Home मुंबई सावन की फुहार के संग कवि रसिकों की सजी महफ़िल

सावन की फुहार के संग कवि रसिकों की सजी महफ़िल

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ठाणे। वर्षा ऋतु और श्रावन का महीना …ऐसे में भारतीय जन भाषा प्रचार समिति ठाणे एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद के बहुभाषी काव्य गोष्ठी का आयोजन ठाणे जिले में वर्षों कार्पोरेटर रहे श्री मुन्ना बिष्ट के कार्यालय में एक अद्भुत
शाम के साथ वर्षाऋतु में सावन की फुहार के साथ कवियों के गीत रसिकों के संग रसीले अंदाज में हुए।कवि गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार नामदार राही,विशेष अतिथि के रूप में वरिष्ठ कवि अभिलाज एवं कवियत्री आभा दवे जी विद्यमान थी।

डा.प्रभा शर्मा ‘सागर’ के कुशल संचालन व सरस्वती वंदना के साथ एक अलग दृश्य का दिग्दर्शन हुआ।जहां साहित्यकारों में त्रिलोचन सिंह अरोरा, अनिता रवि, एडवोकेट रेखा किंगर रोशनी, ऐड.अनिल शर्मा, आ.भुवनेन्द्र सिंह बिष्ट, आ.टी आर खुराना, डा.वफा सुल्तानपुरी, सुशील शुक्ल नाचीज़, अरूण प्रकाश मिश्र अनुरागी, शारदा प्रसाद दुबे, ज्ञानचंद कविराज, अनीश कुरैशी, उमाकांत वर्मा, राजेश अल्हड़ असरदार, संजय द्विवेदी, मनोज मैकस, किशन आडवाणी, पाहुजा हरदास, आर पी सिंह रघुवंशी, सुशील कुमार सिंह(डब्बू) एवं भैरव फारक्या जैसे काव्य- प्रेमियों के दर्शन हुए जहां सभी की रचनाएँ सराहनीय रही। अंत में आयोजक व संस्था अध्यक्ष रघुवंशी जी ने उपस्थित सभी साहित्यकारों का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया और गोष्ठी का समापन राष्ट्रगीत से किया गया।
कवियों द्वारा गीतों के बरसात ने मानों सावन को विविध रसों से रसविभोर कर दिया।

वरिष्ठ कवि आर पी सिंह रघुवंशी के गीत ने शिक्षा पर बल देने हेतु प्रोत्साहित करती है-

शिक्षा ने ही ज्ञान दिया है,
शिक्षा ने विज्ञान दिया है,
ऊँच-नीच का भेद मिटाकर,
शिक्षा ने सम्मान दिया है।
गांधी-नेहरु-भीमराव को,
शिक्षा ही संस्कार दिया।
भगतसिंह,सुखदेव,राजगुरू
शिक्षा ने बलिदान किया।
पन्ना धाई ऐन वक्त पर,
बेटे से मुँह मोड़ लिया,
राना के बेटे के खातिर,
अपना बेटा छोड़ दिया।
शिक्षा ही तो मानवता को,
उच्च शिखर पहुँचाती है।
शिक्षा ही गुण-दोषकाअंतर
जीवन में सिखलाती है..।
बिन शिक्षा के जीवन में
बस अंधकार रह जाता है।
जाति-पाँत और भाषा-प्रांत
का बस जुनून छा जाता है।
जीवन में भी हर विकास
बस शिक्षा से संभवहोगा..।
शिक्षा से ही देश का गौरव,
पल-पल में ऊँचा होगा..।

दुसरी रचना पढते हुए मौसम को खूबसूरती से संवारा-

थाना का मौसम अज़ब हौ सुहाना।
न घंटो से बारिश, न जल का ठिकाना..।
बस सर-सर हवाएँ, बदन चूमती हैं,
चमन में ये कलियाँ गज़ब झूमती
हैं।
न वाहन का रेला,न झगड़ू का ठेला..
सड़क पर न पब्लिक, न कौनो
गदेला..।
बड़ा शांत बा आज मौसम सुहाना,
मेरे यार महफिल में तुम चले आना..।
तुम चले आना ।।

प्रतिष्ठित कवियत्री एडवोकेट रेखा किंगर रोशनी ने फिलबदिह ग़ज़ल पेश करते हुए कहती हैं-

दिलजलों से दिल लगाना छोड़ दे
यूँ वफ़ा को आज़माना छोड़ दे

दर्द का मातम मनाना छोड़ दे
‘इस तरह दिल को जलाना छोड़ दे’

