Home मुंबई काव्यसृजन की राष्ट्रीय कमेटी द्वारा गूगल-मीट पर हुआ भव्य कवि सम्मेलन

काव्यसृजन की राष्ट्रीय कमेटी द्वारा गूगल-मीट पर हुआ भव्य कवि सम्मेलन

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मुंबई। साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था काव्यसृजन की राष्ट्रीय कमेटी के संस्थापक/अध्यक्ष पं• शिवप्रकाश जौनपुरी के मार्गदर्शन और प्रो• अंजनी कुमार द्विवेदी के यादगार संचालन में भव्य कविगोष्ठी का आयोजन 6 सितम्बर 2020 दिन रविवार को गूगल मीट पर प्रथम काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी शाम 6:30 से शुरू होकर देर रात्रि 10 बजे तक चला।इस कार्यक्रम की अध्यक्षता परम आदरणीय कविवर श्रेष्ठ डॉ रामनाथ राना ने किया। दिल्ली निवासी व महिला मंच की राष्ट्रीय अध्यक्षा आदरणीया संगीता शर्मा अधिकारी जी इस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थी।

कार्यक्रम में भाग लेने वाले कवियों में प्रमुख रूप से महाराष्ट्र महिला मंच की प्रमुख आदरणीया इंदू मिश्रा जी, सुमन तिवारी जी, डॉ वर्षा सिंह जी, मृदुला जी, आरती जी, नीलिमा जी, प्रज्ञा राय जी, ठाणे से भाई उमेश मिश्रा, सदाशिव चतुर्वेदी जी, दिल्ली से भाई पंकज तिवारी, भोपाल निवासी भाई मुकेश कबीर, मुम्बई से एड.राजीव मिश्रा, संस्थापक पंडित शिवप्रकाश जौनपुरी, महासचिव लालबहादुर यादव कमल, कोषाध्यक्ष बीरेंद्र यादव, उपकोषाध्यक्ष महेश गुप्ता जौनपुरी, उपाध्यक्ष पंडित श्रीधर मिश्रा, उप सचिव भाई अवधेश यदुवंशी, प्रो0सरिता चौबे,आ0 प्रमोद कुमार कुश तनहा, ठाणे-महाराष्ट्र से विनय शर्मा दीप, शिक्षिका संगीता पाण्डेय,किशन तिवारी भोपाल, गुलाब चंद्र पटेल गुजरात,चेतन नितिन खरे यू पी, हरीष शर्मा यमदूत-मुंबई, रेखा तिवारी मुम्बई,
मन्जू गुप्ता नवी मुम्बई, अश्विनी उम्मीद लखनवी, वैशाली सिंह-यू पी, देवनरायण शर्मा यू पी, रश्मिलता मिश्रा म प्र,डॉ शैलबाला अग्रवाल यू पी, रवीन्द्र रंजन यू पी, सुरेन्द्र दूबे मुम्बई, दिवाकर वैशम्पायन, अलका कृति यूपी, श्रीहरि वानी यूपी, सौरभ दत्ता जयंत मुम्बई आदि प्रमुख रूप से उपस्थित होकर गोष्ठी में सभी कवियों ने काव्यपाठ किया।
उपस्थित कुछ कवियों की चंद पंक्तियाँ इस प्रकार रही-

पंडित शिवप्रकाश जौनपुरी ने वैश्विक महामारी कोरोना को मुद्दा बनाकर कहते हैं-

फीके फीके से हुए,अबकी सब त्योहार|
कोरोना ने कर दिया,सब उत्सव बेकार||

रक्षाबन्धन का नहीं,मना खास त्योहार|
घटा करोना ने दिया,बहन भाइ का प्यार||

गाजा बाजा कुछ नहीं,नहीं हुआ अति शोर|
गणपति बप्पा आ गये,बरस रहा घन घोर||

पूजन वंदन कर रहे,घर घर अपने लोग|
जल्द भगायें देश से,कोरोना का रोग||

गौरी नंदन गज बदन,गणपति दीन दयाल|
दया करो संसार पे,बहुत बुरा है हाल||

कवयित्री संगीता शर्मा अधिकारी ने जीवन पर आधारित चंद पंक्तियाँ पढी-

बेबसी करवट बदल अब साथ में सोती नहीं।
नींद में बदकिस्मती से बात भी होती नहीं।
आंसू को संबल बना कंधे से कंधा मिला लिया।
अबला से सबला बनी मैं आजकल रोती नहीं।।

