Home ज्योतिष गोकर्ण ने भी किया श्राद्ध कर्म गया में

गोकर्ण ने भी किया श्राद्ध कर्म गया में

atul shashtri

पितृपक्ष के लिए गया की भूमि को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। ऐसी मान्यता कि गया में श्राद्ध से जीव की सद्गति होती है। परन्तु भागवत् माहात्म्य कथा के पात्र धुंधकारी का गया श्राद्ध उसके भाई गोकर्ण ने विधिवत् किया फिर भी उसकी प्रेत योनि न छूटी। इसका कारण शौनक जी ने व्यास जी से पूछा. उन्होंने बतलाया- ‘गया’ श्राद्ध का आध्यात्मिक मर्म समझ लोगे तो बात समझ में आयेगी। उन्होंने गया श्राद्ध की एक कथा सुनाई। एक असुर था, गयासुर उसने तप शक्ति से सारी विभूतियां पा लीं।  तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी आये, वर मांगने को कहा, असुर बोला “मैं आपसे क्या वर मांगू मुझे क्या कमी है?” आप चाहें तो मुझसे कुछ मांग लें.”ब्रह्माजी ने सोचा यह अहंकारी असुर किसी के मारे न मरेगा। शायद यज्ञ के प्रभाव से मर जाय। उन्होंने यज्ञ के लिए उसका शरीर माँग लिया। उसकी छाती पर सौ वर्ष तक यज्ञ किया गया। पर वह मरा नहीं, वह उठने को हुआ ब्रह्माजी ने भगवान का स्मरण किया। उन्होंने प्रकट होकर गयासुर की छाती पर दोनों चरण रखे। चरण छाप पड़ने से असुर नष्ट हुआ। उसने मरते समय वर मांगा यह यज्ञ क्षेत्र में विष्णुपाद पर जिसका श्राद्ध हो उसे सद्गति मिले। भगवान ने गयासुर की इस मंगल कामना का आदर किया। उसे भी सद्गति दी तथा वरदान भी प्रदान किया।

कथा सुनाकर व्यास जी बोले, हे भ्रद! ‘गय’ प्राणों को कहते हैं। प्राण अपने सहयोगी अनुचरों, शरीर, मन, बुद्धि, इन्द्रियों के सहयोग से कुछ भी अर्जित कर सकता है। अभिमानी प्राणी ही गया सुर है वह भूल जाता है कि उसे किसी उद्देश्य विशेष के लिए बनाया गया है। बनाने वाले ने अपने लिए दिशा प्राप्त करने की अपेक्षा उसी से वर माँगने की अहंकार भरी बात करता है। यह अहंकारी जीव सामान्य देव वृत्तियों के काबू में नहीं आता, उन्हें सताता है। ब्रह्माजी ने ठीक ही सोचा कि लंबे समय तक यज्ञ का परमार्थ का संस्कार मिले तो शायद यह अभिमान समाप्त हो जाय। इसी दृष्टि से उन्होंने उससे उनका शरीर यज्ञ के लिए मांग लिया।

सौ वर्ष मनुष्य की आयु है। पूरे समय यज्ञ हुआ, पर वह केवल द्रव्य से हुआ। अभिमान के भाव से किया गया द्रव्य यज्ञ अधूरा यज्ञ होता है, राजसिक यज्ञ होता है। सात्विक यज्ञ जब तक वह न बने, उसका वह प्रभाव नहीं होता जैसा चाहिए। ब्रह्माजी की समझ में भूल आयी। उन्होंने भगवान का आह्वान किया। गयासुर के हृदय पर भगवद् चरण पड़े, अर्थात् प्रभु के प्रति श्रद्धा उपजी तो जीवाभिमान गल गया. मुक्ति हो गयी।

ज्योतिष सेवा केंद्र
पंडित अतुल शास्त्री
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