Home मुंबई चुनावी अंतरिम बजट

चुनावी अंतरिम बजट

812
0

देश को आमूलचूल बदल देने के तुमुलनाद के बीच 2014 की 26 मई को भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने देश की बागडोर संभाली थी। आज देश फिर एक बार चुनाव की दहलीज पर खड़ा है और देश का सत्ता प्रतिष्ठान्न अब भी पूर्ववर्ती सरकारों के कामकाज को कोसने में व्यस्त है। सरकार ने चुनावी वर्ष में अंतरिम बजट को भी पूर्णकालिक बजट की तरह पेश करते हुए अख़बारों की सुर्खियाँ और चैनलिया चतुरों को शाब्दिक जुगाली का भरपूर मसाला पेश कर दिया है। पांच लाख तक की आय को करमुक्त करने, छोटे किसानों के छह हजार रुपये वार्षिक देने और इस तरह की तमाम लोकलुभावन घोषणाएं हो गयी हैं और प्रधानसेवक अगले दिन ही बंगाल में इन घोषणाओं के बहाने अपनी पीठ थपथपा रहे थे। प्रश्न यह है कि 2014 से पहले भी किसान परेशान था और आज भी है, तब उसे यह रकम देने की बात सत्ता के कर्णधारों को क्यों नहीं सूझी?

आखिर इन बीते 56 महीनों में क्या फर्क पड़ा है। जुलाई 2014 में, जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने अपने पहले पूर्ण बजट पेश किया था, तो वित्त मंत्री अरुण जेटली ने स्पष्ट किया कि राजग दिमागरहित अर्थात नासमझ लोकलुभावनवाद (माइंडलेस पॉपुलिज्म) के खिलाफ था। उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा था कि भारत को नासमझ लोकलुभावनवाद और राजकोषीय विवेक के बीच चुनाव करना है। 2014 के आम चुनावों ने साबित कर दिया है कि चुनाव जीतने के लिए आपको लोकलुभावनवाद की जरूरत नहीं है। बहरहाल अब कामचलाऊ वित्तमंत्री पीयूष गोयल ने सारी संस्थागत परंपराओं को दरकिनार करते हुए अंतरिम बजट को पूर्ण बजट में बदलते हुए सारे बदलाव पूरे कर दिए। अब नासमझ लोकलुभावनवाद वह सब है जिसके साथ चुनाव राजग विशेषकर भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव में जोर आजमाइश करेगी। राजकोषीय विवेक ने हर कल्पनीय वोट बैंक को खुश करने के लिए घुटने टेक दिए हैं। खुद गोयल ने अपने भाषण में कहा कि राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को किसान आय हस्तांतरण योजना बनाने के लिए बलिदान किया गया है, जिसके बिना वित्तीय घाटा इस साल जीडीपी के 3.3% से कम और अगले साल के लिए 3.1% होगा। इसे मध्य वर्ग के लिए कर में कटौती तो स्पष्ट है कि यह सभी तरह से लोकलुभावनवाद है।

