योजना आयोग ने महंगाई और देश की स्थिति को भांपते हुए सातवां वेतन लागू कर दिया जिसका फायदा केवल केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों को ही मिला। बड़ी हर्ष की बात है। परन्तु मैं आज सरकार से इस लेख के माध्यम से पूछना चाहता हूँ कि सरकार के शब्दावली संग्रह में कर्मचारी की परिभाषा क्या है? क्या कर्मचारी अधिनियम, समान मानधन अधिनियम, न्यूनतम वेतन अधिनियम, कारखाना अधिनियम आदि सभी क्षेत्रों के कर्मचारियों को लागू नहीं होता? क्यों प्राइवेट नौकरी करने वाले कम वेतन पर काम करें और जीवनशैली में प्रभावी बदलाव न करें?
क्यों प्राइवेट नौकरी करने वाले सातवा वेतन आयोग से वंचित रहे, आज सभी संगठित क्षेत्र के कर्मचारी चाहे वे सरकारी हो या प्राइवेट क्या सरकारों द्वारा लागू टैक्स नहीं भरते ?चाहे वह प्रोफेशनल टैक्स हो या सेस टैक्स। सरकारी नौकरी करने वाले निम्न श्रेणी का वेतनभोगी ५०००० रूपये से ज्यादा वेतन ले रहा है और उसी क्षेत्र में रहते हैं जहां प्राइवेट क्षेत्र के कर्मचारी रहते है उन्हें बिजली बिल, पानी बिल सभी चीजों पर लगने वाले टैक्स समान रूप से ही भरने पड़ते है उपर से साफ-सफाई का घन कचरा व्यवस्थापन टैक्स, एजुकेशन सेस टैक्स भी जुड़ा होता है वे भी भरते है। इन्हीं टैक्सों को जमा कर सरकारी कर्मचारियों को वेतन और पेंशन दी जाती है मतलब हम टैक्स भी दे और हमारे भरे टैक्सों के पैसों से सरकारी कर्मचारी अच्छी खासी तनख्वाह भी ले, छुट्टियां भी पाएं और बढिया कमाई भी ले।
हम प्राइवेट नौकरी करने वाले क्यों अपनी तनख्वाह १०००० से १५००० रूपये के दायरे में ले? क्या सरकार इतनी असंवेदनशील और निष्ठुर है? क्यों सरकार में बैठे योजना आयोग महंगाई भत्ता दो भागों में विभाजित किया है जिसमें सरकारी कर्मचारियों को महंगाई भत्ता या डीयरनेस अलाउंस और प्राइवेट नौकरी करने वालों को विशेष भत्ता यानी स्पेशल अलाउंस दिया जाता है, दोनों में जमीन आसमान का फरक क्यों? यह भेदभाव क्यों?
सरकार समान नागरिक कानून, समान वेतन अधिनियम की बातें करती है तो वेतन में मिलने वाले भत्ते और फायदे भी सभी क्षेत्रों के कर्मचारियों में समान होना चाहिए क्यों सरकार स्पष्ट शब्दों में वेतन के अंतर्गत मिलने वाले सभी भत्तों का उल्लेख नहीं करती और भेदभाव करती है? क्या सरकारी कर्मचारी ही काम करते है जो अपनी तनख्वाह इतना लेते हैं? उपर से यही लोग रिश्वत लेकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं, अपने स्वार्थ को छोड़ और अपने उत्तरदायित्व को समझ सभी कर्मचारियों को वेतन शब्द परिभाषित सभी फायदों को समान रूप से लागू करें।
प्राइवेट कारखाना चलाने वाले मालिक कर्मचारियों का दोहन करते हुए नफा खुब लेते है और कर्मचारियों को वेतन के नाम पर शोषण करते हैं। सरकारी अनदेखी का शिकार प्राइवेट नौकरी करने वाले क्यों बने? सरकार को समझना चाहिए कि वोट जनता देती है जो सबसे ज्यादा प्राइवेट नौकरी करने वाले ही है जो हार जीत निर्धारित करती है उनकी उपेक्षा करने वाली सरकार जाते देर नहीं लगेगी। हमारा तंत्र इतना गर्त में जा चुका है कि बड़े-बड़े दलों द्वारा संचालित कर्मचारी युनियन सरकार से मिटींग तो करती है परन्तु भेदभाव करती हुई सरकार और युनियन प्राइवेट क्षेत्रों के मालिकों के तलवे चांटती रह जाती हैं दुख होता है।
आज के दौर में स्वयं सरकार यह मान्य कर चुकी है कि असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोग चाहे वाहनचालक, लोहार, कड़िया, बेगारी या सुतार कोई भी हो सभी केन्द्र सरकार द्वारा संचालित प्रधानमंत्री श्रमयोगी मानधन योजना में शामिल हो पेंशन ले सकते हैं मतलब की जो संगठित कर्मचारियों के दायरे में नहीं आते हैं वे योजना आयोग ने समयानुसार जता दिया कि महंगाई बढी है, केन्द्र और राज्य सरकारें मिलकर फायदा देंगी।
मेरी सरकार से कर बद्ध प्रार्थना है कि सभी कर्मचारियों का वेतन द्विपक्षीय न होते हुए एक ही हो ताकि समरसता बनी रहे।