मुंबई : कहते हैं की डॉक्टर भगवान का दूसरा रूप होता है और ये हम सब ने देखा भी है। डॉ. जो किसी इंसान को उसकी पीड़ा और दर्द के समय बिना किसी स्वार्थ के उस पीड़ित का इलाज करके ठीक कर दे और वो इंसान खुश हो जय तो वो खुद ही कहते है की मुझे तो डॉ. साहेब ने ठीक कर दिया।
अगर यही भगवान का दूसरा रूप शैतान निकले तो आप क्या कहेंगे?
अगर कभी कोई डॉ. की लापरवाही से मरीज की हालत बिगड़ जाये और वो खुद को मौत के सामने पाए तो आप क्या कहेंगे ? जी हां आपने सही पढ़ा की किसी डाक्टर की लापरवाही से।
ऐसा ही एक मामला मुंबई के पास डोम्बिवली के दावाडी में देखने को मिला। जब एक मरीज दावडी के डॉ. जीतेन्द्र मिश्रा के डिस्पेंसरी में इलाज के लिए गए तो डॉ. साहब ने आनन फानन में सीधे सलाइन (ड्रिप) लगा दिया और उसमे कुछ और इंजेक्शन डालकर वहां से चले गए। मरीजों को डॉ. दो कम्पाउंडर के भरोसे छोड़कर आराम करने चले गए। जबकि अगर ड्रिप लगाया जाता है तो मरीज का BP ब्लड प्रेशर चेक किया जाता है और जब तक ड्रिप लगा रहता है डॉ. निगरानी करते रहते हैं। किन्तु यहाँ पर डॉ. मिश्रा की लापरवही साफ़ दिखी। ड्रिप के कुछ समय बाद मरीज को कपकपी महसूस होने लगी और उसने अपने साथ आये मित्र को इस बारे में बताया ” की मुझे कुछ अजीब लग रहा है और मुझे बहुत ठण्ड लग रही है। ” साथ गए मित्र ने तुरंत कम्पाउंडर की बताया और कहा की डॉ. को बुलाइये , लेकिन डॉ. साहब नहीं आये क्योंकि उन्हें आराम करना ज्यादा जरूरी था सिवाय मरीज के जान की। मरीज जिए या मरे डॉ. मिश्रा को कोई चिंता नहीं थी।
मरीज ने बताया की उसे जिस तरह से ठण्ड लग रहा था मनो वो -40 डिग्री टेम्प्रेचर में है और उस तरह से महसूस कर रहा था। वो बेड पर एक फुट ऊपर तक उछाल रहा था और कांप रहा था। दोनों कम्पाउंडर बहुत डरे हुए थे की मरीज की हालत बिगड़ती जा रही थी और डॉ. साहब नहीं आ रहे थे। जब मरीज के मित्र ने दोनों को कहा की इसे ठीक करिये तो उन्होंने मरीज को एक इंजेक्शन दिया और २ दवाइयां दी खाने को। मरीज दर्द से दो घंटे तक परेशान और पीड़ित था वो जोर से चिल्ला रहा था। उसकी पीड़ा पास में बैठे एक बुजुर्ग से भी नहीं देखा गया और वो वहां से चले गए। मरीज ने बताया की जब उसकी हालत कुछ सामान्य हुई तो कम्पाउंडर ने उसके शरीर का तापमान थर्मामीटर से जांचा तो मरीज के शरीर का तापमान १०८ डिग्री था जो की समाम्न्य नहीं था।
मरीज ने बताया की डॉ. मिश्रा ने आने का कस्ट भी नहीं किया और वो फोन पर ही अपने कम्पाउंडर से बात करके कह रहे थे की मरीज को बोलो चलें जाये। आगे मरीज ने बताया की जब वो थोडा सामान्य हुआ और बोलने की स्थिति में हुआ तो उसने कम्पाउंडर से बात की और पूंछा की डॉ. क्यों नहीं आ रहे हैं ? कोई उत्तर नहीं मिला। बाद में मरीज ने कम्पाउडर से उसकी शिक्षा और उम्र के बारे में पूंछा तो बड़े ही चौकाने वाली जानकारी मिली। एक कम्पाउडर नितिन ९वी कक्षा का विद्यार्थी था और दूसरा कॉलेज में था जो की डोम्बिवली में ही था।
मरीज ने बताया की उसने इन २ घंटे की जद्दोजहद में अपने सामने साक्षात् मौत को देखा। सवाल ये उठता है की क्या ऐसे डॉ. को इलाज करने का हक़ है? सवाल ये उठता है की ये डॉ. छोटे बच्चे से मजदूरी करवा रहा है जो की बालश्रम में आता है और ये कानूनन गलत है। ये डॉ. BHMS किया है और इस हिसाब से ये किसी मरीज को इंजेक्ट नहीं कर सकता है।
सवाल ये उठता है की समाज में ऐसे झोलाछाप डॉ. बहुत है और हमें इन झोलाछाप डाक्टरों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। ऐसे डाक्टर भगवान नहीं शैतान होते हैं।