इश्क़ का नग़मा सुनाना छोड़ दे
ख्वाब पलकों पे सजाना छोड़ दे

जान लेवा है फ़साना छोड़ दे
छोड़ , वो क़िस्सा पुराना छोड़ दे

मासूमों पर ज़ूल्म ढ़ाना छोड़ दे
ये हसद , ये ताना - बाना छोड़ दे

वक्त को यूँ आज़माना छोड़ दे
‘ रोशनी ‘ हस्ती मिटाना छोड़ दे
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वरिष्ठ कवि,गीतकार अभिलाज ने तो देशप्रेम से ओतप्रोत रचना सुनाकर सभी के दिलों में जगह बनाई-

झूम रहा है अम्बर झूम रहा फ़र्श है।
आज़ादी का दिवस है हर्ष ही हर्ष है।।

झूमे है तिरंगा झूमें है माँ गंगा
आज मुझे दोस्तो सारा विश्व लगे चंगा।
कभी ना हो देश में लड़ाई या दंगा।
हवाओं में आज माँ भारती का स्पर्श है।।

झूम रहा है अम्बर झूम रहा फ़र्श है।
आज़ादी का दिवस है हर्ष ही हर्ष है।।

बन रहा है देश मेरा विश्व का विजेता।
आएगा फ़िर से राम राज्य युग त्रेता।
जा रहा है ऊपर उत्कर्ष ही उत्कर्ष है।।

झूम रहा है अम्बर झूम रहा फ़र्श है।
आज़ादी का दिवस है हर्ष ही हर्ष है।।

कवियत्री आभा दवे की रचना दहलीज ने खूब वाहवाही लूटी-

देश के लिए बढ़ाएँगे कदम
रुक न सकेंगे चल चार कदम
देश की खातिर पार करी है घर की दहलीज
सीना तान बड़े चले हैं हम सब वीर
देश हमारा चैन की साँस लेता रहे
मुस्कुराते रहे हर देशवासी
कर ली है प्रतिज्ञा देश की खातिर
जान लुटाने की
मातृभूमि पर शीश नवाया
तिरंगे झंडे की खातिर
हर देशवासियों को हम सैनिकों पर अभिमान रहे
चला जा रहा देखो वीर
देश की खातिर शान से
दहलीज भी ना रोक सकी
बढ़ा चला स्वाभिमान से ।

एडवोकेट अनिल शर्मा के गीत ने भारी बारिश की वजह से मुंबई पानी-पानी हो गयी है, मुम्बई का हाल कुछ इस प्रकार रहा…..

ये बारिश का पानी
ये बारिश का पानी
किया पानी पानी
ये बारिश का पानी
आलम है पानी का
सर्वत्र पानी पानी
बरसे न पानी
तो आंखों में पानी
बरसे जो पानी
तो है ज़िंदगानी
बहुत बरसे पानी
तो पानी ही पानी
ये बारिश का पानी
ये बारिश का पानी…..।

हे इंद्रदेव
न कीजै बेमानी
वहां करो रवानी
जहां जरूरत पानी
बगैर पानी के
बेकार है किसानी
सूखा जब पड़ता
बरसता न पानी
कर्जदार किसान
हो जाता अज्ञानी
लगा रस्सी करता
खतम ज़िंदगानी
ये बारिश का पानी
ये बारिश का पानी….।

दवाखाना पानी
कचहरी जेल पानी
पकौड़ी पकौड़ा
और भेल पानी
पैदल पानी पानी
और रेल पानी
बहुत दे रहा है
अब घाव पानी
जहाँ चलती थी
बस और रेलें
वहाँ चलती है
अब नाव पानी
ज़िन्दगी बनी
झमेल पानी पानी
कितना बताऊँ
ये खेल पानी पानी
ये बारिश का पानी
ये बारिश का पानी…….।

सड़क पर है पानी
मकां में है पानी
गली में है पानी
दुकाँ में है पानी
नदियों में पानी
समुन्दर में पानी
मस्जिद में पानी
मंदिर में पानी
यहाँ देखो पानी
वहाँ देखो पानी
जहाँ भी देखो
पानी ही पानी
ये बारिश का पानी
ये बारिश का पानी….।

पानी न बरसे
तो सूखा अपाढ़
जरूरत से ज्यादा
तो आती है बाढ़
ऊपर से देखो
बरसता है पानी
नीचे जमी पर
फैलता है पानी
पानी हैं सड़कें
या सड़कें है पानी
बन्द हो गयी
जन जीवन आनी जानी
ये बारिश का पानी
ये बारिश का पानी…..।

हे पानी है तेरी
अज़ब सी कहानी
ये पानी किसी की
बचाती है पानी
कितनो की पानी
गवाँती है पानी
निर्धन असहाय
लाचार मज़दूर
अपाहिज वृद्ध
अनाथ मज़बूर
कितनों को फाँके
मरवाती है पानी
ये बारिश का पानी
ये बारिश का पानी…..।।

इसी प्रकार सभी साहित्यकारों ने क्रमशः रचनाओं से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।

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