मुंबई। सीपी टैंक के पांजरापोल स्थित पंचायती फतेहपुरिया वाड़ी में २४/२५ दिसम्बर २०१९ को दो दिन तक प्रथम अग्निशिखा अंतराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव में देश-विदेश से आये साहित्यकारों ने अलग-अलग विषयों चर्चा परिचर्चा की। इस अवसर कई पुस्तकों का विमोचन हुआ, पुस्तक प्रदर्शनी भी लगी, उदघाटन सत्र को लेकर कुल दस सत्र थे। जिनमें हिंदी का वैश्विक परिदृश्य एवं चुनौतियाँ, हिंदी साहित्य में मराठी भाषियों का योगदान एवं मंचीय साहित्य एवं पाठ्यक्रम साहित्य की दूरियाँ और उनके कारण जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई। इस अवसर पर कवि सम्मेलन एवं साहित्यकारों का सम्मान समारोह भी हुआ।
24 दिसम्बर को आरम्भ हुये इस साहित्यिक महाकुंभ का आरम्भ दीप प्रज्वलन के साथ महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष शीतला प्रसाद दुबे ने किया। सूत्र संचालन युवा साहित्यकार पवन तिवारी ने किया। ज्ञात हो कि अलका पाण्डेय के संयोजन में आयोजित यह साहित्यिक आयोजन कई मामलों में अनूठा रहा जैसे कि पहली बार इतने बड़े पैमाने पर मुंबई में किसी एक निजी संस्था द्वारा इतना बड़ा साहित्यिक आयोजन सम्पन्न हुआ होना जिसमें भारत के २२ राज्यों एवं ४ देशों के साहित्यकार सहभागी हुए। २०० से अधिक साहित्यकार कविता सहित गद्य रचनाओं का पाठ किये साथ ही उन रचनाओं को पुस्तक रूप में उसी समारोह में लोकार्पण भी हुआ। जो कि मुंबई में पहली बार हुआ।
कार्यक्रम का शुभारंभ रायपुर से पधारी शुभ्रा ठाकुर द्वारा माँ शारदा की वंदना से हुआ। इसके बाद कार्यक्रम की आयोजक एवं संयोजक समाज सेविका एवं लेखिका अलका पाण्डेय ने स्वागत भाषण दिया। उसके बाद कुमार जैन ने विषय प्रवर्तन का दायित्व निभाया। उसके बाद अतिथियों का तुलसी के वृक्ष, पट, श्रीफल एवं संस्था का स्मृति चिन्ह प्रदान कर स्वागत किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में आमन्त्रित महाराष्ट्र राज्य अकादमी के अध्यक्ष शीतला प्रसाद दुबे ने कहा कि अर्थ की इस नगरी में साहित्यिक कुंभ का इतना बड़ा एवं महत्वपूर्ण आयोजन करना उसमें देश-विदेश के साहित्यकारों एक मंच पर लाना महत्वपूर्ण एवं साहस का काम है। इसके लिए मैं अलका पांडेय को साधुवाद देता हूँ।
समारोह का प्रथम सत्र पुस्तक विमोचन का रहा, जिसमें लेखिका रश्मि नायर की पुस्तक सेज के फूल, अरुण प्रकाश अनुरागी की पुस्तक सृष्टि एक महाकाव्य, अलका पांडेय की लघु आकाश, महोत्सव में आये रचनाकारों का साझा संकलनअग्निशिखा काव्य धारा एवं कथाधारा का डा.असुल कंसल कनुप्रिया की पुस्तक शतक कथा ( मराठी अनुवाद ) और अनिता झा की पुस्तक रंगीन नानी की फुलझड़ियाँ का विमोचन हुआ। इस अववसर पर रचनाकारों ने अपनी पुस्तक पर अपना मंतव्य रखा। अगला सत्र
हिंदी का वैश्विक स्वरूप एवं उसकी चुनौतियाँ विषय पर मुख्य वक्ता युवा साहित्यकार एवं चिंतक पवन तिवारी ने इजराइल की प्रधान मंत्री डेविड बेन गुरियन और आधुनिक तुर्की के निर्माता मुस्तफा कमाल पाशा से भाषा के संदर्भ में प्रेरणा लेने की बात विस्तार से बताई, वहीं विशेष अतिथि रहे कानपुर से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार श्रीहरि वाणी ने हिंदी को स्व के जीवन मे उतारने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि हिंदी के खाने वाले अपने बच्चों को अंग्रेजी के माध्यम से पढतें हैं। ऐसी प्रवत्तियों के कारण को जान कर उसको दूर करने का गम्भीर प्रयास करना होगा। सत्र की अध्यक्षता कर रहे रमेश यादव ने कहा कि इसे आंदोलन बनाना होगा, पहले छोटे-छोटे प्रयास करने होंगे। इस सत्र का संचालन प्रसिद्ध मंच