मुम्बई: मनपा की लापरवाही के कारण हर साल मॉनसून में देश के सबसे बड़े आर्थिक दशा को बनाए रखने वाली मुंबई की हर साल मानसून मे हो जाती है दुर्दशा। आइए एक नजर दौड़ाते है,इस मयावीनगरी के सबसे बड़े महानगर पालिका के कार्यों पर, मुम्बई की सड़कें हर साल बनते है और गड्ढों से भर जाती हैं, चारों ओर कीचड़ और गंदगी फैली रहती है। इस कारण मुंबई निवासीयों को बहुतसी परेशानीयों का सामना करना पड़ता है।
इस बार भी वही हुआ दो जुन को प्रीमानसून के साथ आई बरखा रानी ने ठंडी फुहारों की सौगात लेकर हाजिर हो गई। बरखा रानी का स्वागत करने के लिए दुकानें सज गईं। लोगों ने अपनी जरूरत के मुताबिक छतरियां, रेनकोट, बरसाती जूते-चप्पल खरीद लिए। और इनको पहनकर सब अपने-अपने काम पर हाजिर । लोगों ने अपने-अपने स्तर पर घरों, दुकानों-कार्यालयों आदि की मरम्मत वगैरह करवा ली । मुम्बई वासियों ने मॉनसून की बारिश से निपटने की सभी बन्दोबस्त कर लिया।
मगर मनपा ने यह क्या कर दिया….? जैसे ही घर से मुम्बई वासियों का निकलना हुआ फिर जो दिखा उससे बस यही लगता है,कि मॉनसून की सारी तैयारी धरी-की-धरी रह गई है… टूटे-फूटे फुटपाथ, सड़कों में गड्ढे-गड्ढों में पानी, खुदे हुए सड़कों के किनारे, गटरों से बहती गंदगी, चारों ओर फैला कीचड़… और इन सबको झेलते हुए हम यहा अपना आसियान बनाकर रोजीरोटी की जुगाड़ मे मसगूल लोग यही सोचते हैं कि क्या एक मनपा को ही नहीं मालूम कि मॉनसून आ गया है? पूरे भारत मे अर्थव्यवस्था की साख रखने वाली इस धरा के कर्मचारियों और अधिकारियों के साथ साथ शासन फिर मनपा समय पर तैयारी क्यों नहीं कर पाती ? जब हमने इस पर अलग अलग क्षेत्रों,वार्ड विभागों मे इसकी जानकारी जुटाना सुरु किया और मुम्बई महानगर पालिका के कार्यो का जायजा लिया तो जो रिपोर्ट मिली वह तो दुनिया का आठवां अजूबा निकला आईए भारत की सबसे बड़ी महानगर पालिका के कार्यों का लिया गया विवरण बताते है।
इस बार मुंबई महानगर पालिका ने अपने सालाना बजट में बरसात की मुश्किलों से निपटने के लिए 53.71 करोड़ रुपयों का अनुमानि खर्च रखा है। मनपा ने इस साल लगभग 27 हजार करोड़ रुपयों का बजट पेश किया है। बजट पेश करते हुए मनपा आयुक्त अजॉय मेहता ने गनीमत है कि इस बार टैक्स में कोई बढ़ोतरी नहीं की। वैसे भी मनपा नागरिकों को सुविधाएं, सेवाएं देने में खर्च करने के मामले में पीछे ही रहती है। बड़ा बजट होने के बावजूद मूलभूत सुविधाओं पर कम खर्च किया जाता है।शायद इसीलिए मुम्बई वासियों की हालत हमेशा बद से बत्तर रहती है,यहां के लोग बदहाल हो गए है महानगर पालिका के इस शैली से मुम्बई के महापालिका का सबसे बड़ा परिक्षा तो बारिश में होता है, पर अफसोस यह अपने आदतों से सदैव फेल हो जाती है। बरसात में सड़कों की बुरी दशा हो जाती है। टूटी-फूटी गड्ढों से भरी सड़कें, हिन्दमाता, परेल,दादर,माटुंगा, माहिम जैसी लो-लाईन एरिया में जल-जमाव होने से यहां के घरो का भी हाल बारिश मे नदियों आए उफान की तरह रहता है। गटर-नालों में कचरा जमा होने से पब्लिक की परेशानियां बढ़ती हैं,चारो तरफ दुर्गंधित वातावरण के साथ-साथ मख्खी और मच्छरों का लालन-पालन सुरु हो जाता है। घर से अपने काम को निकले लोग हैरान-परेशान घर वापस पहुंचते हैं। आम दिनों की अपेक्षा बरसात में दुर्घटनाओं की गिनती बढ़ जाती है। इन्हीं सबको देखते हुए इस साल मनपा आयुक्त ने बजट पेश करने के दौरान मॉनसून से निपटने की योजनाओं पर प्रकाश डाला था,और सभी उपनगरों के वार्डो को हिदायत दी थी कि 31 मई से पहले शहर के सभी नालों व गटरों-नालियों की सफाई करने, फुटपाथों की मरम्मत करने व मॉनसून जनित बीमारियों के प्रसार को रोकने की पूर्व तैयारी आदि को पूरा कर