महापुराणों के अनुसार शक्ति स्वरूपा माँ दुर्गा के पूजन की यूं तो कई विधियां हैं जिनमें पूजा, हवन तथा बलिदान का विशेष महत्त्व है। विशेष रूप से दुर्गा सप्तशती तथा देवी मद्भागवत महापुराण में माँ दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए बलिदान की विशेष महत्ता बताई गयी है। अब सवाल यह उठता है कि वैदिक पूजन में बलिदान के क्या मायने हैं ? इस सन्दर्भ में ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री कहते हैं, ”सच बात यह है कि हमारे यहाँ बलिदान का अर्थ है जीव हत्या लेकिन वैदिक पूजन में बलिदान का तात्पर्य जीव हत्या से ना होकर हमारे विकारों की बलि तथा माँ दुर्गा को प्रिय कुछ वस्तुओं की बलि से है, जिनमें कुष्मांडा, निम्बू, जायफल, नारियल तथा गन्ना का समावेश है।
हाँ यह सच है कि पुराणों के अनुसार माँ दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए राक्षस गण जीवों की बलि देते थे. वह उनकी प्रकृति थी लेकिन देव गण आम तौर पर माँ दुर्गा को प्रिय इन्हीं पाँच वस्तुओं की बलि देते थे क्योंकि सनातन धर्म में जीव हत्या को पाप माना गया है. हालांकि प्राचीन काल से लेकर अब तक माँ दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए बलिदान स्वरूप जीव हत्या को ही महत्ता दी गई है जो गलत है. अब समय आ गया है कि आज के इस युग में भक्त माँ दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए बलिदान की सही परिभाषा समझें। इसी प्रकार महाभारत पुराण के शांति पर्व में यज्ञादिक शुभ कर्मों में पशु हिंसा का निषेध करते हुए बलि देने वालों की निन्दा की गई है-
अव्यवस्थित मर्यादैविमूढ़ैर्नास्ति कै नरैः॥ संशयात्मभिरुप में हिंसा समउवर्णिता॥
सर्व कर्म स्वहिंसा हि धर्मात्मा मनुव्रवीत। काम कारा द्विहिंसन्ति बढ़िवद्यान पशुयन्न॥
तस्मात प्रमाणतः कार्यो धर्मः सूक्ष्मो विज्ञानंता। अहिंसा सर्व भूतेभयो, धर्मेभ्योज्यासीमता॥
यदि यज्ञाश्च वृक्षाश्चं, भयाँश्चोछिद्य मानव। वृथा माँस न खादन्ति, नैष धर्मः प्रशस्थते॥
उच्छृंखल, मर्यादाहीन, नास्तिक, मूढ़ और संशयात्मक लोगों ने यज्ञ में हिंसा का विधान वर्णित किया है। वस्तुतः यज्ञ में हिंसा नहीं करनी चाहिये। धर्म में आस्था रखने वाले मनुष्यों ने अहिंसा की प्रशंसा की है। पंडितों का यही कर्तव्य है कि उसके अनुसार सूक्ष्म धर्मानुष्ठान करें। सभी धर्मों को ही श्रेष्ठ धर्म माना गया है। जो मनुष्य यज्ञ, वृक्ष, भूमि के उद्देश्य से पशु छेदन करके अवृथा माँस खाते हैं, उनका धर्म किसी प्रकार प्रशंसनीय नहीं है।
इस प्रकार क्या धर्म और क्या मानवीय दृष्टिकोण से जीव-हिंसा करना वण्य ही है। इस पाप से जितना शीघ्र मुक्त हुआ जायेगा उतना ही कल्याण होगा। इसमें दो राय नहीं कि बलि पूजा भगवती की प्रसन्नता का अभिन्न अंग है जो प्रवृत्तियों पर आधारित है। दानवीय पृवृत्ति के लोग आज भी जीव हत्या जैसे बलिदानों में विश्वास रखते हैं लेकिन मानवीय प्रवृत्ति के लोगों के लिए यही पञ्च बलियाँ ही उपयुक्त हैं जिनका उल्लेख इस लेख में किया गया है।