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शिक्षक दिवस मनाना देश के तमाम नियोजित शिक्षकों के लिए हुआ बेमानी,शिक्षा और शिक्षकों के साथ सरकार कर रही नाइंसाफी

Teacher
साभार: गूगल

बदलते परिवेश के साथ मानव जीवन की बुनियादी आवश्यकताएं बदल गई पर भारत में कुछ नहीं बदला तो वह है शिक्षा एवं शिक्षकों की दयनीय हालत।कभी मानव जीवन के लिए रोटी, कपड़ा और मकान तीन आधारभूत जरूरत हुआ करती थी जिसके बिना मानव जीवन की कल्पना भी बेकार थी ,पर समय में तेजी से करवट मारी और आज हम सब 21वीं सदी के तकनीकी युग में प्रवेश कर लिए इसके साथ ही हमारे लिए अब रोटी कपड़ा और मकान तक ही सोचना समय को धोखा देने के बराबर है। आज इंसान के लिए मुख्य जरूरत बढ़ गयी है ।अब रोटी कपड़ा और मकान से आगे शिक्षा स्वास्थ्य और सड़क सम्मानजनक जीवन जीने के लिए अति आवश्यक हो गयी है।इसमें भी शिक्षा सर्वाधिक महत्वपूर्ण और तात्कालिक जरूरत है जो दूसरी जरूरतों का आधार स्तंभ की तरह कार्य करेगी।

कभी विश्व गुरु कहलाने वाला भारत स्वतंत्रता के 70 साल बाद भी सौ फ़ीसदी साक्षरता प्राप्त करने के लिए हलकान हो रहा है।जब हम इसके पीछे के कारण ढूंढने बैठते हैं तो इसके लिए तीन बातें जिम्मेदार साबित होते हैं ।समर्पित शिक्षक,संकल्पित सरकार और समावेशी भारत की सोच का अभाव।जिस सुशिक्षित भारत के सपनो के लिए भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति एवं द्वितीय राष्ट्रपति, शिक्षक एवं दार्शनिक डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की इच्छा जाहिर की थी।आज वह बस टिमटिमाते हुए तारे की तरह खुद दूसरे को रोशनी से प्रकाशित होने का असफल प्रयास कर रहा है।

आज डॉक्टर राधाकृष्णन की रुह कांपने लगती होगीं जब उनकी आत्मा को आभास होता होगा ,जब हिंदुस्तान के कोने कोने से शिक्षकों के पैसे के अभाव में असमय मृत्यु ,साथ ही साथ शिक्षक अपने मूलभूत जरूरत के लिए दूसरों के सामने हाथ फैलाते दिखते होंग।.डॉ राधाकृष्णन के शिक्षा और शिक्षक को सम्मान देने का उनका सपना अपने ही राष्ट्र में धूल धूसरित हो रहा है।आजकल हर दिन किसी न किसी संचार माध्यम से यह खबर देखने ,पढ़ने और सुनने को मिलती रहती है कि शिक्षक सम्मानजनक वेतन और सुविधाओं के लिए धरना प्रदर्शन, भूख हड़ताल, अर्धनग्न प्रदर्शन ,आत्मदाह कर रहे हैं।वे सड़क से न्याय के सर्वोच्च निकाय तब इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं पर सरकार उनकी मूलभूत जरूरत और अधिकार को देने में आनाकानी कर रही है।

सरकार सर्वोच्च न्यायालय तक को पैसों का बहाना बनाकर गुमराह करने से बाज नहीं आ रही है।हास्यास्पद स्थिति तो तब हो जाती है जब सरकार खुद अपने द्वारा बहाल शिक्षकों को ही अयोग्य ठहराकर उन्हें कम वेतन भत्ते पर रखने का तर्क देती है।आज प्रत्येक सरकारी विद्यालय सरकार के वोटबैंक प्रयोगशाला बनकर रह गये है।सरकार अपने वोट बैंक की चिंता में विद्यालयों को शिक्षा देने के जगह हर वह कार्य जरुर करवा रही है जिससे उसे कुछ वोट हासिल हो जाए।इसके लिए वह विद्यालयों में मध्याहन भोजन,पोशाक,छात्रवृत्ति, साइकिल,नैपकिन, पुस्तक,दवा आदि मुफ्त में वितरण करवा रही है।

वहीं कभी अपने राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए नौनिहाल बच्चों और शिक्षकों को शराबबंदी के नाम पर, दहेज बंदी के नाम पर सड़क पर भी खड़ा करने से बाज नहीं आ रहीहै।सरकार सरकारी विद्यालयों में ही हर प्रकार के प्रयोग करती है ।चाहे उसका राजनीतिक उद्देश्य हो ,चाहे सामाजिक उद्देश्य हो ,चाहे आर्थिक उद्देश्य. आज प्रत्येक सरकारी विद्यालयों में यह देखने को मिलता है कि वहां एक ही छत के नीचे कई प्रकार के शिक्षक शिक्षा देते पाए जाते हैं कोई नियमित शिक्षक कहे जाते हैं कोई आयोंग द्वारा बहाल शिक्षक कहे जाते हैं,तो कोई 34000 बहाली वाले शिक्षक कहे जाते हैं, कोई नगर नियोजित शिक्षक,कोई प्रखंड नियोजित शिक्षक, तो कोई पंचायत नियोजित शिक्षक इसके बाद प्रशिक्षित और अप्रशिक्षित शिक्षक भी कह जाते हैं।शिक्षकों के इतने प्रकार में कोई वह प्रकार नहीं है जिसे समय पर वेतन आदि सुविधाएं आसानी से हासिल होती हो.