लिए जाए पर किसी ज्ञानी पुरुष की कहावत की तरह “जैसा राजा वैसी सेना” को चरितार्थ कर देता है,जो मौसम की पहली ही बारिश मे ही इन योजनाओं का दूध का दूध पानी का पानी कर मुम्बई वासियों के मंसूबों पर पानी फेर दिया। जगह-जगह पानी भरा, सड़कों के गड्ढे इस पर ऊट की चाल चलती गाडियों और राहगीरों को मुंह चिढ़ाने लगे। कचरे नालियों से निकल कर सड़कों पर फैल गये और स्वच्छ भारत आभियान के तहत हुए मुम्बई महानगर पालिका के स्वच्छता मिशन की कलई खोल दिये। फुटपाथों पर लगे पेवर ब्लॉक या तो उखड़ गए हैं,या तो टूटें पड़े है। जिन्हें देख ऐसा लगता है कि वहां कभी सीमेंट,रेती या पेवर ब्लॉक लगा ही नहीं था। नलो के मेनहोल पर ढक्कन और उसके नीचे जाली लगाने के भी आदेश दिए गए हैं। बैठक में बताया गया था कि इस साल बड़े नालो से करीब चार लाख, चौरानवे हजार सात सौ उन्नताशील टन सील्ट एवं कचरा निकलने के आसार है,जिन्हें मानसून के पहले 70 प्रतिशत यानी तीन लाख छीयालिस हजार तीन सौ टन तक कचरा निकाला जाएगा। जबकि 30 प्रतिशत सील्ट बारिश के बाद निकाला जाएगा। इसी तरह छोटे नालों से बारिश के पहले 70 प्रतिशत मतलब दो लाख तेवीस हजार पाच सौ सत्तर टन सील्ट निकाला जाएगा। इस साल नाला सफाई पर मुम्बई महानगर पालिका ने एक सौ चौवन करोड़ रुपए खर्च करेगी। मनपा की योजनाओं का स्वागत है परंतु आम मुंबई वासियों के मन में एक सवाल हमेशा उठता रहता है कि मुम्बई मनपा मॉनसून से कुछ दिन पहले ही क्यों साफ-सफाई करने बैठती है, ये सभी कार्य नियमित रूप से पूरे सालभर भी तो किया जा सकता है ?
सड़कों की मरम्मत और गड्ढों के भरने का काम नियमित रूप से पूरे सालभर क्यों नहीं होता? जिस कॉन्ट्रैक्टर को सड़क बनाने का कॉन्ट्रैक्ट दिया जाता है, उसे ही सड़क के रख-रखाव की जिम्मेदारी भी देनी चाहिए परन्तु ऐसा क्यू नहीं होता। अगर ऐसा होता तो जिम्मेदारी न निभाने पर जुर्माना लगाया जा सकता है। बिजली विभाग, टेलीफोन विभाग, गैस पाइप लाइन, केबल आदि भूमिगत कामों के लिए आए दिन सड़कें खोदी जाती हैं,जिस पर बहुत सारी कहावतें भी बन चुकी है,लोग अक्सर कहते रहते है कि “उपर वाले की दुहाई और मुम्बई की सड़कों की खुदाई” कभी नही रूकने वाली। जिसमे अक्सर देखा गया है,कि इन विभागों का काम पूरा होने के बाद वे फुटपाथ की मरम्मत ठीक से नहीं करते जिसका रिजल्ट सामने दिखने लगता है, गढ्ढों के मलबे भी बरसात में बह कर सड़कों पर आ जाते हैं। इस वजह पैदल चलने वालों के गिरने,चोटें लगने की,गाडियों के साथ एक्सीडेंट होने की घटनाएं भी होती हैं। ट्रैफिक-जाम भी एक गंभीर समस्या है जिससे हर मुम्बई वासी त्रस्त रहते है। मॉनसून में यह समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है। प्रदूषित नदी-नालों, खाड़ियों, गटरों में भरे कचरे गंदगी बढ़ाते हैं और इनसे बढ़ती हैं जानलेवा बीमारियां। जर्जर इमारतों के ढहने और भू-स्खलन से हुई दुर्घटनाओं में भी जान-माल की हानि होती है। बरसात में मुम्बई वासियों का जीवन कठिन हो जाता है। मनपा चुनाओं में हर साल मुम्बई वाले इसी उम्मीद में नगरसेवक चुनते हैं कि इस बार का प्रशासन इन समस्याओं से निजात दिलाएगा। मुम्बई वासियों पूरे सालभर खून-पसीना बहा-बहाकर कमाते हैं और पूरी तत्परता से टैक्स भी चुकाते हैं। मगर उन्हें उतनी सुविधाएं और सुरक्षा नहीं मिलतीं जितने के वे हकदार हैं। प्रशासन की कमजोर इच्छाशक्ति, सिस्टम में फैला भ्रष्टाचार, अयोग्य व्यक्तियों का नेतृत्व आदि के कारण इतनी बड़ी बजट वाली मुम्बई अच्छी व्यवस्थाओं और सुविधाओं को आज भी तरस रही है। जब मुम्बई द्वारा भरे गए टैक्स की एक-एक पाई का सही उपयोग अगर हो जाए तो मुम्बई की खुशहाली और समृद्धि बढ़े जाती।