Home अवर्गीकृत मजा मारे गाजी मियां… धक्का सहे मुजावर

मजा मारे गाजी मियां… धक्का सहे मुजावर

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हमार पूर्वांचल
हमार पूर्वांचल

उपरोक्त कहावत बैंक, उनके अधिकारियों, बड़े उद्योगपतियों पर ठीक बैठता है और गरीब ग्राहक मारा जाता है। कुछ वर्षों से बैंकों के संचालन में अनियमितता तथा बैंक कर्मचारियों के प्रमोशन की महत्वाकांक्षाओं ने बड़े-बड़े सरकारी बैंकों से लेकर सहकारी बैंकों तक को कंगाली के कगार पर ला खड़ा कर दिया है।

बैंक का व्यवहार सबसे ज्यादा गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों पर ही चलता है जो अपने पेट काट कर कुछ पूँजी बचाना चाहते हैं, वहीं पूँजीपति व्यापार से कई गुना कमा लेते है। जिनको बैंकों में पैसे रखने में कोई रूचि नहीं रहती मात्र अपने क्रेडिट बढाने के इच्छा से ही पैसे रखते हैं। आज पंजाब महाराष्ट्र को-ऑपरेटीव बैंक हो या महाराष्ट्र को-ऑपरेटीव बैंक हो सब का हाल एक ही है, कि बड़े कार्पोरेट घराने, नेताओं की संरक्षण वाले संस्थाएं, उद्योगपती अपने झूठे रसूख और चार्टर्ड एकाउंटेंट से ललचाने वाली प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाकर मैनेजर के पास से कर्ज लेते हैं और सबसे पहले अपनी लगाई पूँजी को किसी प्रकार निकाल लेते हैं और सोच रखते हैं कि अब डूबेगा पैसा तो बैंक का डूबेगा, नागरिकों का डूबेगा इसी मंशा से व्यापार करते हैं। आइए देखते है कुछ तथ्यों पर जिससे बैंक के पैसों का नुकसान हो जाता है।

बैंक के मैनेजर और निदेशक:-

यह बैंक की रीढ़ होते है इनके एक-एक निर्णय पर बैंक का व्यवसाय होता है। निदेशक मंडल मैनेजर और उनके मातहत कर्मचारियों पर बिजनेस बढाने का दबाव बनाते है और अन्य बैंकों से तुलनात्मक होड़ में लोगों की जमा पूँजी ये लोग अपने स्वार्थ में वशीभूत होकर बड़े-बड़े व्यवसायियों और व्यवसायिक राज घरानों को बड़ी रक्कम कर्ज के रूप में दे देते हैं कभी-कभी बिना किसी गैरेंटर, जाँच पड़ताल के या बगैर मॉर्गेज के लोन दे देते हैं, क्यों ना हो काम कराने के टेबल के नीचे से कमाई जो करते हैं।

सरकार, नेता और उनके अनुयायी द्वारा संरक्षित संस्थाएं:-

नेता अपने रसूख और पैठ के बल पर बैंकों के अधिकारियों को मिलाकर को-आॉपरेटीव सोसायटी या पब्लिक इंटरेस्ट के कामों में उदाहरणस्वरूप शुगर मिल, बाँध प्रकल्प, इमारत और मॉल बनाना, एनजीओ के उपक्रम इत्यादी, इनमें अपने अनुयायियों को भी मिलाकर संस्था या कंपनी बनाते हैं और काम शुरू करने के नाम पर प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार कर लोन लेते हैं जो कुछ महीनों में प्रोजेक्ट फेल हो जाता है और बैंक का डूबत कर्ज रक्कम (एनपीए) बढ जाता है।

चार्टर्ड एकाउंटेंट:-

यह बैंकों के लोन लेने में अहम भूमिका निभाते है मसलन प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करना, आयकर के रिटर्न बढ़ाकर दिखाना, कंपनियों के बही खातों मे हेरफेर करना, बैंकों के अधिकारियों से साठगाँठ कर अपने क्लाइंट की पैरवी करना इत्यादि।

व्यवसायिक या बिजनेसमैन द्वारा बैंकों से व्यवसाय:-

यह बैंकों से व्यवसाय के नाम पर प्रोजेक्ट दिखाकर लोन लेते हैं जबकि नाम मात्र का व्यवहार बैंकों से करते है और केवल उद्देश्य एक ही होता है अपना बैंकों के पदाधिकारियों से अच्छे संबंध बनाकर, छोटे मोटे व्यवहार दिखाकर लोन लिया जा सकें पर मार्केट से पैसे विलंब होने पर बैंकों को किश्त नही देते और बिजनेस बंद कर देते हैं। बिल्डर अपने प्रोजेक्ट पर बैकों से लोन लेते हैं किन्हीं कारणों से न्यायालय या सरकारी तंत्रों के विवाद या डिस्प्यूट होने पर प्रोजेक्ट लंबित हो जाता है या ठप्प हो जाता है जिससे बैंकों की रक्कम डूब जाती है। यह बिल्डर जमीन खरीदने में अपनी थोड़ी पूँजी लगाते है और अपनी पूँजी पहले निकाल लेते हैं।

शेल या मुखौटा कंपनियां:-

यह बिना कामकाज के, हवाला द्वारा पैसों का हेरफेर करने के लिए बनाया जाता हैं, मात्र कागजों पर ही व्यवसाय दिखाते हैं केवल पेपर और पैसों के हेरफेर करने का कार्य करती है। ये बैंकों से लोन लेकर बैडडेप्ट या लोन भरने से मना कर देते है और बैंक का पैसे नहीं चुकाते है।

कन्झ्युमर प्रोडक्ट मार्केटिंग स्ट्रेटेजी:

बैंक अपना व्यवसाय बढाने के लिए कंझ्युमर (उपभोक्ता) लोन छोटी-छोटी वस्तुओं पर आसान किस्तों में लोन देते है जैसे कार मोटरसाइकिल, टीवी, फ्रिज, मोबाईल, पर्सनल लोन, कार्पोरेट सैलरी एकाउंट लोन, क्रेडिट कार्ड आदि, उपभोक्ता को सामान की उपयोगिता और आसान किस्तों में भुगतान का सपना दिखाकर ये कम पगार वाले साधारण कर्मचारियों को टार्गेट कर सामान बेच देते हैं जो कम पगार या भाडे के मकान में रहते है, जो आसपास, पड़ोस के लोगों से अपने स्टेटस बनाने की होड़ गैर जरूरत की वस्तुएं लोन पर लेते हैं, जो अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता वह लोन कहाँ से चुकाएगा और बैंक की रक्कम डूब जाती है। इन कुछ उपरोक्त बातों को आरबीआई, वित्त मंत्रालय ईमानदारी से रोकने का प्रावधान बनाएं तो बैंक प्रॉफिट क्यों नहीं कर सकता है?????

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