Home साहित्य डर और अभिव्यक्ति – अजय शुक्ला बनारसी

डर और अभिव्यक्ति – अजय शुक्ला बनारसी

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लघुकथा:

आज खटमलों के राजमहल के दरबार में बड़ी भीड़ लगी हुई थी, मुद्दा गम्भीर भी था आखिर उनका अस्तित्व खतरे में दिखाई दे रहा था। खटमलों के राजा खटमलाधीश का आगमन हुआ उनके चेहरे पर किसी भी प्रकार की चिंता नहीं दिखाई दे रही थी वहीं प्रजा चिंता से सूखी दिखाई दे रही थी।

राजा ने अपना आसन ग्रहण किया और कहा —– आप लोगों की क्या समस्या हैं बताइए।

एक दुबला पतला खटमल साहस समेटकर बोला —महाराज !! जैसा कि आप जानते हैं हम परजीवी हैं और बिना किसी जीव का रक्तपान किये हमारा अस्तित्व ही नहीं हैं ईश्वर ने हमे सिर्फ यही एक जीवनोपार्जन की सुविधा दी हैं। लेकिन कुछ मनुष्य हमारे अधिकारों का हनन करने पर तुले हैं रोज़ अपनी प्रखर बुद्धि और शोध से नई नई औषधि बना रहे हैं जिनके छिड़काव से हमारा जीना दूभर हो गया हैं जैसे ही उन्हें हमारी उपस्थिति रक्तपान के समय होती हैं अगले ही छण कोई न कोई औषधि हमें समाप्त कर देती हैं या वहां से पलायन करने को मजबूर कर देती हैं। आप इसका कोई उपाय बताएं हम बहुत डरे हुए हैं।

खटमलों के राजा मुस्कराएं और उन्होंने कहा—-ईश्वर ने हमें भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी हैं और सामाजिक सरंचना भी जिस प्रकार मनुष्य को, याद रखों जिस प्रकार मनुष्य अपनी नैतिकता भूल रहा हैं अपनी संस्कृति और परम्पराओ को भूल रहा हैं और वह साथ मे यह भी कर रहा हैं कि योग्यता को वरीयता न देकर अयोग्य व्यक्ति के हाथों में समाज की रचना, शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण स्थानों पर नियुक्ति भी कर रहा हैं यही परिवर्तन का सूत्र हैं।

तुम लोग आज भी पुरानी परंपरा का पालन कर रहे हो उनसे क्यों नही सीखते, ईश्वर ने हमे जीविकोपार्जन के लिए सिर्फ रक्तपान ही दिया हैं

तो आगे से ध्यान रहे और सुनो….पहले आप रक्तपान करते समय अपनी नैतिकता का पालन करते हुए उन्हें पीड़ा देते थे काटते थे आगे ऐसी युक्ति से रक्तपान करो कि उन्हें पता भी न चले और तुम्हारा अस्तित्व भी बना रहे…आखिर हमे इंसानों से ही सीखना चाहिए क्योंकि इंसान ईश्वर की सबसे उत्तम कृति हैं।

 

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