प्रोफेसर उमेश मिश्रा ने प्रभु कृष्ण पर सवैया सुनाकर खूब वाहवाही लूटी-

गोद उठाय लई ललना,यशोदा मन मे हरषाय रही है।
देखी छटा मुरलीधर की,मन ही मन में मुसकाय रही है ।
मोर का पंख ललाट सोहे,वंशी निज तान सुनाय रही है।
तीनों लोक के स्वामी हैं जो,मैया निज गोंद उठाय रही है ।।

युवा कवयित्री प्रज्ञा राय ने ‘जीवन संगिनी’ विषय पर कविता पढी-

मेरे जीवन के,
अलिखित श्वेत पन्नों पर,
तुम अपने प्रेम की स्याही से,
बहुत कुछ लिख गई।
बालकनी में रखे झूले पर,
तुहारे साथ होने का ,
अनुभव आज भी महसूस करता हूँ।
तुम्हारी स्नेह भरी चंचल मुस्कान ,
आँखों से ओझल ही नही होती।
तुम जीवन संगिनी नहीं,
मेरा जीवन थी।
और जो ये शेष रह गया है,
ये केवल लम्हे हैं ,
किसी पर्वत से ऊँचे ,
जिसे पार करने को अकेला,
छोड़ गई हो मुझे,
जीवन की इस सांध्य बेला में।
न जाने क्यों चिड़चिड़ा सा हो गया हूँ,
खीझ उठता हूँ किसी भी बात पर।

नियति से नाराज हूँ और
सजा दे रहा हूँ स्वयं को।
तुम्हारी हर चीज़ को संभाल कर ,
रखना चाहता हूँ।
तुम्हारी कंघियाँ और शीशे पर चिपकी,
तुम्हारी पुरानी बिंदिया
और तुम्हारी यादों को भी।
यूँ ही कभी अखबार पढ़ते समय,
तुम सामने की कुर्सी पर बैठकर,
अखबार की लाइनें पढ़ती,
तो मैं झट से कह देता,
ये तुम्हारी समझ में नहीं आएगा।
और तुम चिढ़े स्वर में कहती,
मैं सब जानती हूँ।
हाँ ,तुम सब जानती थी,
ये मैं नहीं जान सका।
मैं उलझा रहा ,
पढ़े लिखे अनपढ़ों की दुनिया में,
और तुम जीवन के सभी पहलुओं को,
छूती चली गई।
कितना मधुमय था तुम्हारा जीवन।
महुए के पत्तों ,दूब ,कलश, अक्षत
इन्हीं के इर्द-गिर्द रहती थी तुम,
शांति की मंदिरा बेदी के सारे दुःख
तुम्हें अपने से लगते।
छठ पूजा की साँझ को,
लाल सिंदूर से भरे
अपने केश खोलकर ,
आँखें मूँदकर ,
कमर तक जलमग्न हो ,जब
तुम सूर्य को अर्ध्य देती थी।
उस समय तुम्हारे मुख पर
किसी दैविक शक्ति की
आभा बिखरी लगती ।
ओह! कितनी सुंदर थी तुम।
निर्जला उपवास में बेहोश हो
जाने की स्थिति में भी तुम
पानी की एक बूँद भी नहीं लेती।
एक ही जीवन में कितना त्याग,
कितना स्नेह ।
सारे उपवास कभी पुत्र के लिए तो कभी
मेरे लिए।
तुमने अपने लिए कभी कुछ सोचा ही नहीं
आटे या चावल के डिब्बों में
जो पैसे जोड़कर रखे थे तुमने
वह भी तो दे दिए तुमने मुझे
जब मुझे परेशान देखा पैसों के लिए।
मैं कमाकर भी कुछ नहीं कमा पाया।
और तुम लक्ष्मी बन गई ।
मेरे लिए कोई बंधन नहीं था
फिर भी कितना संकुचित रहा मैं
और
तुम सीमाओं में बंधकर भी,
असीम हो गई।

वरिष्ठ कवि विनय शर्मा दीप ने देश के दुश्मनों को सावधान करते हुए, अपनी सवैया के माध्यम से लोगों को जागरूक किया-

नाक बजावत गाल फुलावत,दादुर कौ चटकाय न देते ।
शेखर वीर शिवा सुखदेव,प्रताप धरा बतलाय न देते ।
शंख बजाय दुवार खड़ा अरि,कौ तनिका समुझाय न देते ।
वीर सपूतन कै धरती,कस रंग हवे बतलाय न देते ।।

माई क पूत हई सबनी,अब दूध क ॠण चुकावे के बा हे ।
वीर सपूतन कै धरती,कस ईक हई इ बतावे के बा हे ।
दांत दिखावत पंख पसारत,राहु-केतु के ढहावे के बा हे ।
सेखि बघारत द्वार खड़ा,वहिं बैरहि धूल चटावे के बा हे ।।