संचालक कुमार जैन ने किया। दोपहर के भोजन के बाद एक बार फिर सारे साहित्यकार सभागृह में अवस्थित हुए । विषय था लघुकथा पर विचार विमर्श, मार्गदर्शन एवं लघुकथा वाचन। इस सत्र की अध्यक्षता कानपुर से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार श्रीहरि वाणी ने की। मुख्य अतिथि रहे वरिष्ठ कहानीकार पुरुषोत्तम दुबे, मुख्य वक्ता थे वरिष्ठ लघुकथाकार सेवासदन प्रसाद, विशेष अतिथि थे महेश राजा, युक्ता झा, आभा झा एवं प्रियंका सोनी। इस अवसर पर अनेक लघुकथाकारों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। इस सत्र का गरिमापूर्ण संचालन नागपुर से पधारी कवयित्री हेमलता मानवी ने किया।
शाम का सत्र मराठी भाषियों का हिंदी साहित्य में योगदान एवं कवि सम्मेलन विषय पर मुख्य वक्ता साहित्यकार पवन तिवारी ने बाबूराव विष्णु पराड़कर से लेकर, अन्नतगोपाल शेवड़े के प्रयास से नागपुर में हुए प्रथम विश्व हिंदीए सम्मेलन के आयोजन से लेकर, दामोदर खड़से, मुक्तिबोध, सूर्य नारायण रणसुभे, मालती जोशी, मसध्व राव सप्रे एवं प्रभाकर माचवे के हिंदी भाषा व साहित्य के योगदान पर विस्तार ने अपनी बात रखी। सत्र का सुंदर संचालन युवा कवि उमेश चव्हाण ने किया। इस सत्र में आंएक मराठी कवियों ने मराठी में सुंदर कविताएं सुनाई। अंतिम सत्र कवि सम्मेलन का रहा। जिसमें देश भर से आये रचनाकारों ने कविता पाठ किया।
दूसरे दिन के आयोजन में प्रथम सत्र बेहद महत्वपूर्ण रहा। विषय था मंचीय साहित्य एवं पाठ्यक्रम साहित्य की दूरियां एवं उसके कारण। इस सत्र की अध्यक्षता प्रसिद्ध शिक्षाविद और लर्नर्स अकादमी के अध्यक्ष राम नयन दुबे जी थे एवं मुख्य वक्ता थे, युवा समालोचक, कवि एवं सेंट पीटर्स संस्थान पंचगनी में हिंदी विभाग के अध्यक्ष जीतेन्द्र पांडेय। विशेष अतिथि थे, बनवारी लाल जिजोदिया एवं दतियय से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार अरविंद श्रीवास्तव। संचालन कुमार जैन ने किया। लोगों ने इस सत्र को बड़े ध्यान से सुना डॉ जीतेन्द्र पांडेय ने मंचीय साहित्य के गिरते स्तर और पाठ्यक्रम के मध्य नैतिकता के मामले को बताया। वहीं राम नयन दुबे जी ने कहा कि पाठ्यक्रम में आने वाली रचनाएं देश समाज एवं छात्रों के उज्ज्वल भविष्य को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं। जबकि मंचीय साहित्य सामने बैठे श्रोताओं के विशुद्ध मनोरंजन को ध्यान में रखकर रचा जाता है।
इसके बाद का सत्र भारत के विविध लोक गीत कलाएं एवं उनका संवर्धन था। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ सुनीति पवार ने की। मुख्य अतिथि थे डॉ अशोक पवार, विशेष अतिथि थे कानपुर से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार अजय कुलश्रेष्ठ, संचालन पवन तिवारी ने किया। इस दिन का अंतिम सत्र कवि सम्मेलन एवं सम्मान के नाम रहा। कार्यक्रम के समायययस पांडेय ने विशेष रूप से सहयोग करने वाले देवेंद्र पांडेय, कुमार जैन, अश्विन पांडेय, नीरजा ठाकुर, राम स्वरूप साहू, श्रीहरि वाणी, अजय बनारसी, रामप्यारे रघुवंनशी, विनय शर्मा “दीप”, निरुपमा शर्मा, वंदना श्रीवास्तव, चंद्रिका व्यास, सेवा सदन प्रसाद , अरुण प्रकाश अनुरागी,शारदा प्रसाद दुबे, अनिल कुमार राही, एडवोकेट अनिल शर्मा एवं पवन तिवारी जैसे साहित्यकारों सहित सभी सहभागी साहित्यकारों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। आयोजन में देश विदेश से आये सभी साहित्यकारों ने एक स्वर में अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच की अध्यक्ष एवं इस पूरे आयोजन की करता धर्ता अलका पांडेय के साहस और कर्मण्यता की भूरि- भूरि प्रशंसा की।