Home भदोही सरकारी आयुर्वेदिक अस्पताल बदहाल, सडक छाप वैद्य मालामाल।

सरकारी आयुर्वेदिक अस्पताल बदहाल, सडक छाप वैद्य मालामाल।

कभी पूरे विश्व में डालर नगरी से प्रसिद्ध भदोही जिला इन दिनों अपनी परेशानियां और बदहाली का शिकार है। जो जिला काशी और प्रयाग जैसे विद्वत जिलों के मध्य है और विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखता है। लेकिन भदोही की वर्तमान दशा देखकर लगता है कि यहां कहने को शिक्षा तो बेहतर स्थिति में है लेकिन फिर भी लोग रूढ़ीवादी और अन्धविश्वास की मकड़जाल में उलझे हुए है। जिले में अभी लालीपुर गांव में एक अधेड की हत्या इसलिए कर दी गई कि उसकी हत्या करने वालों का शक था कि उसने उनके परिवार में भूत दे दिया है। इसी भूत प्रेत और अन्धविश्वास के चक्कर में कई बाबाओं और ढोंगी मालामाल हो रहे है। जबकि जिले के सम्बन्धित विभागों को इससे कोई फर्क नही पड रहा है। जब कोई घटना हो जाती है तो लोग उसको संज्ञान में लेते है। जिले में न जाने कितने बाबा और तांत्रिक लोगों को अन्धविश्वास में बरगलाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे है। लेकिन प्रशासन के लोग किसी शिकायत या घटना का इंतजार कर रहे है जो कही न कही अन्धविश्वास को बढाने वाले बाबाओं और ढोंगियों के लिए परोक्ष रूप से सहायक साबित हो रहा है।

जिले में अन्धविश्वास के अलावा एक दुसरी चीज भी खूब फल फूल रही है लेकिन जिम्मेदार लोग मौन साधे हुए है। जिले में कई जगह देखा जा सकता है। सडकों के किनारे अपनी झुग्गी बनाकर बडे ही शान से शर्तिया इलाज करने की गारंटी दे रहे है और गरीब और गांव की भोली भाली जनता इन ठगों के चक्कर में पड़कर इलाज कराने चली जाती है। जो जिले के स्वास्थ्य विभाग के लिए एक चुनौती है। सरकार जहां लोगों के बेहतर ईलाज के लिए पढे-लिखे और जानकार चिकित्सकों की तैनाती की है लेकिन फिर भी जनता इन सडक छाप वैद्यों के चक्कर में पड़कर अपना समय और पैसा बर्बाद कर रही है।

विदित हो कि जिले में बने कई आयुर्वेदिक चिकित्सालय है जो बदहाली के शिकार है जिससे लोग उन चिकित्सालयों में ईलाज न कराकर आयुर्वेद के नाम पर सडक छाप वैद्यों के चंगुल में फंस जाते है। प्रशासन भी कही न कही इन सडक छाप वैद्यों पर कोई कार्यवाही न करके परोक्ष रूप से उनके मनोबल बढा रहा है। यहां एक सवाल यह बनता है कि आखिर किस आधार पर पुलिस और प्रशासन सडक छाप वैद्यों पर कार्यवाही नही कर रही है ? कभी इनके द्वारा दी गई दवा से किसी के साथ कोई घटना हो जाए तो आखिर कौन होगा जिम्मेदार? या सडकों के किनारे अपनी आयुर्वेदिक दुकान चलाने वाले वैद्यों की डिग्रियां भी देखी है प्रशासन के लोगो ने? क्या ये सडक छाप वैद्य जिले में तैनात चिकित्सको से ज्यादा जानकार है जो जटिल से जटिल रोगों का इलाज गारंटी से करने का दावा करते है? यदि इन सडक छाप वैद्यों पर प्रशासन को सही होने का भरोसा है तो जिले में बने आयुर्वेदिक चिकित्सालयों में तैनात चिकित्सकों की जगह इन्हें ही तैनात कर दें। इन सडक छाप वैद्यों का कौन भरोसा कि कभी किसी घटना को भी अंजाम देकर रफू चक्कर हो जाए। तब प्रशासन केवल हाथ मलता रह जाए।

सरकार द्वारा आयुर्वेद को बढाने के लिए काफी प्रयास किये जा रहे है लेकिन फिर जिले में बने आयुर्वेदिक चिकित्सालय बदहाल है, और सडक छाप वैद्य मालामाल हो रहे है। जिले में घूमंतू, टेंट लगाकर रहने वाले और सामान बेचने वाले फेरी वालों से सावधानी नितांत आवश्यक है। क्योकि थोडी सी भी लापरवाही कभी बडी घटना का गवाह बन सकता है। क्योकि आज के समय में रूढ़ीवादी और अन्धविश्वास से जुडी बातों को लेकर जागरूकता बहुत जरूरी है। क्योकि थोडी सी लापरवाही की वजह से आए दिन घटनाएं देखने व सुनने को मिल रही है।

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