उल्हासनगर। मध्यवर्ती रूग्णालय जो कि 3 नं में स्थित है वहां हर बुधवार को सुबह के 8 बजे से ही दिव्यांगजनो को नया प्रमाणपत्र अथवा नूतनीकरण हेतु सैकङो से भी अधिक की तादाद में भीड जुटती है, जिस दरम्यान कल्याण और अंबरनाथ के तरफ से भी आए हुए दूरदराज के जरूरतमंदो को घंटो-घंटो तक कतार में खङा रहना पङता है जिस परिसर में नाही कोई पंखा रहता है और नाही कोई व्यवस्थित टोकन प्रणाली आदि।
इसके बाद भी रही सही कसर पूरी कर देती है इंटरनेट की धीमी गति जिस कारण दो चार घंटो का भी काम आठ घंटो में भी हो जाए उसकी कोई गारंटी नही।
ज्ञातव्य हो कि जिस तरह सरकार किसी भी सरकारी विभाग से संबंधित सरकारी दस्तावेजो हेतु ऑनलाईन प्रक्रिया पर जोर दे रही है उसके लिए कंम्पयूटर एवं उससे संबंधित उपकरणो को भी दुरूस्त या मुस्तैद करना चाहिए ताकि जरूरतमंदो को काफी भीडभाड अथवा धक्कामुक्की का सामना न करना पङे।
बतां दें कि 27 नवंम्बर रोज बुधवार को जब पत्रकार ने उस अस्पताल में दौरा कर हालातो का जायजा लिया तो वहां उस अस्पताल परिसर में दिव्यांगजनो की लम्बी-लम्बी कतारें और चिकित्सक के कमरे मे जाने हेतु हो रही धक्कामुक्की असहनशील दिखी। जिसमें एक ही कमरे में दो क्लर्क कर्मचारीगणो के साथ आंखो तथा हड्डी के अलग-अलग दो चिकित्सक भी नजर आए, जबकि मात्र तकरीबन 100 वर्गफीट के कमरे में जाने हेतु सैकङो जरूरतमंद एक ही दरवाजे के दोनो तरफ खङे कतारों में से घुस रहे थे।
बतातें चलें कि आंखो से सबंधित डाक्टर साहिबा का व्यवहार काफी लोगो को पसंद नही आता था जबकि हड्डी के डाक्टर रोकङे साहब एवं बाकी के दोनो क्लर्कगण जरूरतमंदो की परेशानियो पर जरूर तरस खाते हुए उन सबका काम जल्द ही निबटाने की कोशिश करते नजर आए। फिर भी इन सबके बावजूद इतनी तो कमी जरूर खली कि यदि किसी भी दिव्यांगजनो के परिजन घंटो खङे खङे जब उनके पांव दुखने लगते थे तो खुद उससे संबंधित मरीज का क्या हाल होगा जिसे सरकार उन्हे रियायत देने की प्रक्रिया निभाने का वादा करती है जिस मरीज का कचूमर कागजात बनवाने के समय ही निकल जाता है।