Home धर्म और संस्कृति गंगा केवल दर्शनात् मुक्ति……

गंगा केवल दर्शनात् मुक्ति……

 

भारत भूमि हमेशा से आध्यात्म और विज्ञान के कसौटी पर खरी उतरती है। चाहे वह रामसेतु हो या देश के रहस्यमयी मंदिर जिनके बारे में आज तक रिसर्च चल रहा है। लेकिन एक दुर्भाग्य की बात यह है कि आज हम अपनी आधुनिकता के दौड में अपनी परम्परा, धरोहर व संस्कृति को सहेज पाने में कही न कही पीछे साबित हो रहे है। इसमें किसी एक की वजह से नही हो रहा है बल्कि इसमें हम सभी सामूहिक रूप से जिम्मेदार है। देश की धरोहर व शान को बचाने के लिए सरकारें भले ही करोडों रूपया खर्च करती है लेकिन सच में उसके हिसाब से सफलता नही मिल पा रही है। इसमें कही न कही लापरवाही और असहयोग की बात समझ में आती है।
देश की सबसे पवित्र नदी गंगा का ही उदाहरण हम देख सकते है कि ‘नमामि गंगे’ योजना के तहत सरकार करोडो रूपया खर्च कर दी है लेकिन गंगा की स्वच्छता में उतना सुधार नही देखने को मिल पा रहा है जितनी अपेक्षा थी। मनमाफिक परिणाम न आने के पीछे केवल सरकार ही जिम्मेदार नही है। इसमें सभी लोग जिम्मेदार है। आज इतने जागरूकता के बाद भी लोग गंगा के घाटों पर शौच कर रहे है, शवों को जला रहे है। नाले गंगा में गिर रहे है, लोग अपने पशुओं को धो रहे है और शवों को गंगा में प्रवाहित भी कर रहे है। और केवल सरकार को कोसते है।
गंगा के आध्यात्मिक महत्व की बात जो वेद पुराणों में कही गई है वह कही न कही लोगों को गंगा के प्रति आस्थावान बनाती है। गंगा के महत्व के बारे में बताया गया कि गंगा के दर्शन मात्र से मुक्ति मिल जाती है। जिस घर में गंगा जल रहता है वहां बुरे विचार व बुरी आत्माओं का प्रभाव नही होता है। गंगा का अविर्भाव पृथ्वी पर इस लिए हुआ कि यहां के लोगों की मुक्ति हो सके लेकिन लोग है कि गंगा को आज विलुप्त करने में लगे है। जो कही न कही पर्यावरण की दृष्टि से भी नुकसानदायक है।
भागीरथी ने गंगा को पृथ्वी पर कठिन तपस्या के बाद अपने पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति कराने और जनकल्याणार्थ के लिए आवाह्न किया। लेकिन आज लोग भागीरथी के उस तपस्या को भुलाकर अपने स्वार्थसिद्धी के लिए वह सब कुछ कर रहे है जो नही करना चाहिए। गंगा की स्वच्छता व संरक्षण भारत के सभी नागरिकों की नैतिक जिम्मेदारी है नही तो वह दिन दूर नही होगा जब हम केवल गंगा को कहानी के रूप में ही जानेंगे। आज भी गंगा में कई औषधीय गुण विद्यमान है जो इसकी ताकत का अहसास कराते है। गंगा को हम केवल एक नदी के रूप में न देंखे बल्कि इसे एक धरोहर के रूप में सहेजने का प्रयास करे। यही हमारी सच्ची गंगा भक्ति होगी। भारत की संस्कृति, परम्परा और धरोहरों को बचाने के लिए भारत के सभी नागरिकों को आगे आना होगा। प्रयास करें कि देश की धरोहर गंगा को स्वच्छ बनाने में अपना अमूल्य योगदान दें।

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