नियोजित शिक्षकों का हाल तो इतनी दयनीय है जिस का बखान करना भी मुश्किल है ।उन्हें आज तक न तो सम्मानजनक वेतन मिल रहा है नहीं समान सुविधाएं मिल रही हैं ,न ही वह सम्मान प्राप्त हो रहा है जिसके वे भागीदार है नियोजित शिक्षकों में 70% से अधिक शिक्षक उच्च योग्यता धारी हैं फिर भी उन्हें नियोजित शिक्षक कह कर अपमानित किया जाता है उन्हें नियोजित शिक्षक होने के नाम पर समान काम समान वेतन जैसे मूल अधिकार से वंचित किया जा रहा है।भारतीय संविधान के मूल तत्वों के खिलाफ कार्य हो रहे हैं,सरकार के साथ-साथ न्यायिक संस्थाएं भी ना जाने क्यों इस पर मौन साधे रहती हैं?

एक ओर सरकार गाहे-बगाहे एक राष्ट्र एक कानून,एक राष्ट्र एक कर, एक राष्ट्र एक चुनाव आदिक लोकलुभावन सपना तो बेच रहीं है पर वह कभी लाखों कर्मचारियों के हित वाली एक काम ,एक वेतन का नारा,समान काम ,समान पेंशन का नारा नहीं लगाती।सरकार कभी नहीं कहती कि एक राष्ट्र एक शिक्षा और एक समान शिक्षक होनी चाहिए।

मैंने देखा है अन्य राष्ट्रों में केवल दो प्रकार के शिक्षक होते हैं एक प्रशिक्षित दूसरे अप्रशिक्षित पर हमारे राष्ट्र में दर्जनों तरह के शिक्षक देखने को मिल जाते हैं ,आखिर ऐसा क्यों इसके पीछे कहीं शिक्षा के बंटाधार करने की छिपी हुई कार्ययोजना तो नहीं। ना योग्य शिक्षक होंगे ,ना ही वह अपनी योग्यता के अनुसार वेतन और सम्मान की मांग करेंगे। कहीं इसी के ललिए तो नही नियोजन नामक शब्द जोड़ा गया,आजकल तो एक और नया शब्द जोड़ा गया है शिक्षक के लिए वह है अतिथि शिक्षक।

आखिर क्यों हमारे देश में शिक्षक बहाली के लिए आज तक कोई स्वतंत्र आयोग नहीं बना जो योग्य शिक्षक की बहाली कर सकें आखिर इस में रुकावट क्या है? सरकार को इसे स्पष्ट करना चाहिए। आखिर हिंदुस्तान में यूजीसी नेट उत्तीर्ण पीएचडी की डिग्री रखने वाले युवा और युवतियां रोजगार के लिए सड़क और गली के धूल फांकने को मजबूर क्यों है?आज भारत का प्रत्येक नागरिक यह जानता है कि हमारे प्राथमिक विद्यालयों से लेकर विश्वविद्यालयों तक लाखों शिक्षकों का पद खाली है, फिर शिक्षकों के अभाव में कैसे शिक्षा दिया जा रहा है ? क्या इसका कोई जवाब है सरकार के पास ? यही नहीं केंद्रीय विश्वविद्यालयों,केंद्रीय विद्यालयों,सैनिक स्कूलों,नवोदय विद्यालय एवं अन्य मॉडल विद्यालयों में भी हजारों शिक्षकों का पद खाली है।

आज देश के 95% शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान निजी हाथों में है,यह प्रशिक्षण संस्थान केवल डिग्री बांटने के कारखाने से अधिक कुछ नहीं कर रही है। इन संस्थानों से निकले प्रशिक्षित युवा टेट और एसटीटी, CTET आदि की परीक्षाएं भी नहीं पास कर रहे हैं ।आखिर किस प्रकार का प्रशिक्षण उन्हें मुहैया कराया जा रहा है ?सरकार इस पर भी एक बार सोच कर देखें ।जब एक जिला के निर्माण करने वाले पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी को सेवा में आने के बाद प्रशिक्षण दिया जाता है और वह अपने जिलों को अच्छी तरह से चला सकते हैं,तो देश के निर्माण की आधारशिला रखने वाले शिक्षकों की बहाली के पहले प्रशिक्षण देना किस हद तक तर्कसंगत है?क्या देश में यह व्यवस्था नहीं किया जा सकता? शिक्षकों की बहाली एक स्वतंत्र आयोग के द्वारा किया जाए और सेवा के दौरान जरुरत के अनुसार उन्हें प्रशिक्षित किया जाए।

यहां हमें लगता है सरकार चाहती है प्रशिक्षण के बहाने ही कम से कम 2 सालों तक युवाओं को गुमराह कर रोजगार से दूर रख सके।साथ ही अमीरों के लिए स्थान सुरक्षित किया जा सके क्योंकि गरीबों के पास प्रशिक्षण देने के लिए पैसे नहीं है।अगर इसी तरह से चलता रहा तो हिंदुस्तान में शिक्षा का बेड़ा गर्क होता रहेगा. जब तक शिक्षकों को सम्मान के साथ साथ सम्मानजनक वेतन भत्ते और अन्य सुविधाएं प्रदान नहीं किया जाएगा तब तक भारत के लिए राष्ट्र का लाने का सपना अधूरा ही रहेगा ।

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