संसद की चौखट को नतमस्तक हो प्रणाम कर जब संसदीय सौंध में तब के भावी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद अपने प्रबोधन में कहा था कि पांच साल बाद मेरी सरकार अपना रिपोर्ट कार्ड पेश करेगी। गोयल साहब के अंतरिम बजट में रिपोर्ट कार्ड कहां है? प्रतिवर्ष एक करोड़ नौकरियां सृजित करने के दावे का क्या हुआ? भारत सरकार की एक लीक हुई रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि इस समय बेरोज़गारी की दर 1970 के दशक के बाद से सबसे ज़्यादा है। हालांकि इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद नीति आयोग के अध्यक्ष राजीव कुमार ने प्रेस कांफ्रेंस करके बताया है कि ये कोई फ़ाइनल रिपोर्ट नहीं थी।
भारत में बेरोज़गारी की दर 6.1 फ़ीसदी है जो कि साल 1972-73 के बाद से सबसे ज़्यादा है। साल 1972-73 से पहले का डाटा तुलना योग्य नहीं है। बेरोज़गारी के जिस ताज़ा आंकड़े को मोदी सरकार ने जारी करने से मना कर दिया था, बिज़नेस स्टैंडर्ड अख़बार ने उस रिपोर्ट को हासिल कर सार्वजनिक कर दिया है। 6.1 फ़ीसदी बेरोज़गारी की दर अपने आप में शायद उतनी चिंता का विषय नहीं है लेकिन अगर आपको ये बताया जाए कि साल 2011-12 में ये दर केवल 2.2 फ़ीसदी थी तो फिर बात अलग हो जाती है। और तो और शहरी इलाक़ों में 15 से 29 साल के लोगों के बीच बेरोज़गारी की दर ख़ासा अधिक है। शहरों में 15 से 29 साल की उम्र के 18.7 फ़ीसदी मर्द और 27.2 फ़ीसदी महिलाएं नौकरी की तलाश में हैं। इसी उम्र के दायरे में ग्रामीण इलाक़ों में 17.4 फ़ीसदी पुरुष और 13.6 फ़ीसदी महिलाएं बेरोज़गार हैं।

बेरोजगारी दूर करने के लिए सरकार ने महत्वकांक्षी कौशल विकास कार्यक्रम निर्धारित किया था। कौशल भारत नामक यह योजना प्रधानसेवक का स्वप्न संकल्प था। आज सरकार के पास इस बात के आंकड़ों का अभाव है की अब तक कितने लोगों की कार्यक्षमता में वृद्धि कर उन्हें रोजगार उपलब्ध कराया गया।

इस अंतरिम बजट से ठीक एक सप्ताह पहले विपक्ष की प्रमुख पार्टी के मुखिया ने एक सभा में ऐलान किया था कि हर नागरिक को प्राथमिक सार्वभौमिक आय देने का चुनावी वादा किया तो सरकार ने बजट में चिन्हित किसानों को सालाना 6 हजार रुपये देने की न केवल घोषणा की वरन चुनाव आते-आते इसकी पहली किश्त उनके खातों में डालने की तैयारी भी कर ली। इसे दिसंबर 2018 से लागू माना जायेगा जबकि अब तक स्थापित परंपरा रही है लेकिन सरकार को नाराज किसान को मनाने की इतनी जल्दी है कि इस योजना को तुरंत लागू भी कर रही है जिसका सीधा अर्थ है कि एक बार फिर सपनीले वादों की बरसात होने वाली है।

हिंदुस्तान टाइम्स में यामिनी अय्यर लिखती हैं कि गिनती करने वाले हर वोट बैंक को खुश करने की कोशिश में, सरकार ने स्पष्ट रूप से अपनी घबराहट को उजागर किया है। सत्ता में पांच साल बाद मतदाताओं के पास जाने के बारे में एक सरकार को अतीत की उपलब्धियों के बजाय भविष्य के वादों पर अपना मामला बनाना है, यह विफलता का स्पष्ट प्रवेश है। हालांकि यह सच है कि गोयल ने अपनी सरकार की उपलब्धियों और भविष्य के लिए दृष्टि साझा करने के लिए बजट भाषण का उपयोग करने का कोई अवसर नहीं खोया। इतना अधिक कि यह एक चुनावी रैली के लिए लिखा गया था। निस्संदेह, इस तथ्य ने कि इस बजट ने अंतरिम बजटों के लंबे समय से चली आ रही परंपरा को तोड़ दिया – अंतरिम – दिन का शीर्षक बनने जा रहा है। लेकिन इस बजट ने एक बजट भाषण को जिसे नीतियों और राजस्व और व्यय की एक मानक प्रस्तुति होना चाहिए को एक चुनावी पिच में परिवर्तित करके पुराने ढर्रे को भी तोड़ दिया। यह एक खतरनाक मिसाल है।

Leave a Reply