Home साहित्य पिता का अस्तित्व-डाॅ.प्रियंका सोनी प्रीत

पिता का अस्तित्व-डाॅ.प्रियंका सोनी प्रीत

848
0

गरीब पिता बेटी के ब्याह की तैयारी में जी-जान से जुटा था,
कि उसकी बहुत समझदार नेक इंसान सच्चे दिल वाली बेटी बहुत ही अच्छे घर में जाए, और एक समझदार इंसान पति के रूप में उसे प्राप्त हो। परिवार बहुत अच्छे सुलझे हुए विचारों वाला हो ताकि खुशियों से उसकी जिंदगी भर जाए। और आखिर पिता की कोशिश रंग लाई अपनी गुणवान पुत्री के योग्य उन्हें घर और वर मिल ही गया। विवाह की तैयारी धीरे-धीरे होने लगी।अपनी गरीबी को भूल वह अपनी बेटी को हर वो चीज देना चाहता था, जिसकी कमी से उसको कभी अपने ससुराल में ताने ना सुनना पड़े।

घर में बताएं बिना पिता ने कर्ज लेकर बेटी की घर गृहस्थी बसाने का पूरा हर एक सामान जुटाने में रात दिन एक कर दिया। आज वह अपनी बेटी को देने बर्तन लेने जा रहा था——
अचानक बेटी बोली——बाबा आप जो भी बर्तन लेंगे उसमें आप आपना नाम नहीं लिखवाना मेरी आपसे प्रार्थना है।
पिता ने यह भी नहीं पूछा कि बेटी तू ऐसा क्यों कह रही है, क्योंकि नाम लिखने से ही तो अपने बर्तन की पहचान होती है कि हमारी चीज है। पिता ने बर्तन लाकर रख दिए। अपनी परिस्थिति अनुसार पिता ने बेटी का धूमधाम से विवाह किया।ब्याह करके बेटी ससुराल आई, ससुराल में खूब स्वागत हुआ, दहेज देखकर सभी बहुत खुश हुए।

अचानक बर्तनों पर सास की नजर पड़ी—–अरे बहु यह क्या तुम्हारे पिता को इतनी भी अक्कल या समझ नहीं है, कि बेटी को देने वाले बर्तनों में उनका नाम लिखना लिखाना जरूरी है, ताकि कहीं भी अपने बर्तन जाएं बर्तन के गुम जाने का डर नहीं होता। नई नवेली दुल्हन घूंघट में सिमटी सकुचाई पर बिना डरे, घबराए बोली सासू मां मैंने ही मना किया था अपने पिता को कि वो बर्तनों में अपना नाम ना लिखवाए। अरे तू तो बड़ी मुंहफट और झब्बर दिखाई पड़ती है, अभी से मनमानी कर रही है तो आगे क्या होगा, कान खोल कर सुन ले यहां तेरी मनमानी नहीं चलेगी और ना ही तेरी दाल गलेगी।

सासू मां अगर हमारी किसी भी बात पर कभी भी आपको तकलीफ हो या पूरे परिवार को हमारी वजह से कोई परेशानी हो तो आप जो चाहे मुझे सजा दे देना मैं मना नहीं करूंगी। मैंने ही अपने पिता को, मुझे देने वाले बर्तनों पर उनका नाम लिखवाने का इसलिए मना किया क्योंकि बर्तन रोज मांजे जाते हैं, रोज चूल्हे पर चढ़कर बहुत तपते हैं, मैं नहीं चाहती कि मेरे जन्मदाता का नाम रोज चूल्हे पर चढ़े बर्तनों के साथ गरम हो तपे जाए और रोज-रोज मांजने पर घिसे जाए, क्योंकि हमेशा रोज-रोज घिसने वाली वस्तु अपना अस्तित्व खो देती है, मेरे पिता का नाम कोई वस्तु या चीज नहीं है, मेरे पिता का नाम, उनका अस्तित्व एक जीता जागता मेरे लिए मेरी सांसों के चलने की गवाही का नाम है।

मेरे बाबा और उनके नाम को रोशन करना मेरा धर्म है।
मुझे दोनों कुल की मान मर्यादा, इज्जत का ख्याल रखकर अपना भी नाम रोशन करना है। बहू के विचार सुनकर सब खामोश हो नतमस्तक हो गए, और अभी कुछ देर पहले जो सास बहू को डराने धमकाने वाली बात कर रही थी उसने अपने घर की इज्जत मान मर्यादा की लाज रखने वाली बहू को बाहों में भर के प्यार से उसका माथा चूम लिया।

डॉ प्रियंका सोनी “प्रीत,”
976539996

Leave a Reply