Home मुंबई स्वामी सुधांशु जी महराज के  आश्रम में सजी कवियों की महफ़िल

स्वामी सुधांशु जी महराज के  आश्रम में सजी कवियों की महफ़िल

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हमार पूर्वांचल
हमार पूर्वांचल

ठाणे : आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज के आश्रम “वरदान लोक आश्रम ”  काजूपाढ़ा घोडबंदर रोड ठाणे में ‘इंडिया अनबाउंड’ के तत्वावधान में एवं  श्री धर्मेन्द्र तिवारी, श्री नित्यानंद पांडे के आयोजन में  भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया,जिसमें ठाणे शहर के सम्मानित सुधिजनों एवं आश्रम के भक्तों की अपार भीड़ ने तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा कवि सम्मेलन यादगार बना दिया। मंच संचालन कवि उमेश मिश्रा जी ने बेहतरीन तरीके से माँ सरस्वती वंदना के साथ प्रारंभ की। उपस्थित सम्मानित कवियों में श्री उमेश मिश्रा,श्री विनय शर्मा दीप, श्री रामस्वरूप साहू स्वरूप,श्री बेचनराम बारी,श्री अल्हड़ असरदार,श्री ज्ञानचंद्र कविराज ने अपनी गीतों, कविताओं, गजलों, छंद एवं सवैया के माध्यम से लोगों को आनंदित कर समा बांध दिया।कुछ पंक्तियाँ कवियों की इस प्रकार रही-

हमार पूर्वांचल
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श्री उमेश मिश्रा –

आज के मानवीय मूल्यों को देख कवि हृदय झंकृत हो उठता है,तब कवि कहते हैं-

मैं रावण हूँ जल जाऊँगा,

चाहे जो परिणाम हो।

पर मुझ पर जो बाण चलाये,

आचरण से प्रभु राम हो ।।

 

श्री विनय शर्मा “दीप”

अयोध्या में रामलला के विवादित मुद्दे से स्वतंत्र कर रामालय का निर्माण करने हेतु आगाह करते हुए अपने सवैया के माध्यम से कहते हैं-

राम क नाम सदा मिसरी,अब सोवत-जागत ना बिसरी हे।

आलय में अब राम सदा दिखिहैं ,जब कंचन सौं निखरी हे।

दानव त्रास न दे अब मानव,नांहि त नैन खुली तिसरी हे।

संत-महंत व योगियती संग,कांवर रामलला निसरी हे ।।

 

श्री राम स्वरूप साहू “स्वरूप”

माननीय मूल्यों को लेकर समाज के संस्कार पर चिंतनशील कवि अपनी भावना प्रकट करते हुए कहता है-

हार गई इंसानियत,मन मर्जी गई बीत।

लाज-शर्म-संस्कार बीन,कहाँ रहेगी प्रीत ।।

विघटित जीवन मूल्य,बढेंगे अत्याचार व्यभिचार ।

पाश्चात्य सभ्यता में,ढ़ल टूटेंगे घर-परिवार ।।

 

श्री बेचनराम बारी

कवि समाज में बढ़ते अत्याचार, घटती संस्कार की मर्यादा से आह्लादित होकर कहता है-

 

मनई हऊव त मनई जइसन,

हर मनई से व्यवहार कर।

इ तनवा अनमोल हौ भइया,

सबसे इहै इजहार कर ।

जाति-पांति के भेदभाव कै,

मन से बहिस्कार कर ।

ऊंच-नीच औ छोटका-बड़का,

सबही कै सतकार कर ।।

 

श्री अल्हड़ असरदार

समाज को लेकर कवि हृदय किस तरह उद्देलित हो कर कह उठता है-

मुझको किये पे अपने,कुछ अफसोस नहीं है ।

हर यातनाएं सह के,लब खामोश नहीं है ।

दोषी नहीं तू,मान लूं मैं इकबार के लिए,

पर जानता हूँ मैं,कि तू निर्दोष नहीं है ।।

 

श्री ज्ञान चंद्र कविराज

जिंदगी में सफ़र का,चलो कुछ इंतजाम कर लें ।

ये दुनिया याद करे,हरदम ऐसा काम कर लें ।।

नेकिंया ही काम आयेंगी,आखिर में ज्ञान तेरे ।

दुश्मनों का भी ज़रा,तू एहतराम कर ले ।।

 

अंत में आयोजक श्री धर्मेन्द्र तिवारी ने आये हुए सभी कवियों, मुख्य अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया और कार्यक्रम का समापन किया।

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