हार न मानब हे तनिकौ,कस आतिशबाजी लगइहैं देखब ।
राहन से अरि मारि भगाइब,ताकत का अजमइहैं देखब ।
माई क दूध हवे तन में,बगिया कस आग लगइहैं देखब ।
दीप घरे दियना जलिहैं,घतिया कस घात लगइहैं देखब ।।

भूल गयो फिर हारि गयो जहं,आइल बात त कान्हि लियों हैं।
जानि गयो कथनी-करनी सब, बूझिके हौं प्रण ठान लियो हैं ।
मान गयो तब शान नहीं,कटि काछन से फिर बान्हि लियो हैं ।
श्वेत बसन नहिं दाग लग्यो अब,शिश हिमालय तान लियो हैं ।।

युवा कवि वीरेन्द्र कुमार यादव ने खूबसूरत रचना पढी-

वह शायद कुछ कुछ डरता है,
अभिमान इसलिए करता है,
अभिमान नही यह सच्चा है,
बस डरा हुआ सा बच्चा है।

भय शायद उसके सिर पर है,
कोई उससे भी बढ़कर है,
पीछे होने से डरता है,
अभिमान इसलिए करता है।

संचालन करते हुए कवि अंजनी कुमार द्विवेदी कहते हैं-

साँसों का पिंजरा किसी दिन टूट जाएगा।
ये मुसाफिर फिर किसी राह में छूट जाएगा।
अभी जिन्दा हूँ तो बात कर लिया करो तुम,
क्या पता कब हम से भी खुदा रूठ जाएगा।।

कवियत्री इंदु भोला मिश्रा ने जीवन पर आधारित रचना पढकर वाहवाही लूटी-

मौत आ ही गया अब अगर सामने,
हैं वतन की कसम याद आते रहें,

छोड़ कर आज दुनियाँ चला मैं कभी
लौटकर आऊगा मैं बताते रहें,,

देखना न मुडकर इधर तो कभी
ताकतों को यूँ ही आजमाते रहे

लूटने की बिमारी लगी हैं तुझे
देखना हम तो फर्ज को निभाते रहें,

चाल समझा मगर देर होती रही
हौसलों को जवानें बढ़ाते रहें

वरिष्ठ कवि डाॅक्टर रामनाथ राणा की रचना कुछ इस तरह रही-

विनाश काले बुद्धि भ्रष्ट है
उन दुश्मन गद्दारों की।
हद से ज्यादा काल भयंकर
उनके अत्याचारों की।
देश हमारा सक्षम है
प्रति उत्तर उनको देगा ही।
किसी आत्मघाती हमले का
बदला उनसे लेगा ही ।

अब पद्मनाभ की शंखनाद
हुंकार गरज कर भरना है।
दुश्मन के सारे छद्म कपट से
रंच मात्र ना डरना है।
हमने दिखलाया प्रेम भाव
उसने हम को गुमराह किया।
मजबूर किया संघर्ष करो
हर पल पल में आगाह किया।

अब सत्य अहिंसा त्याग करो
न्यूक्लियर बम तैयार करो।
निर्माण करो जैविक शास्त्रों को
शर्म नहीं संहार करो।

हमने समझाया बार-बार
पर दुश्मन को परवाह नहीं।
हमने सिखलाया दया धर्म
उनमें कोई उत्साह नहीं।

हम तो हैं सत्य अहिंसा के
हमको झगड़े की चाह नहीं।
सीमा से बाहर जाने की
यह बिल्कुल अपनी राह नहीं।

पर सीमा पार दुश्मनों ने
हमको हरदम ललकारा है।
वे कुटिल क्रूर अत्याचारों से
अपनी मौत पुकारा है।

हमने बर्दाश्त किया अब तक
अब दुश्मन को ना छोड़ेंगे।
अब चढ़कर उनकी छाती पर
बस अंग अंग ही तोड़ेंगे।

उनका तो धर्म दुष्टता है
दुनिया में आग लगाया है।
मानवता को तो रंचमात्र
उसने ना कभी अपनाया है।

इंसानी धर्म के दुश्मन वो
उनका तो कोई धर्म नहीं।
लाखों को मार दिया उसने।
उनको बिल्कुल ही शर्म नहीं।

अब सत्य अहिंसा परम धर्म की
नीति त्याग करना होगा।
दुश्मन को प्रत्युत्तर देकर
सौ गुना घाव करना होगा।।

इसी तरह सभी उपस्थित साहित्यकार,कवि,गज़लकारो ने अपनी-अपनीे रचनाओं से लोगों को आनंदित कर दिया और अंत में संस्था के अध्यक्ष जौनपुरी ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया और कवि सम्मेलन का समापन किया।

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