्सा सेवा नहीं मिल पाती थी। गरीबों के प्रति उनकी प्रबल सेवा भावना उन्हें भदोही में रहकर ही जन्मभूमि क्षेत्र के रोगियों को सस्ते दर में चिकित्सा सेवा करने की प्रेरणा दी।
परिवार की आर्थिक पृष्ठभूमि अनुकूल न होने के बावजूद डाॅ. पटेल ने ग्रामीण क्षेत्र के गरीब रोगियों के लिये अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी। वर्ष 1999 में भदोही इंदिरा मिल चौराहे पर जीवनधारा हास्पिटल के रूप में एक अस्पताल की स्थापना कर दी। जो आज जीवनधारा हास्पिटल एण्ड रिसर्च सेन्टर का सुविधाजन्य भव्य रूप ले लिया है।
गरीबों के प्रति डाॅ. पटेल की संवेदना की नजीर इस बात से समझी जा सकती है कि जहां डिग्रीधारी चिकित्सक मरीजों को देखने के लिये 50 से 100 रूपये तक फीस वसूलते हैं वहीं डाॅ. पटेल ने रोगियों को देखने के बदले कभी फीस नहीं ली। जबकि औसतन अस्पताल में प्रतिदिन सैकड़ों मरीज आते हैं।
रोगियों के बीच उनकी लोकप्रियता का एक बड़ा कारण यह भी रहा कि जिस आपरेशन के लिये महानगरीय अथवा अन्य निजी अस्पतालों में कई हजार रूपये खर्च करने पड़ते थे वे आपरेशन जीवनधारा में बहुत ही कम खर्च में हो जाते हैं। गरीब रोगियों से तो अस्पताल में रहने का खर्च भी नहीं लिया जाता है। आज डाॅ. पटेल की समर्पित सेवा भावना के कारण जीवनधारा हास्पिटल एण्ड रिसर्च सेन्टर गरीब मरीजों के लिये वरदान से कम नहीं है।
सहयोग व जागरूकता के प्रति समर्पण
सौ से अधिक लोगों को अपने अस्पताल के माध्यम से रोजगार दे चुके डाॅ. पटेल ने शिक्षा को भी खूब महत्व दिया। अनेक गरीब बच्चे डाॅ. पटेल के सहयोग से अपनी उच्च शिक्षा पूरी किये और अनेक कर रहे हैं। खुद डाॅ. पटेल का बड़ा भतीजा सूर्यभान पटेल डाॅ. एस.बी. पटेल की पहचान से बरसठी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र का चिकित्सा अधीक्षक है। छोटा भतीजा उदयभान पटेल भदोही में ही यूबीआई बैंक का प्रबंधक है। उनकी बेटियां भी बड़े शहरों में उच्च शिक्षा ले रही हैं। डाॅ. पटेल का इकलौता पुत्र 12वीं में है।
राजनीति को समाजसेवा में बदलने का लक्ष्य
गृह नगर में रहकर रोगियों की सेवा के अलावा डाॅ. पटेल सार्वजनिक सेवा क्षेत्रों में भी हिस्सा लेते रहे। राजनीति में आयी भ्रष्टाचारी एवं बाहुबली गिरावट भी डा. पटेल को यह सोचने पर विवश किया कि धन बल और धौंस की जागीर बनती जा रही राजनीति में अच्छे सेवाभावी लोगों का पहुंचना जरूरी है। इसकी चर्चा भी बौद्धिक लोगों से करते रहे। इस बीच अनेक लोग इन्हें राजनीति में जाकर दुव्र्यावस्था के खिलाफ आवाज उठाने की प्रेरणा देने लगे। ।
इसमें अनेक उनके शुभचिन्तक भी थे जो डाॅ. पटेल की सेवा भावना से प्रभावित और उन्हें राजनेता के रूप में देखना चाहते थे। समय की मांग डाॅ. पटेल को राजनीति की तरफ प्रेरित किया। अपने पहले प्रयास में ही उन्हें लोगों का भरपूर साथ और सहयोग मिला। डा. आर.के. पटेल के प्रति इसे लोगों का स्नेह ही कहा जायेगा कि जिला पंचायत चुनाव में इनकी धर्म पत्नी श्रीमती सुरभि पटेल अपने प्रतिद्वंदी को काफी पीछे धकेलते हुये भारी अंतर से विजयश्री प्राप्त किया। जहां तक डा. पटेल के सेवा भावना की बात है तो अपनी चिकित्सकीय सेवा से ही भदोही समेत इलाहाबाद प्रतापगढ़ के पूर्वी क्षेत्रों में लोकप्रिय हो चुके डाॅ. पटेल की ख्याति जौनपुर वाराणसी और मीरजापुर जनपदों तक है।
अपनी राजनीतिक पारी भाजपा से शुरू किये डाॅ. पटेल के प्रयास से चन्द महीनों में ही जिले में हासिये पर पहुंची भाजपा को शिखर पर ला दिया। हालांकि भाजपा से उन्हें धोखा ही मिला। जिससे निराश उन्होंने निषाद पार्टी से विधानसभा में किस्मत आजमाई और सम्मानजनक वोट हासिल किये। माना गया कि मोदी की सुनामी और बसपा से भाजपा में आकर टिकट हथिया लिये रवीन्द्र त्रिपाठी यदि कथित अर्थ प्रधान नीति न अपनाते तो भदोही में भाजपा तीसरे नम्बर पर रहती। बहरहाल डाॅ. पटेल अब समाजवादी पार्टी के सम्मानित सदस्य और नेता बन चुके हैं। पिछड़ा समेत अन्य सभी वर्गों के लोग भी डाॅ. पटेल को भावी जनप्रतिनिधि के रूप में देखने लगे हैं।
[…] डा. आर.के. पटेल : शून्य से सेवा के शिखर तक… […]