झांसी: बुन्देलखण्ड क्षेत्र का एक ऐसा इलाका जो प्रायः सुखे के चपेट में रहता है लेकिन यहां पर मानवीय पीड़ा का इतना सूखा देखने को मिलेगा। इसकी कल्पना करने से पाप लगता है। जो मां अपने खून से सींचकर अपने बेटे को बड़ा करती है कि बेटा बड़ा होकर बुढापे मे सहारा बनेगा। लेकिन आज के कुछ ऐसे भी पापी पुत्र है जो मां बाप की सेवा करने में मुह छिपाते है। और उन्हे अनाथ आश्रम में छोड़ देते है या जबरजस्ती ट्रैन में बैठाकर निकल लेते है, अपने सुख के संसार में अपने ही जन्मदाता को रोड़ा समझते हैं।
एक ऐसा ही वाकया झांसी जिला के माऊ रानीपुर रेलवे स्टेशन पर हुआ जहां एक कलयुगी बेटे ने अपनी बूढी मां को मुम्बई जाने वाले एक ट्रैन में बैठाकर छोड दिया और वह विवश और लाचार महिला ट्रैन से कल्याण स्टेशन पर पहुंच गई और रोती-बिलखती रही। उस बूढी महिला का देखकर दो युवकों ने राजेन्दर शर्मा व लल्लन कन्नौजिया ने अपने घर ले जाकर सेवा करने का मन बनाया और दोनो उस महिला को अपने घर पर रखे है, और खाने-पिने की पूरी व्यवस्था किये है। महिला पूछने पर अपना नाम लक्ष्मी बताई है। और अपने परिवार के बारे में बताया कि उनके चार लड़के है जिसमें सदानन्द जो मर गया है। दूसरा लड़का भगवान दास है, तीसरा केशवदास जो पेशे से कालीन का काम करता है और सबसे छोटा बेटा बबलू जो पेशे से अध्यापक है। इनकी दो लड़कियां कौशल्या और यशोदा है। महिला ने बताया कि मेरा लड़का जबरन मुझे गाडी में बैठाया, और मैं ट्रैन से मुम्बई के कल्याण में आ गई।
इस बूढी महिला को रोती-बिलखती देख ये दोनों युवक महिला को अपने घर ले आऐ। राजेन्द्र शर्मा व लल्लन कन्नौजिया के परिवार वाले महिला की देखभाल परिवार के सदस्य की तरह कर रहे है। सच में यदि देखा जाए तो राजेन्द्र व लल्लन की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। क्योकि अपनों ने ठुकराया लेकिन परायों ने अपनाया। इससे लगता है कि आज भी मानवता जिन्दा है।