भदोही। विधानसभा चुनाव में एक बार फिर भदोही सपा भाजपा के लिये चुनौती बन गयी है। पिछले चुनाव में जीत से एक पायदान पीछे रह गयी सपा को उम्मीद है कि इस बार भदोही में उसकी वापसी पक्की है। जबकि भाजपा इस मुगालते में है कि भदोही अब उसके हाथ से जाने वाली नहीं है। बावजूद इसके दोनों तरफ कसमकस जारी है। सपा इस बात से परिचित है कि यदि पिछड़े वर्ग को विश्वास में नहीं लिया गया तो उसके पारंपरिक समर्थकों भदोही में लामबंद किये पाना मुश्किल होगा। जबकि भाजपा को भरोसा है कि काशी अयोध्या का आशीर्वाद उसे सपा समर्थक पिछड़े वर्ग के हिन्दुओं के समर्थन के रूप में मिलेगा।
जो भी हो किन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कालीनों का शहर भदोही इस बार भाजपा और सपा को बराबर चुनौती देगा। किसी के लिये भी राह आसान नहीं होगी। जहां तक भदोही में भाजपा विधायक की बात है तो उन्होंने जिला पंचायत पर अपने अपने अनुज अनिरूद्ध त्रिपाठी का कब्जा करवाकर यह श्रेय लिया कि उनके दम पर जिला पंचायत में भाजपा पहली बार काबिज हुई। किन्तु इसके सिवा उनकी कोई ऐसी उपलब्धि नहीं है जो जनता की नजर में उन्हें उंचा उठा पायी है। हालांकि सीमांती क्षेत्रों में कई पुलों का निर्माण कर उन्होंने वरूणा तटवर्ती गांवों में अपनी लोकप्रियता बढ़ाई है। किन्तु नगरीय और मध्यवर्गीय क्षेत्रों में कोई ऐसा कार्य नहीं कर पाये जो उन्हें लोगों का चहेता बनाता। जबकि उनके सापेक्ष सपा के पूर्व विधायक जाहिद बेग का कार्यकाल भदोही नगरवासियों की नजर में स्वर्णिम काल रहा। सपा शासन के दौरान ही बाबतपुर से भदोही और भदोही से मीरजापुर, गोपीगंज और सुरियावां होते हुये दुर्गागंज तक दोहरी सड़के मिली। भदोही नगर में दो दो रेलवे ओवरब्रिज और कालीन उद्योग उत्थान के लिये अत्याधुनिक कारपेट एक्सपो मार्ट मिला। जाहिर है उनके कार्यों सापेक्ष वर्तमान भाजपा विधायक रवीन्द्रनाथ त्रिपाठी का कार्यकाल कुछ खास उपलब्धियों लायक नहीं रहा। बावजूद इसके भाजपा के प्रति लोगों का रूझान कम नहीं हुआ बल्कि अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर और काशी में बाबा विश्वनाथ कारिडोर निर्माण के कारण और बढ़ा है। यहीं चिंता सपा को साल रही है। सपा समझ रही है कि यदि पिछड़े वर्ग बहुसंख्यक हिन्दुओं की अनदेखी हुई तो परिणाम विपरीत जा सकते हैं। ऐसे में उनके सामने भी प्रत्याशी चयन में कड़ी चुनौती हो गयी है। जमीनी स्तर पर सपा के पुराने समर्थक भी मानते हैं कि इस बार का चुनाव प्रत्याशी चयन पर निर्भर है। ऐसे में दोनों पार्टियों के लिये भदोही बराबर की चुनौती बनी हुई है।